25 वर्षों से बंद पड़ी चनपटिया की चीनी मिल का कब होगा जीर्णोद्धार

बिहार/चनपटिया- चनपटिया प्रखंड के करीब 38 पंचायतों के बीस हजार परिवारों को एक चीनी मिल की दरकार है। ये किसान परिवार वे हैं जो लगभग 25 वर्षों पूर्व तक खुशहाल थे। इनकी खुशहाली का राज इनके गन्ना की खेती थी। यह इनकी नकदी फसल थी, जो इन्हें संपन्न बनाये हुए थी। चनपटिया चीनी मिल बंद होने के बाद ये संपन्न किसान परिवार फिलहाल कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं। चीनी मिल में ताला लगा तो इन किसानों की गन्ने की खेती भी बंद हो गयी। विधानसभा चुनाव के दौरान एफसीआई मैदान में सूबे के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी चनपटिया चीनी मिल चालू कराने का वादा किये थें। 2019 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय सांसद सह बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने अपनी चुनावी सभा में इस फैक्ट्री की चिमनी से धुआं उगलवाने का वादा किया था। यहां के बीस हजार से अधिक किसान परिवारों में एक आस जगी थी लेकिन वह वादा भी छलावा साबित हुआ। चुनाव संसदीय हो या विधानसभा की यहां के किसान व मजदूर सुगर फैक्ट्री के मसले को चुनावी मुद्दा बनाते रहे हैं। बनते मुद्दे को आश्वासन तो मिलते रहे हैं, लेकिन किसान-मजदूरों का मिल चलने का सपना अब तक पूरा नहीं हुआ।
*1932 की स्थापित चनपटिया में चीनी मिल 1994 में हो गयी बंद*
चनपटिया में ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन लिमिटेड ने 1932 में चीनी मिल की स्थापना की थी। यह बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिलों में शामिल थी। 1990 से इस चीनी मिल की दुर्गति शुरू हुई और 1994 के आते-आते इसमें पूरी तरह ताला बंदी हो गई। मिल बंद होने के साथ ही चनपटिया प्रखंड के कई गांवों में गन्ना की खेती भी बंद हो गयी। इन सैकडों गांवों के लगभग 20 हजार किसान परिवारों की नकदी फसल छिन गयी। साथ ही करीब हजार मजदूरों की नौकरी व दिहाड़ी चली गई। आज भी इस मिल के पास किसानों व मजदूरों का करोड़ों रुपये बकाया है।इनका कहना है कि यहां के किसानों को केवल चीनी मिल चाहिए। यहां कें किसान परिवारों के लिए केन्द्र सरकार की आय दुगनी करने की घोषणा से मतलब नहीं। हमें दुगनी आय नहीं चाहिए बस केन्द्र सरकार उनकी पुरानी आय का स्रोत लौटा दे। यहां के किसानों को अपने पुराने दिनों को याद करते हीं उनकी आखों से आंसू छलक पड़ते हैं। उनकी बकाया मजदूरी भी अबतक नहीं मिल पायी है।चीनी मिल बंद होने के दो वर्ष के बाद 1996 में तत्कालीन विधायक बीरबल शर्मा के प्रयास से कोआपरेटिव के माध्यम से इसे चालू कराया गया। लेकिन यह प्रयोग मिल प्रबंधन एवं किसानों के बीच सामंजस्य नहीं होने से बुरी तरह विफल हो गया। इसके बाद इसे चालू कराने का प्रयास किसी ने नहीं किया। इससे लोगों में मिल को लेकर जगी उम्मीद भी टूट गई। लोगों की उम्मीद एक बार पुन: तब परवान चढ़ी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माध्यम से मोतिहारी के एक व्यवसायी ने चीनी मिल को खरीदा। किसानों एवं कामगारों को लगा कि अब मिल का दिन लौटेगा। परंतु, इस बार भी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। उसके बाद से अब तक यह मिल अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है।
*1994 से बंद है चीनी मिल*
चनपटिया चीनी मिल वर्ष 1994 में बंद हो गया था। मिल बन्द होने के बाद जहां हजारों लोग गम में डूब गए, वहीं कुछ लोगों के लिए यह वरदान भी साबित हुआ। बन्दी के बाद मिल से करोड़ों के उपकरण गायब होते गए। मुट्टी भर लोगों ने बहती गंगा में जमकर हाथ धोये और देखते देखते अमीर बनते गए। इस खेल में छोटे से बड़े सभी शामिल रहे। इस कड़ी में एक तथाकथित प्रबंधक ने मिल को खोखला करने में अहम भूमिका निभाई। मिल चालू कराने का आश्वासन देकर कई कीमती उपकरणों पर हाथ साफ कर दिया। बाद में लोगों के विरोध के कारण वह मिल को छोड़ भाग निकला। अब यह मिल अपने गौरवशाली अतीत की छाया मात्र रह गई है या यूं कहें कि मिल का ढांचा मात्र ही अस्तित्व में है। हालांकि चीनी मिल के पास लगभग 200 एकड़ बेसकीमती जमीन है। देश मे नए उद्योग की स्थापना के लिए जहां जमीन का घोर संकट है ,वही यहां उपलब्ध जमीन यूँ ही बेकार पड़ा हुआ है।

– राजू शर्मा की रिपोर्ट

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