आजकल रुपया भी दोनों हाथों से बटोरने चाहिए और राजनीतिक आकाओं से रुआब भी दमदार‌ – नारायण बारेठ

बाड़मेर/राजस्थान- कौड़ियों के दाम सरकार से जमीन मिली , बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा किया और फिर मुड़ कर कभी नहीं देखा। अदालत ,राज निजाम और सरकारी संघटन सब बेबस और लाचार है। राजधानी जयपुर में दो तीन दर्जन प्राइवेट हॉस्पिटलों को रियायती दर पर जमीन मिली। राज्य में यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है।इस सरकारी दर वाली जमीन आवंटन के साथ शर्तें भी थी। लेकिन प्राइवेट हॉस्पिटल न शर्त मानते है , और न किसी राजनीतिक दलों और न ही सत्ता की परवाह करते है।

सरकार ने जमीन आवंटित करते वक्त इन अस्पतालों के साथ इकरार किया था। इसके तहत पच्चीस प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों का बिना पैसे इलाज दवा दारू करेंगे। अपने हॉस्पिटल में एक घंटे की गरीब मरीजों को देखने के लिए पुख्ता व्यवस्था करेंगे जिसमे गरीब मरीजों के लिए फ्री मेडिकल चेकअप होगा।साथ ही एक दर्जन बेड गरीब परिवारों के मरीजों के लिए सुरक्षित रखेंगे। शिकायते मिलती रही है। न पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ना ही ये सरकार कुछ कर पाई। 2014 में सरकार ने घोषणा की थी कि प्राइवेट हॉस्पिटल में हेल्प डेस्क बनेगी और रोगी मित्र तैनात होंगे। पर हालात आज भी जस के तस है।

रियायती दर से मिलने वाली जमीन पर हॉस्पिटल बुलंदी से खड़ा है। हॉस्पिटल अपने परिसर में दुकान ,केंटीन ,दवा की दुकान जैसे प्रतिस्ठानों के लिए जगह किराये पर और देते है। अच्छी आमदनी होती है।केंद्र सरकार ने लोक सभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि दिल्ली में 62 हॉस्पिटलों को रियायती जमीन आवंटित हुई है।अपोलो बड़ा नाम है।सरकार ने 1986 में निजी हॉस्पिटल के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किये। कहा इसमें एक तिहाई इनडोर और 40 % OPD निशुल्क होगी। डॉ रेड्डी तैयार हो गए। पेशकश की कि वे सालाना 10 हजार इनडोर और 30 हजार रोगियों को फ्री सुविधा देंगे। अंततः बात होते होते 1996 में करार हो गया। सरकार ने भी बड़ी राशि का निवेश किया होगा।

सरकार ने अपोलो को दिल्ली मथुरा रोड पर पन्द्रह एकड़ जमीन तीस साल के लिए लीज पर दी। किराया फक्त एक रुपया सालाना।अपोलो का सालाना टर्न ओवर 12 हजार करोड़ से ज्यादा है। फोर्टिस का वार्षिक टर्नओवर 4834 करोड़ है।भारत के कम्पीटिशन कॉमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है चुनिंदा बड़े अस्पतालों ने लोगो से हद से ज्यादा पैसा वसूल किया है। वे अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रहे है। इनमे गंगाराम,मेक्स ,फोर्टिस,बतरा,अपोलो और स्टीफन हॉस्पिटल शामिल है।अदालते कई कई बार इन अस्पतालों पर टिप्पणी कर चुकी है और आदेश जारी कर चुकी है। 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने शर्तो के मुताबिक जरूरतमंदों को इलाज की सुविधा न देने के लिए 2 लाख का जुर्माना लगाया। पर क्या फर्क पड़ता है। इन अस्पतालों की शृंखला में कई और भी हॉस्पिटल है। इनके लिए आपदा अवसर लेकर आती है।

मुंबई में देश के सबसे बड़े धनपति ने मां के नाम से हॉस्पिटल स्थापित किया। 2014 की बात है। खुलते ही शुद्ध लाभ पर जोर दिया। डॉक्टरों के नाम एक परिपत्र जारी किया ,कहा मरीज भेजने पर कट मिलेगा। 40 भर्ती पर एक लाख ,50 पर डेढ़ लाख और 75 से पार पर ढाई लाख। हर पेशे में अच्छे बुरे सब तरह के लोग होते है। डॉ हिम्मतराव महाड में प्रैक्टिस करते है। जब एक डायग्नोस्टिक सेंटर ने कट की राशि भेजी तो उन्हें यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल में शिकायत दर्ज कराई।कौंसिल ने हॉस्पिटल को फटकार लगाई। हॉस्पिटल ने माफ़ी मांगी।

आंकड़े है 7 प्रतिशत आबादी इलाज का खर्च उठाने वाले गरीबी रेखा के नीचे आ जाती है। 23 % इतने लाचार है कि इलाज का खर्च नहीं उठा पाते है। इलाज का भार हर साल 55 मिलियन को निर्धनता के कए में धकेल देता है। जब सरकारे इन बड़े नामो का कुछ नहीं कर पा रही है तो उखड़ती सांस और फ़टी जेब से हॉस्पिटल की देहरी पर पहुंचा साधारण आदमी क्या कर लेगा ? सरकारी हॉस्पिटल गंदे है ,सीलन और बदबूदार है। चमक दमक नहीं है। मगर जब कोरोना ने दस्तक दी ,ये ही सरकारी अस्पताल आम आदमी के लिए खुले हुए मिले और वही सरकारी अस्पतालों का मुस्तैद कोराना वारियर्स चिकित्सा स्टाफ।

उड़ीसा के बुर्ला में डॉ शंकर रामचंदानी एक रूपये की फीस लेकर इलाज करते है। दूसरी तरफ ऐसे भी है जो एक रूपये में जमीन लेकर बेबस भारतीयों का इलाज करने से ही मुँह मोड़ लेते है।इसी भूभाग पर एक भारतवर्ष है जिसकों आधुनिक युग में लोग इंडिया कहते है।

– राजस्थान से राजूचारण

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