बाड़मेर / राजस्थान- कोई उनमे खुदा देखता है तो कोई भगवान.. लेकिन वे इंसानों में ईश्वर देखते है। उनके लिए इलाज को मोहताज इंसानियत की खिदमत ही ईश्वर की वंदना है। भारत में ऐसे अनेक कलयुगी भगवान रूपी डॉक्टर मौजूद है जिन्होंने अपना पेशा मानवता के लिए अर्पित कर दिया।
आदिवासी बहुत उड़ीसा के बुर्ला कस्बे में जब डॉ शंकर रामचंदानी ने इलाज से महरूम आबादी के लिए क्लिनिक खोली तो मानवता भी उनके आगे नतमस्तक हो गई। वे सम्भलपुर की सरकारी मेडिकल कॉलेज में सहायक प्रोफेसर है। यूँ तो आज के दौर में एक रूपये की कोई बिसात नहीं है पर डॉ रामचंदानी की एक रुपल्ली क्लिनिक गरीबो के लिए किसी भी पांच सितारा हॉस्पिटल से भी बड़ी मीनार है। वे कॉलेज में अपना काम भी करते है और सुबह शाम अपनी एक रूपये फीस वाले अस्पताल में लोगो का उपचार करते है और उनकी पत्नी शिखा भी डॉक्टर है। वो भी पति के साथ रोगियों की सेवा में हाथ बंटाती है l डॉ रामचंदानी उस समय सुर्खियों में आ गए जब लोगो ने उन्हें एक कुष्ठ रोगी को अपनी गोद में उठाकर ले जाते देखा। वे कहते है की मै अभिजात्य वर्ग का नहीं आम आदमी का अपना डॉक्टर हूँ।
बिहार के शेखपुरा जिले में बरबीघा के डॉ रामानंद सिंह बीते पेत्तीस साल से लोगो की सेवा कर रहे है। शुरू में वे पांच रुपये फीस पर मरीज का उपचार करते थे ,अब फीस पच्चास रुपया है।कई बार दवा का इंतजाम भी खुद करते है। हर रोज तीन सौ मरीजों को इलाज देते है। पिता किसान थे। डॉ सिंह अपनी जरूरते पूरी करने के लिए पाच एकड़ जमीन पर मयस्सर है। उनके पास पन्द्रह का स्टाफ है।जब रांची से मेडिकल की पढ़ाई पूरी की ,बहुत प्रस्ताव मिले। पर उन्होंने अपने जीवन में कभी रूपये पैसे को पाने के लिए पेशा नहीं बनाया और कहते है हमारे कोई इससे मान सम्मान कम नहीं हुआ है। हम अपनों से ही इसे से बहाल करेंगे।
कुछ ऐसे भी है जो विदेश में नौकरी करते थे पर अहले वतन की माटी ने पुकारा तो फिर दौड़े चले आये। डॉ मनोज कुमार इंग्लॅण्ड में सैक्टरिस्ट थे। उन्हें लगा उनकी माटी और मनुष्य उन्हें स्वर दे रहे है। पन्द्रह साल विदेश में रहने के बाद डॉ मनोज केरल में कोजीकोड आये और जरूरतमंद मरीजों को अपनी सेवा देना शुरू किया। वे ये सब बिना पैसे करते है।दिल्ली में डॉ किरण मार्टिन को लोग कच्ची बस्तियों की लाइफ लाइन कहते है। वे एक दरख्त के साये में क्लिनिक चलाती है।कोई पचास हजार की आबादी इलाज के लिए डॉ किरण पर निर्भर है। वे शिशु रोग विशेषज्ञ है।दिल्ली में जब 1988 में हैजा फैला तो डॉ किरण एक कच्ची बस्ती में गई और वे मंजर देख कर स्तब्ध रह गई। तभी उन्होंने अवाम के लोगों की सेवा करने का दृढ़ संकल्प लिया।
पुणे की सड़के उनके काम वाकिफ है। लोग डॉ अभिजीत सोनवणे को भिखारियों का डॉक्टर कहते है। डॉ अभिजीत ने बेसहारा लोगो की सेवा करने के लिए अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी। वे फिजिशियन है। डॉ अभिजीत न केवल उनका इलाज करते है बल्कि उन्हें भिखारियों को रोजगार देकर पैरो पर भी खड़ा करते है। वे अब तक 105 लोगो को रोजगार भी दिलवा चुके है। इनमे 350 ऐसे लोग भी थे जो फुटपाथ पर अपना जीवन बसर करते थे। डॉ अभिजीत ने उन्हें छत मुहैया करवाई है। वे मोटरसाइकिल पर घूमते है ,जहाँ भी कोई मदद का मोहताज दिखता है ,खुद को सेवा के लिए हाजिर कर देते है।
देहरादून में डॉ योगी बहुत उम्रदराज है। प्लास्टिक सर्जन है। वे जले हुए लोगो का इलाज करते है। हर रोज एक दर्जन ऑपरेशन करते है। डॉ योगी की बर्न क्लिनिक में लम्बी प्रतीक्षा सूची है। बेंगलोर के डॉ सुनील कुमार में लोग मसीहा के रूप में देखते है। वे अपनी कार में क्लिनिक चलाते है। अब तक लगभग एक हजार केम्प लगा कर एक लाख से अधिक लोगों का मुफ्त इलाज कर चुके है। कर्जा लेकर पढ़ाई की। पर कुछ घटनाओ ने उन्हें इतना उद्वेलित किया कि अपनी अच्छी नौकरी छोड़ कर मरीजों की सेवा में लग गए। कोरोना में अपने भाई को खो दिया। पर खिदमत का काम नहीं छोड़ा। इंदौर की डॉ भक्ति यादव ने कुछ अर्सा पहले जिंदगी को अलविदा कहा। वे इंदौर की प्रथम महिला डॉक्टर थी लेकिन उम्र भर बिना पैसे सेवा की। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इंदौर में मालिक भी थे ,मजदूर भी और लोग उन्हें मजदूरों की डॉक्टर कहते थे।
भारत में डॉक्टरी के पेशे में सेवा की लम्बी और अटूट परम्परा रही है। बी सी रॉय जैसे डॉक्टर भी थे जिन्होंने लोगो की सेवा भी की और जंगे आज़ादी में लड़ते हुए जेल भी गए। वे महात्मा गाँधी के नीजी डॉक्टर भी थे। डॉ रॉय बंगाल के मुख्यमंत्री भी रहे है।भारत में कोई तेरह लाख डॉक्टर है। उनमे सेवाभाव लिए काम करने वालों की कोई कमी नहीं है। कोई मरीजों के लिए बिल में जगह बनाता है और कोई उनके दिल में और बुल्ले शाह कहते है रब दिल विच वसदा है मेरे भाई ..l
– राजस्थान से राजूचारण