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उत्तराखंड! उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैंण चन्द्र नगर बनाओ?

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- चन्द्र नगर गैरसैंण, मध्य हिमालयी राज्यों में सर्वाधिक खूबसूरत राजधानी होगी। पाण्डुवाखाल से दीवालीखाल तक २५ किमी० लम्बाई एवं दूधातोली से नारायणबगड के ऊपर की चोटी तक २० कि०मी० की चौडाई क्षेत्र में फैला है जिसमें लगभग ३ हजार एकड यानि ६० हजार नाली वृक्षविहीन नजूल व बेनाप भूमि स्थित है। इसके अतिरिक्त भमराडीसैंण, नागचूलाखाल, पाण्डुवाखाल, रीठिया स्टेट सरीखे चारों ओर फैले खुबसूरत मैदान, बुग्याल स्थित हैं। यह पूरा क्षेत्र छोटी-बडी नौ पहाडियों व उनके बीच स्थित घाटियों में फैला है। गैरसैण में राजधानी बनने से इसके चारों ओर के ५००० गांवों के विकास में भी इसका सीधा लाभ मिलेगा।
भूगर्भीय संरचना की दृश्टि से रियेक्टर स्केल पैमाने पर यह उत्तराखण्ड के अन्य जोनों से सबसे कम खतरे पर है। चारों ओर खूबसूरत वनाच्छादित क्षेत्र हैं। राजधानी निर्माण में पर्यावरण का ०.५ प्रतिषत से क्षति नहीं होगी।
१९७९ में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना ही राज्य प्राप्ति हेतु हुई थी। अपनी स्थापना से यह दल एकमात्र क्षेत्रीय दल के रुप में उत्तराखण्ड राज्य के लिए संघर्श करता रहा है।उक्रांद के गठन के बाद तत्कालीन अध्यक्ष डा० डी०डी० पन्त, विपिन दा और श्री काशी सिंह ऐरी पूरे राज्य के भ्रमण पर थे, गाड़ी में ही अचानक पन्त जी ने पूछा कि हम राज्य तो मांग रहे हैं, लेकिन अपनी राजधानी कहां बनायेंगे। विपिन दा ने छूटते ही कहा कि गैरसैंण में बनायेंगे और पूरा खाका खींच दिया। उन्होंने उसी समय यह भी बता दिया कि दूधातोली में राजभवन होगा, यहां पर हाई कोर्ट होगा और यहां पर विधान सभा। इस प्रकार से उस दिन कार में गैरसैंण नाम के विचार का जन्म हुआ, जिसे उक्रांद ने वीर चन्द्र सिंह गढवाली के नाम पर बाद में चन्द्रनगर किया और १९९२ं में जब हमने बागेश्वर में राज्य का ब्लूप्रिंट जारी किया तो उसे जनता का भरपूर समर्थन मिला और उस दिन से गैरसैंण राज्य की आधिकारिक प्रस्तावित राजधानी हो गई।
उक्रांद के प्रयासों से तत्कालीन उत्तर प्रदेष सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की संभावनाओं हेतु वर्श १९९३ में ६ सदस्यीय कैबिनेट समिति कौषिक समिति का गठन किया। उक्त सरकारी समिति ने अल्मोडा, पौडी, काषीपुर, लखनऊ में बैठकें कर उत्तराखण्ड के सांसदों, विधायकों, जिला पंचायत अध्यक्षों, ब्लाक प्रमुखों, बुद्धिजीवियों एवं आम जनता की राय, अभिमत, उत्तराखण्ड राज्य निर्माण एवं राजधानी के संदर्भ में लिया था तथा प्रस्तावित राज्य की राजधानी हेतु जनमत संग्रह करवाया था। कौषिक समिति द्वारा करवाये गये जनमत संग्रह में ६७ प्रतिषत से अधिक जनता ने गैरसैण- चन्द्रनगर जनपद चमोली को राजधानी के रुप में स्वीकार किया। बाद में उत्तर प्रदेष के तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल बोरा द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने भी अपने व्यापक सर्वेक्षण के बाद गैरसैण क्षेत्र को राजधानी हेतु सर्वाधिक उपयुक्त पाया।
गैरसैण समूचे उत्तराखण्ड का केन्द्र बिन्दु है। उत्तराखण्ड के अन्तिम छोर से लेकर धारचूला, मुनस्यारी विकास खण्डों की अन्तिम सीमा से गैरसैण की दूरी लगभग बराबर है। कुमाऊॅ कमिष्नरी नैनीताल एवं गढवाल कमिष्नरी मुख्यालय पौडी से गैरसैण की दूरी समान है। उत्तराखण्ड के १३ जनपदों के जिला मुख्यालयों से गैरसैण तक बस द्वारा आसानी से ६ से १० घण्टों में सीधे गैरसैण पहुंचा जा सकता है।
यहीं नहीं कर्णप्रयाग से रामनगर तक तथा रानीखेत तक मोटर मार्ग का चौडीकरण करने के पष्चात यह दूरी और कम समय में पूरी की जा सकती है। जनपद पिथौरागढ के धारचूला मुनस्यारी से प्रस्तावित गरूड- धौणाई- तडागताल मोटर मार्ग के पूर्ण हो जाने पर इस क्षेत्र से गैरसैण की दूरी लगभग १०० किमी० कम हो जायेगी। हरिद्वार -कोटद्वार- रामनगर बीच के प्रस्तावित मोटर मार्ग के बन जाने से उत्तरकाषी, टिहरी व देहरादून जनपदों से भी गैरसैंण की दूरी ८० से १०० कि०मी० कम हो जायेगी। उत्तरकाषी, टिहरी से वाया श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए गैरसैण की दूरी मात्र ८ से १० घण्टों में आसानी से तय की जाती है। पौडी कमिष्नरी मुख्यालय से गैरसैण की दूरी अभी मात्र ६ से ७ घण्टे की है। यदि पौडी से मराडीसैण-धौरसैण का निर्माण कर दिया जाए तो यह दूरी और कम हो जायेगी।
गैरसैण हरिद्वार-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर कर्णप्रयाग से मात्र ४६ किमी० की दूरी पर पक्के मोटर मार्ग से जुडा है। पिथौरागढ जनपद से वाया थल-बागेष्वर-गरूड-ग्वालदम होते हुए सिमली से गैरसैण पक्के मोटर मार्ग से जुडा है। अल्मोडा-सोमेष्वर-द्वाराहाट होते हुए गैरसैण पक्के मोटर मार्ग से सम्बद्ध है। रूद्रपुर-हल्द्वानी- रानीखेत-द्वाराहाट-चौखुटिया होते हुए गैरसैण सीधे मोटर मार्ग से जुडा है। काशीपुर-रामनगर-भतरौंजखान भिकियासैण होते हुए वाया चौखुटिया गैरसैण तक पक्के मोटर मार्ग से सम्बद्ध है। इस तरह गैरसैण चारों ओर से मोटर मार्गो से जुडा हुआ है। और राज्य के अधिकांश हिस्सों से आसानी के साथ रेल एवं हवाई मार्ग से जुड़ने की अपार संभावनाएं हैं। इसके साथ ही राज्य से लगी देश की सीमाएं भी ज्यादा सुरक्षित हो जाएंगी और उत्तराखण्ड में पर्यटन, सेवा क्षेत्र, परम्परागत शिल्प, गृह, कृषि, बागवानी, पशुपालन, डेरी, कुटीर, एवं ग्रामोद्योग, जल, जंगल, जमीन, जीव और पर्यावरण संरक्षण और विकास तथा चकबंदी के प्रयासों को बल मिलेगा। शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार की समस्या का आसानी से निदान हो पाएगा।
राज्य को बनाने में हमें देश की आजादी से भी ज्यादा कुर्वानियां देनी पड़ी, मुजफ्फरनगर कांड में मां-बहनों के साथ जघन्य अत्याचार हुए, अलग उत्तराखण्ड की मांग एवं गठन से लेकर आज तक भारी जनमत के साथ राष्ट्रीय पार्टियां बारी-बारी से सत्ता और बिपक्ष में काबिज है, और, जानबूझकर सोचे-समझे षटयंत्र से पृथक राज्य की अभिधारणा एवं शहीदों के सपनों तथा आन्दोलनकारीओं के विजन के विपरीत कार्य कर रहे हैं, जिससे राज्य में ज्यादा से ज्यादा त्रासदी बढ़े और लोग स्थाई रुप से ठीक उसी तरह अपना सबकुछ छोड़कर भाग जाएं जैसे गोरिखियों के हमले व लूट-खसोट के दौरान लोग अस्थाई रूप में भागते रहे हैं। ताकि रोज के लिए इनके खुली लूट-खसोट का अड्डा उत्तराखण्ड बन जाए। इनकी नियति केवल और केवल सत्ता पर काबिज होना है। जिसके लिए ये किसी तरह अपने राजनीतिक बिरोधियों को कमजोर करने के लिए ये साम, दाम, दण्ड, भेद से केवल और केवल झूठ-फरेब, घृणा-नफरत, जाति-धर्म और विवाद-उन्माद फैलाने आदि की आसान व घटिया राजनीति कर रहे है। बांकी चीजें, जैसे राज्य की अभिधारणा, शहीदों के सपने, आन्दोलनकारीओं का विजन,, विकास- जनता, वादे-नाते आदि सब जाऐ भाड़ में।
जैसे कि आप जानते हैं, उत्तराखंड क्रांति दल, का उत्तराखंडियों एवं उत्तराखण्ड के हित के मुद्दों पर स्पष्ट विज़न है और उसी मिशन के लिए लगातार संघर्षरत है। और सभी लोगों से सहयोग की अपेक्षा रखता है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वालों को ये समझने की आवश्यकता है कि कोई भी पार्टी पांच साल में, अगले पांच साल के लिए मात्र ७० लोगों को अवसर दे सकती है, राष्ट्रीय पार्टियों के अधिकांश प्रत्याशी चुनाव के समय पार्टी में शामिल होने वाले होते हैं। पूराने कार्यकर्ताओं के हिस्से केवल शोषण ही आता है।
अत: अपने हित में राज्य के हित में तथा अगली पीढ़ी के हित में उक्रांद का साथ दीजिए। और उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी चन्द्र नगर गैरसैंण घोषित कराने हेतु, उत्तराखंड सरकार पर दबाव बनाने के लिए गैरसैंण सत्र के पहले दिन २० मार्च २०१८ को पर्याप्त: १० बजे बिधानससभा का घेराव हेतु गैरसैंण पहुंचने का काष्ट कीजिएगा।

– इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल

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