उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- आठ मार्च की सुबह अचानक 5 बजे ग्राम कुकना, पो जोस्यूड़ा (नैनीताल ) प्रेम सिंह धोनी पुत्र दीवान सिंह धोनी के पेट में तेज दर्द उठता है। आनन फानन में ग्रामवासी उसे डोली में सात किलोमीटर दूर कचलाकोट की ओर भागते है। पथरीले उबड़ खाबड़ रास्ते में बमुशकिल आधा सफर भी तय नही हो पाया था कि दर्द से तड़पते प्रेम सिंह ने दम तोड़ दिया। हताश निराश गाँव वालो को आज सड़क न होने और स्वास्थ्य सुविधाओ की कमी का दर्द अच्छे से महसूस होता है। काश सड़क होती स्वास्थ्य सुविधा मयस्सर होती तो यह जान बच पाती लेकिन इलाज के अभाव सारी उम्मीदो को धूमिल करके रख दिया। उनकी दो अबोध बेटिया है जिनके लालन पालन की जिम्मेदारी दुख से टूट चुकी माँ पर आ चुकी है। लेकिन इस घटना की जिम्मेदारी कभी तय नही हो सकेगी सरकार और व्यवस्थाऐ पहाड़ के लिऐ हमेशा इसी तरह दुखो मुसीबतो का सबब बनती रहेगी। इन बेटियो से उनके पिता को छीनने का दोष तो इस सरकारी तंत्र का है जो उनके गावो की माँगो को नही सुन रहा है, लोग कई सालो से सड़क के लिऐ चिल्ला रहे है लेकिन किसी विभाग, अधिकारी और नेता को फर्क नही पड़ता। फिर चाहे रास्तो पर यू ही कई जाने क्यो न दम तोड़ दे।
हम लाख बदलाव की बात करे लेकिन पहाड़ की एक स्याह हकीकत यही है। उपेक्षा और तिरस्कार के भंवर में फंसे पहाड़ के लिऐ नेताओ का हृदय संवेदनाहीन बन चुका है। उन्हे बिजनौर सहारनपुर का दर्द तो दिखता है लेकिन अपने पहाड़ के रोते बिलखते जीवन का दर्द नही। क्या आखिर इसीलिऐ माँगा था उत्तराखण्ड नेता जी ?
-इन्द्रजीत सिंह असवाल ,पौड़ी गढ़वाल