सहारनपुर- कर्बला में नवासा ए रसूल हज़रत इमाम हुसैन अ० और उनके परिजनों की बेरहमी से हत्या करवाने के बाद यज़ीद बिन मावीया ने हज़रत महुम्मद स० के सभी परिवार वालों को क़ैद कर दिया जिसमें तत्कालीन इमाम हज़रत इमाम जैनुल अब्दींन के अतिरिक्त महुम्मद साहब की नवासी बीबी ज़ैनब मुख्यरूप से शामिल थीं।
हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इस्लामी जगत में यज़ीद के विरुद्ध बग़ावत के स्वर लगातार बढ़ते जा रहे थे जिसको शांत करने की नीयत से यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत महुम्मद स० के परिवार वालों को रिहा कर दिया मगर बग़ावत के स्वर किसी क़ीमत पर कम नहीं हो रहे थे यज़ीद की बैयत से इनकार कर चुके अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर यज़ीद का तख्ता पलट करने की फ़िराक़ में था और इस बीच हज़रत इमाम हुसैन अस० के कट्टर समर्थक मुक़्तार ए सक़्फ़ी नामक महान योधा को भी रिहा करना पड़ा जिन्होंने ज़ुबैरी ख़लीफ़ा के साथ मिल कर यज़ीद के विरुद्ध विद्रोह का एलान कर दिया। इस बीच यज़ीद बिन मावीया की संदिग्ध प्रस्तिथियों में मृत्यु हो गई और उसकी लाश तक नहीं मिली।
मुक़्तार की ताक़त लगातार बढ़ती जा रही थी और अंततः कुफे की सत्ता हासिल कर ली और फिर सर्वप्रथम हज़रत इमाम हुसैन अ० और उनके परिजनों के हत्यारों को चुन चुन के मारना शुरू कर दिया।
मुक़्तार और उनकी सेना द्वारा मारे गए यज़ीदी कमण्डरों में मुख्य रूप से शिम्र ज़ुलज़ोशन ,उमर बिन साद के अतिरिक्त हुरमुला नामक कुख्यात धनुषधारी शामिल था।
उधर हज़रत इमाम हुसैन का परिवार मदीना में वर्षों तक कर्बला की इस त्रासदी के बाद शोकाकुल अवस्था में था।उमर बिन साद और हरमुला जिसने हज़रत इमाम हुसैन के सबसे छोटे पुत्र जिनकी आयु केवल ६ माह थी उनको तीन शूल वाले तीर से मार कर शहीद कर दिया था।
उमर बिन साद और हुरमुला को क़त्ल किए जाने की सूचना जब हज़रत इमाम जैनुलअब्दींन को प्राप्त हुई तो कार्बल की दुखद घटना के लगभग तीन वर्ष बाद उनके चेहरे पर ख़ुशी का भाव देखा गया। हज़रत इमाम हुसैन अस० की शहादत के पश्चात मदीने के कई घरों में ईद का त्योहार एवम् शुभ कार्यों में ख़ुशियाँ मनाना बंद हो गईं थीं। परन्तु जब ये ख़बर मदीना के लोगों को मिली की समय के इमाम प्रसन हैं तो सब ने इस दिन को ईद ए ज़हरा अर्थात् हज़रत महुम्मद की इकलौती पुत्री हज़रत फ़ातिमा के परिवार की ईद कहा जाने लगा।
आज के दिन शिया समाज के लोग सुर्ख़ लिबास पहनते हैं मीठे पकवान बनाते हैं और यज़ीद और उसके अनुयाइयो पर लानत करते हैं।
आज भी यज़ीद के अनुयायी जहां तहाँ यज़ीद को बेगुनाह साबित करने की अथक प्रयास करते रहते है और हज़रत इमाम हुसैन अस० और उनके परिजनों की निर्मम हत्या का आरोप स्वयं शिया समुदाय पर लगाते हैं। जबकि इमाम हुसैन अ० के हत्यारों से बदला लेने वाले मुक़्तार ए सक़्फ़ी को यही वर्ग बुरा भला कहता है जबकि शिया समुदाय मुक़्तार को देवता स्वरूप मानता है। रबीअवल माह की नवी तारीक का एक और महत्व ये भी है की इस माह की आठवीं तारीक को शियो के ११वें इमाम हज़रत हसन अस्करी अस० की शहादत का दिन है और नवीं रबीअवल को शियो के अंतिम इमाम हज़रत ए इमाम ए महदी अस० को इमाम ए वक़्त अर्थात् समय का पेशवा घोषित किए जाने का दिन भी है। क्यों की हज़रत इमाम ए महदी अस० हज़रत महुम्मद स० की इकलौती पुत्री के १२वें वंशज हैं तो भी ये दिन ईद ए ज़हर के नाम से जाना जाता है।
– सहारनपुर से रविश आब्दी