इंदौर में यह पहला मौका था जब किसी जिला अभियोजन अधिकारी ने दुष्कर्म और हत्या के मामले में पैरवी की और दुष्कर्मी को फांसी की सजा के अंजाम तक पहुंचाया। सुनवाई के दौरान जरा सी लापरवाही 22 साल के करियर पर धब्बा लगा सकती थी। एक गलत सवाल पूरे प्रकरण की दिशा बदल सकता था। इन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए जिला अभियोजन अधिकारी अकरम शेख ने प्रकरण में अभियोजन की तरफ से पैरवी की।उन्होंने महज 13 दिन में ट्रायल खत्म किया। 7 दिन में 27 गवाहों के बयान कराए। सवा सौ से ज्यादा दस्तावेजों के जरिए कोर्ट को विश्वास दिलाया कि कटघरे में खड़े आरोपित ने तीन महीने की मासूम के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी हत्या को अंजाम दिया है। जिला अभियोजन अधिकारी अकरम शेख ने जुलाई 2017 में इंदौर में डीपीओ का पदभार संभाला।
अप्रैल 2018 के पहले तक वे सालों तक निचली अदालतों में शासन का पक्ष रखते रहे लेकिन राजबाड़ा क्षेत्र में तीन माह की मासूम के साथ हुई दुष्कर्म और हत्या की वारदात ने उनकी पहचान ही बदल दी। इंदौर में यह पहला मौका था जब शासन ने किसी अभियोजन अधिकारी को सेशन कोर्ट में दुष्कर्म और हत्या के मामले में पैरवी की जिम्मेदारी सौंपी थी।अकरम शेख ने भी इस चुनौती को स्वीकारा और महज 13 दिन में 27 गवाहों के माध्यम से आरोपित को फांसी के अंजाम तक पहुंचाया। मूल रूप से देवास निवासी शेख के परिवार का वकालात से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। 1996 में शेख ने विक्रम विवि से एलएलबी की परीक्षा पास की और पहले ही प्रयास में पीएससी के माध्यम से एडीपीओ के पद पर चुन लिए गए। सालों तक उन्होंने मनासा मंदसौर में इस पद पर काम किया। बाद वे इंदौर के एसपी ऑफिस में प्रतिनियुक्ति पर कानूनी सलाहकार बन गए।
जुलाई 2017 में उन्होंने इंदौर में बतौर डीपीओ अपनी नई पारी शुरू की। राजबाड़ा क्षेत्र में तीन महीने की मासूम के साथ दुष्कर्म और फिर उसकी हत्या के मामले में जब शासन ने उन्हें पैरवी कि जिम्मेदारी सौंपी तो इसका विरोध भी हुआ। बकौल शेख वकालात के करियर में वे पहली बार किसी ‘मर्डर वीथ रेप” में पैरवी कर रहे थे। हर कदम पर खतरा था। जरा सी लापरवाही केस की दिशा और करियर चौपट कर सकती थी। महज सात दिन में 27 गवाहों के बयान कराना चुनौतीपूर्ण था।
12 मई को कोर्ट ने अभियोजन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए दुष्कर्मी को फांसी की सजा सुनाई तो एक बार फिर इस बात पर यकीन हो गया कि इंसान ठान ले तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। सुनवाई के दौरान वे खुद दो बार पुलिस टीम के साथ मौका देखने गए ताकि पैरवी में कोई कसर बाकी न रह जाए। जितने दिन केस की ट्रायल चली अभियोजन कार्यालय ने अपना ध्यान सिर्फ इसी केस पर केंद्रित रखा।
शेख कहते हैं कि प्रासिक्यूटर के रूप में पुलिस, प्रशासन, बार और बेंच के बीच सेतू के रूप में काम करना बहुत ही मुश्किल होता है बावजूद इसके मैं अपने काम से पूरी तरह संतुष्ठ हूं। खुशी होती है कि ईश्वर ने मुझे आरोपितों को सजा के अंजाम तक पहुंचाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। शेख ने लंबे समय मंदसौर जिले में एडीपीओ के बतौर काम किया है। वे मानते हैं कि नशा अपराधों की जड़ है। नशे के कारोबार को नियंत्रित कर लिया जाए तो अपराधों पर लगाम कसना आसान हो सकता है।
राजेश परमार , आगर मालवा