बरूआसागर(झाँसी) गहोई समाज के तत्वाधान में -नर हो न निराश करो मन को- के रचयिता राष्ट्रकवि डा0मैथलीशरण गुप्त की 121 वीं जयंती मनाई गई।सर्वप्रथम सुबह से ही गहोई स्वजातीय बन्धुओं द्वारा लगभग आधा सैकड़ा वाहनों के माध्यम से पूरे नगर में वाहन रैली निकालते हुए दद्दा जी के आदर्शो सहित उनके बताए मार्गदर्शन पर चलने का आव्हान किया।उक्त वाहन रैली का नगर के तमाम जगहों पर पुष्प वर्षा के साथ स्वल्पाहार स्वागत किया गया।ततपश्चात नगर के तमाम गहोई बन्धु समाज के भवन पर वापिस पहुंचे,समाज के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद सेठ उर्फ लल्ला द्वारा उपस्थित तमाम स्वजातीय बन्धुओं के साथ ध्वजारोहण किया गया।उपरांत मैथली शरण गुप्त सहित माँ सरस्वती के चित्र के अनावरण सहित माल्यर्पण ओर दीप प्रज्वलन कर एक गोष्ठी का शुभारंभ हुआ।।इस मौके पर दद्दा के नाम से विख्यात स्व.मैथलीशरण जी गुप्त के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हैं याद करते हुये मौजूद अतिथीगणों ने उनके जीवन परिचय के बारे में प्रकाश डाला।समाज के रमेश चन्द्र खर्द ने अपने उद्बोधन में बताया कि दद्दा के नाम से चर्चित स्व.मैथलीशरण का जन्म 3 अगस्त 1886 में उ.प्र. के झांसी जनपद के चिरगांव कस्बे में हुआ था। बचपन से ही साहित्य के प्रति लगाव को देखते हुये परिवार जनों ने उनकी शिक्षा दीक्षा में कोई कसर नही छोडी। भारतीय संस्कृति बैष्णव परिभाषा के प्रतिनिधी कवि मैथलीशरण ने 50 साल तक निरंतर साहित्य सेवा का सृजन किया।आयोजित गोष्टि में वयोवृद्ध कवि राधारमण नॉगरैया ने अपने वक्तव्य में बताया कि संत कबीरदास के अन्नय भक्त मैथली शरण गुप्त ने साहित्य जगत के धुरधंर पं0 महावीर प्रसाद की प्रेरणा से दद्दा ने खडी बोली के शब्दों को साहित्य का सफर बनाया। समाज के उपाध्यक्ष शिव कुमार मोदी ने अपने सम्बोधन में बताया कि मैथलीशरण गुप्त को सभी प्रेम से दद्दा कहते थे आगे चलकर दद्दा के नाम से विख्यात हुये स्व. गुप्त जी ने करीब 40 ग्रंथों की रचना की।समाज के पूर्व अध्यक्ष रहे जगदीश सरावगी ने बताया कि खडी बोली सरल प्रवाहमय भाषा के सशक्त माध्यम से भारत भारती, साकेत, यशोधरा, कृणाल, जयद्रथ वध, द्वापर, पंचवटी, जयभारत जैसे चर्चित रचनाओं से साहित्य जगत को नई उंचाईयां दी। साकेत उपन्यास पर उन्हैं मंगला प्रसाद पारितोषिक मिला था। इसके साथ ही उन्हैं प्रथम पद्म विभूषण उपाधि से अलंकृत किया गया था, इसके अलावा राष्ट्र सेवा के समर्पित साहित्यकार होने पर वह बर्ष 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सांसद रहे, स्व. दद्दा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के अति निकटतम माने जाते रहे।समाज के पूर्व अध्यक्ष और प्रशिद्ध किराना व्यवसायी हरि शंकर सेठ ने बताया कि एक बार 15 अगस्त पर लाल किले पर हमेशा की तरह राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था, जवाहर लाल नेहरु आगे सीढियां चढते समय अचानक संतुलन खो बैठे पीछे चल रहे मैथलीशरण जी ने उन्हैं फिसलने से सम्हाला, जब नेहरु जी ने धन्यवाद कहा तो दद्दा ने कहा था कि हम साहित्यकार देश के प्रतिनिधत्व को कभी फिसलने नही देगें, दद्दा के हाजिर जबाब से नेहरु जी उनके कायल हो गये थे।स्व.मैथलीशरण गुप्त की जयंती पर काव्य गोष्ठी का आयोजन इसी मौके पर शिवकुमार करेले ,शशिकांत नॉगरैया ,छोटेलाल कनकने, रामप्रताप सेठ,प्रशांत सेठ, अरविंद कनकने, अखिलेश नगरिया ,अमित मोदी,पीयूष सेठ , विशाल नीखरा ,शशांक नॉगरैया ,जगमोहन सरावगी, हरि शंकर सेठ,आनंद मोदी,रामप्रताप सेठ, रमेश चंद्र खर्द, राधा रमण नॉगरैया, शिव शंकर सेठ, मूलचंद रेजा, बृज बिहारी सेठ ,कैलाश रेजा ,राजेश सोनी ,अशोक रेजा, सतीश चन्द्र सेठ,सहित अन्य तमाम गहोई बन्धु उपस्थित रहे।
रिपोर्ट-अमित जैन बरुआसागर