बरेली। सूर्योपासना का पर्व छठ 28 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू होगा। 29 को खरना है। 30 अक्टूबर को छठ व्रत के दिन व्रती निर्जल व्रत रहेंगे। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर मंगल कामना करेंगे। व्रत की पूर्णाहुति 31 अक्टूबर को उदयकालीन सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगी। इसके बाद व्रती पारण करेंगे। आपको बता दे कि यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्य बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में छठी मैया के नाम से व्रत रखा जाता है और सूर्य देवता को अध्र्य भी दिया जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को भक्त दिन भर का उपवास रखते हैं। इस दिन (29 अक्टूबर) को खरना कहा जाता है। इस दिन सुबह व्रती स्नान ध्यान करके पूरे दिन का व्रत रखते हैं। अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए प्रसाद भी बनाया जाता है। शाम को पूजा के लिए गुड़ से बनी खीर बनाई जाती है। इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। छठी मैया की पूजा सूर्य को अध्र्य देने के लिए पानी में उतरना होता है और इसके लिए घाट तैयार किए जाते है। कुछ सालों पहले छठ पूजा बहुत छोटे स्तर पर मनाई जाती थी। साल 2014 से 69 जगह पर छठ पूजा आयोजित की जाती थी, लेकिन अब 85 स्थानों पर छठ पूजा आयोजित की जाती है। 30 अक्टूबर को डूबते सूर्य को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर अध्र्य दिया जायेगा। वहीं, 31 अक्टूबर को सूर्योदय के समय उगते हुये सूर्य को सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर अध्र्य दिया जायेगा। छठ पर्व की एक लोककथा कहती है कि पांडव राज्य विहीन होकर जंगल में भटक रहे थे, पांडवों की स्थिति से दु:खी द्रौपदी ने जुए में खोए राज्य की प्राप्ति, सुख-समृद्धि एवं शांति की कामना को लेकर कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य की उपासना की थी। द्रौपदी की अपार श्रद्धा-भक्ति से प्रभावित होकर सूर्य ने उसे मनोवांछित फल प्रदान किया, जिससे पांडवों ने अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त किया।।
बरेली से कपिल यादव