बरेली। कोरोना संक्रमण सेहत के साथ-साथ जेब पर भी भारी पड़ रहा है। संक्रमित मरीज के उपचार मे तीमारदारों को लाखों रुपए पानी की तरह बहाने पड़ रहे हैं। बावजूद जान बचने की कोई गारंटी नहीं है। हालात यह हैं कि सामान्य मध्यमवर्गीय लोग इलाज के लिए दूसरों के सामने हाथ फैला रहे हैं। कर्ज के चक्रव्यूह में फंस रहे हैं। निजी अस्पतालों में उपचार पर लोगों को पांच-पांच लाख रुपए तक खर्च करने पड़ रहे हैं। जबकि बाहर जाने पर यह खर्चा बढ़कर 10 से 15 लाख रुपए तक पहुंच रहा है। शहर के संजयनगर निवासी राजेंद्र गंगवार की पत्नी को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया था। वह पत्नी को निजी अस्पताल लेकर गए। तीन दिन बाद भी हालत में सुधार न होने पर वह अपनी पत्नी को दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल लेकर पहुंचे जहां उनका करीब 10 दिन उपचार चला लेकिन उनकी पत्नी कोरोना की यह जंग हार गई। शव के साथ अस्पताल वालों ने उन्हें 14 लाख रुपए का बिल पकड़ा दिया। जबकि इससे पहले वे बरेली शहर में ही करीब 2.50 लाख रुपये खर्च कर चुके थे। दिल्ली तक जाने के लिए एंबुलेंस ने भी 40 हजार रुपए का किराया लिया था। उन्हें उपचार में 17 लाख के करीब खर्च करने पड़े थे, जबकि नोएडा आना-जाना, तीमारदार का रुकना रिश्तेदारों वगैराह का आना-जाने का खर्चा अलग से रहा। आज लोगों को कोरोना के इलाज के लिए 10 से 15 लाख रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। लोगों ने कर्ज लेकर अपनों का इलाज कराया। खासतौर पर मध्यम वर्गीय व निम्न वर्गीय मरीज वायरस के जाल से मुक्त होने के बाद कर्ज के नये जाल में फंस गये। इसके अलावा शहर के प्रेमनगर निवासी रामदास की पत्नी कोरोना से संक्रमित थीं। पहले वह घर पर आइसोलेट रहीं। फिर राजेंद्रनगर स्थित एक निजी अस्पताल में गई। जहां उन्हें भर्ती कर लिया गया। वहां भी हालत में सुधार न होता देख उन्हें शहर के ही दूसरे अस्पताल में रेफर किया गया। परिजनों के मुताबिक जब वह अस्पताल गई थी तब उन्होंने अपना बैग खुद अपने कंधों पर डाल रखा था लेकिन जब निकली तो चार कंधों की जरूरत पड़ गई। परिजनों के मुताबिक उन्होंने 40-40 हजार रुपए के चार रेमडेसिविर इंजेक्शन लगवाए थे। पैसा पानी की तरह बहाया गया। इलाज पर लगभग 7 लाख रुपए खर्च कर दिए, लेकिन जान नहीं बच सकी। परिजनों का कहना है कि निजी अस्पताल वाले मरीज का हाल नहीं बताते थे, केवल बिल बताया जाता था।।
बरेली से कपिल यादव