भारत में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने देश में माल और सेवाकर अधिनियम जिसका प्रचलित नाम जीएसटी है, को 1 जुलाई 2017 से लागू एवं प्रभावी किया। यह जीएसटी विशेषकर दो भागों में विभाजित किया गया जिसमें केन्द्रीय कर एवं राज्य कर। केन्द्रीय कर विभाग के सीधे केन्द्र सरकार के अधीन केन्द्रीय अप्रत्यक्ष एवं सीमा शुल्क बोर्ड से संचालित होता है जबकि राज्यों के स्तर पर राज्य कर विभाग राज्य सरकार के अधीन काम करने की व्यवस्था बनाई।
सरकार को विचार था कि जीएसटी के अन्तर्गत देश के व्यापारी को आसानी से पंजीयन प्राप्त करते हुए उद्योग-व्यापार करें और मासिक रुप से आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करता रहे, साथ ही देय कर को सरकारी कोष में जमा करवाकर देश के विकास में योगदान निभाये। इसके व्यवस्था के तहत व्यापारी को जीएसटीएन पंजीयन प्राप्त करने के लिए ऑनलाईन प्रार्थनापत्र दाखिल करते हुए प्राप्त करना होता है। जिसको केन्द्रीकर अथवा राज्यकर विभाग को आंवटिन करता होता है। इस प्रकार से जीएसटी को दो भागों में बांटते हुए लागू एवं प्रभावी कर दिया गया। प्रश्न यह उठता है कि कि 7 वर्षो के बाद भी भारत की आबादी क साक्षेप में मात्र लगभग 1.50 करोड़ ही पंजीयन क्यों हो पाये हैं। चर्चा होनी आवश्यक है और यह चर्चा केवल आम जनता में नहीं बल्कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार मुख्यालयों के स्तर होनी चाहिए। सच्चाई यह है कि किसी भी देश का राजस्व वृद्धि होने के लिए आवश्यक है कि देश का व्यापारी को अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से जोड़ा जाना आवश्यक है। और उसको जोड़ने के लिए आवश्यक है कि वह नागरिक सम्बन्धित विभाग से अपना पंजीयन प्राप्त करे।
अब चर्चा करते हैं प्रारम्भिक चरण में, जैसे पंजीयन प्राप्त करना। व्यापारी पंजीयन प्राप्त करने के लिए अपने अधिवक्ता के पास जाता है और पंजीयन प्रार्थनापत्र ऑनलाईन दाखिल करवाता है। दाखिल करने वाले को यह ज्ञात नहीं होता कि दाखिल प्रार्थना पत्र केन्द्रीय कर विभाग के पास जाएगा अथवा राज्य कर विभाग के पास। पंजीयन प्रार्थना पत्र दाखिल करने के पश्चात अब पहला काम प्रारम्भ होता है ‘प्रतीक्षा’ करने का क्षण कि कब आपत्ति लगेगी अथवा स्वीकृत होकर आ जाएगा!! लेकिन अब हालातों के अनुसार प्रार्थी व्यापारी और अधिवक्ता यह मान बैठा है कि यदि उसके द्वारा दाखिल प्रार्थना पत्र केन्द्रीय कर विभाग में चला गया है तो निश्चित रुप से दाखिल करने की तिथि से 28 से 30 दिन के अंदर आपत्ति आ जाएगी और वह आपत्ति ऐसी होगी जिसका उत्तर देना मुश्किल ही नहीं असंभव होगा। यह आरोप नहीं है बल्कि सच्चाई है। कहा जाये तो विभाग का सबसे लोकप्रिय आपत्ति होती है नियम 21 की जिसमें कहा जाता है कि ‘व्यापार स्थल पर कार्य नहीं होता पाया गया’ या फिर आपत्ति होती है प्रार्थना पत्र के साथ दाखिल प्रपत्र आदि ‘पठनीय’ नहीं है। या फिर आपत्ति होती है प्रार्थी को दिये गये मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया, उठाया नहीं अतः दाखिल पंजीयन प्रार्थना पत्र को कैंसिल करने की संस्तुति की जाती है।’ आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि यह आपत्ति 28 से 30 दिन के अंदर लगायी जाती है क्योंकि व्यवस्था के अनुसार दाखिल प्रार्थनापत्र के निस्तारण का 30 दिन का समय निर्धारित है। अब 30 दिन के बाद प्रार्थी को आपत्ति दूर करने का समय नहीं बचता अतः पंजीयन प्राप्त नहीं होता और थकहार के व्यापार प्रारम्भ ही नहीं करता या फिर अपंजीकृत रुप से व्यापार करते हुए सरलता से व्यापार करता है और सरकार को राजस्व के नाम पर कुछ नहीं मिलता। उधर समय-समय केन्द्र एवं राज्य सरकारों के उच्चाधिकारी अधिनस्थों को निर्देश देते हैं कि पंजीयन अभियान चलाते हुए अधिक से अधिक पंजीयन करायें।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गत वर्ष केन्द्रीय कर विभाग द्वारा प्राप्त पंजीयन प्रार्थना पत्र पर पंजीयन आवंटित करने में रुचि प्रदर्शित नहीं दिखायी बल्कि रिजेक्ट करने में अधिक रुचि ली। इस तथ्य को प्रमाण देता है पंजीयन रिजेक्शन दर जो कि 57.54 प्रतिशत की रही,जोकि सूचना के अधिकार से प्राप्त हुई। लेकिन केन्द्रीय कर विभाग के उच्चाधिकारियों ने संभवतः कभी यह समीक्षा नहीं की कि केन्द्रीय कर विभाग के पास कितने पंजीयन प्रार्थना पत्र प्राप्त हुए उनमें कितने प्रतिशत पंजीयन आंवटित किये गये और कितने प्रतिशत पंजीयन रिजेक्ट किये।
हां, अधिकारीवर्ग यह विचार अवश्य ही व्यक्त करते है कि दाखिल प्रार्थना पत्र इस आधार पर रिजेक्ट होते हैं क्योंकि बहुत ही फर्जी पंजीयन होने का आभास होता है। साथ ही यह भी कहते सुना जाता है कि लोग पंजीयन तो एप्लाई कर देते हैं लेकिन आवश्यक प्रपत्र आदि सलंग्न नहीं करते। इसके लिए हमारा सुझाव है कि-
दाखिल प्रार्थना पत्र का संस्तुति होना आवश्यक है, जैसे बिक्रीकर या वैट में हुआ करता था यांेकि बिक्रीकर या वैट में स्थानीय अधिवक्ता पंजीयन प्रार्थी को प्रमाणित करता था। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, साथ ही फर्जी पंजीयन भी रुकें।
यदि दाखिल पंजीयन प्रार्थना पत्र में कोई कमी पायी जाती है, जैसे अधिकृत व्यक्ति का नाम, पूर्ण पता, इसके सम्बन्धित कोई प्रमाण आदि को उपलब्ध कराने की अपेक्षा की जानी चाहिए।
व्यापार स्थल का भौतिक परीक्षण करना आवश्यक है तब इसके लिए एक अलग आधिकारिक टीम का गठन किया जाना चाहिए, जो क्षेत्र में जाकर भौतिक निरीक्षण करते हुए पंजीयन आंवटित करे।
दुःखद स्थिति यह है कि एक तरफ सरकार देश का राजस्व बढ़ाने के लिए प्रयासरत है लेकिन सम्बन्धित विभाग राजस्व बढ़ाने में कैये सहयोग कर रहा है, समीक्षा करनी होगी। साथ ही हम केन्द्रीय कर विभाग के उच्चाधिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि प्रति तिमाही को समीक्षा होनी कि अपलोडेट पंजीयन प्रार्थना कितने आंवटित हुए, कितने रिजेक्ट हुए और रिजेक्ट होने के पीछे कारण क्या रहा। समीक्षा का बिन्दु यह भी होने चाहिए कि क्या रिजेक्टेट पंजीयन प्रार्थना पत्र में मिलने वाली कमियों का दूर किया जा सकता था!!! क्योंकि राजस्व का प्रवेश द्वार पंजीयन है, जितने अधिक पंजीयन होंगे उतना अधिक राजस्व प्राप्त हो सकेगा। विचारणीय है कि प्रार्थी की स्थिति तब खराब हो जाती है कि पंजीयन प्रार्थना पत्र एप्लाई के बाद व्यापार करने के लिए माल खरीद लेता परन्तु पंजीयन रिजेक्ट होने के बाद जब कभी यदि विभागीय अधिकारी स्थल पर आ जाता है कि अपंजीकृत डीलर के रुप में उस पर धाारा-125 का अर्थदंड को वहन करना पड़ता है।
-पराग सिंहल