बाड़मेर /राजस्थान- जिले में खाकी जी, हैरान एवं परेशान है। टाइगर क्यूं चले गए, इसको लेकर कलेक्ट्रेट परिसर सहित जिले में अटकलों का दौर लगातार जारी है, एक नेता से लेकर दूसरे नेता को जिम्मेदार ठहराने की कानाफूसी जरूर हो रही है।कुछ बहुत ही दबंग पत्रकार अपनी हेकड़ी बता रहे हैं तो फिर आर टी आई एक्सपर्ट अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए नहीं थकता। खैर कुल मिलाकर हमारे खाकी जी भी औधोगिक नगरी दुबई से निकलने में ही अपनी ख़ैर समझने लगे। मारवाड़ी में पुरानी कहावत है कि जान बचीं तो फिर लाखों पाए….।
महज साल दो साल में ही उनके दूसरे जिलों में चले जाने को लेकर पुलिस की शहादत के बाद की कड़ी कार्रवाई एवं बजरी माफियाओं के खिलाफ बड़ी कार्यवाहियों पर जरूर मंथन हो रहा है, लेकिन चर्चा है कि उनके ही कुछ अधिनस्थ, उनका ही साथ नहीं दे पा रहे थे, महज सिपाहियों के तबादलों के लिए भी उन पर सिफारिशों का काफी बोझा था इसके बावजूद वह अपने तरीके से काम करना चाहते थे, जो कि दूसरों को रास नहीं आ रहा था। वास्तविकता क्या है, यह तो वही जाने, पर जिले में जिस तरीके से राजनीति अफसरशाही पर हावी हो रही है, वह आने वाले समय में ठीक नहीं है।
दो चार भाजपा नेताओं के चक्रव्यूह से भाजपा संगठन की मजबूती के लिए बाड़मेर जिले में बिखरते हुए नेताओं को तिनका-तिनका जोड़ रही है, जो रूठ गए है, उनके घर के आगे कमल पट्टिकाए लगा कर उन्हें मनाने की कोशिश की जा रही है, संगठन में सभी असंतुष्ट नेताओं को पद मिले, इसके लिए जिलाध्यक्ष ने लगभग एक लाख पद की भी खोज कर ली है, बाड़मेर जिले के जागरूक मतदाताओं ने सांसद महोदयजी से हमेशा की तरह झुनझुना थमा कर वोटरों को ठगने का भविष्य में मना कर दिया है। मतदाताओं द्वारा देशभर के अन्य राज्यों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानियों ओर सरहदी इलाकों की सुरक्षा व्यवस्थाओं को सम्हालने वाले भारतीय सेना के जवानों के लिए लम्बी दूरी की रेलगाड़ियों ओर हवाई सेवाओं को शुरू करने में कमर कसने लगे हैं।
बाड़मेर जिले में लें देकर मैदान ए जंग में मेवाराम जैन विधायक सबसे ज्यादा आमजन के सुख-दुख में हाजिरी लगाने से मशहूर है बाकी के पांच छः विधायक तो कभी कभार दर्शन देकर दुर्लभ हो जाते हैं। उनके अपने प्रचार प्रसार करने वाले जरूर सोशल मीडिया के हाईटेक प्रणाली से लैस साधनों पर वाहवाही बटोरने में दिन-रात लगे रहते हैं। इसके विपरीत जिले के कांग्रेसियों में बिखराव नजर आ रहा है, एक दूसरे पर भारी पडऩे की कोशिश में हर कोई जुटा है, सत्ता व संगठन में किसी का एक का दबदबा ना रहे, इसके लिए अब राजनीति से दूरी बनाए नेता भी अब अपने शक्तियों का प्रदर्शन करने लगे है। एक दूसरे की टांग खिंचाई का खेल शुरू होने से जिलाध्यक्ष भी चुप्पी साधे बैठे है। चर्चा है कि उपचुनाव के बाद जिले में कई राजनीतिक नियुक्तियां होनी है और संगठन में बड़ा बदलाव भी संभव है, इन्ही को लेकर कांग्रेस में गरमाहट नजर आना स्वाभाविक है।
बिजली महकमा साल भर विद्युत लाइनों के रखरखाव में उलझा रहता है, इसके बावजूद शहर एवं जिले की लाइनें ठीक नहीं रख पाया है, दीपावली त्यौहार के नाम पर फिर शहर में कटौती की कैंची चल रही है। चर्चा है कि यहां भी आला अधिकारियों पर अधिनस्थ कर्मचारी ही हमेशा भारी पड़ रहे है, चर्चा है कि एक दर्जन से ज्यादा विद्युत पोल हटाने जैसे उनके आदेश की पालना भी अफसर से लेकर ठेकेदार तक नहीं कर पा रहे है, वह भी चुप्पी साधे है, क्यूंकि उन्हें अब यहां से विदाई व पदोन्नति का ही इंतजार है।
शहरी क्षेत्रों के आस-पास पहले जल माफियाओं की कालाबाजारी सहित सैकड़ों खबरें भूलवश समाचार पत्रों की सुर्खियों में आई थी लेकिन आजकल जल देवता ही जल माफियाओं को जैसे पकड़कर बैठ गया है। ना शहर में जलापूर्ति बाधित ओर न ही कोई खास शिकवा शिकायत।
कोरोना की लगभग विदाई हो चुकी है, लेकिन डेगूं का बड़ा भारी डंक अभी भी आम जन के साथ जिला प्रशासन को परेशान किए हुए है। आज-कल लगभग हजार दो हजार मरीजों वाले अस्पताल की क्षमता में पांच छह सौ से अधिक मरीज डेंगू वायरस सहित अन्य मौसमी बदलाव के है, चिकित्सा महकमे में छुट्टियां फिर से सर्दियों में बंद हो गई है, नर्सिग स्टाफ जरूर खासा परेशान है।
चर्चा है कि सरकार ने कोविड संकट काल में करीब हजार – ग्यारह सौ कोविड हेल्थ सहायकों सहित डाक्टरों की जिले में नियुक्ति की, लेकिन यह सहायकों ओर डाक्टरों द्वारा इन दिनों शहर से लेकर गांवों में मच्छर मार रहे है, क्यूंकि सबसे पहले मच्छर मरेंगे तो बीमारियों से आमजन को मुक्ति मिलेगी। वही नर्सिग कर्मियों की पीड़ा है कि इन्हें मच्छर मारने के बजाए सरकार द्वारा समय-समय पर निशुल्क मिलने वाली दवाओं और इंजेक्शन लगाने व दवा देने में लगाते तो उन्हें भी राहत मिलती।
पब्लिक पार्क के पास औधोगिक नगरी दुबई बनाने वाले नगर विकास न्यास की एक शाखा में एक विशेष आलमारी खास चर्चाओं में है, यहां का बाबू भी उसी आलमारी की निगरानी कुंडली मारकर कर रहा है। इनमें कौनसी स्पेशल फाइलें है, इसको लेकर वह बाबू से भला कोई बेहतर नहीं जानता। चर्चा है कि खाकी से जुड़े एक विभाग की धोंस दे कर इसमें से फाइलें जरूर निकाली जाती रहती है। इधर, शहरी क्षेत्र में साफ़ सफाई रखने वाली नगर परिषद में भी कुछ ऐसा ही हाल है। जिम्मेदार जिले के आला अधिकारियों को शहर में औचक निरीक्षण करने का समय नहीं मिलता होगा भारी सरकारी शिविरों में कामकाज के बौझ से, कभी कभार मनचाहे तरीके से काम नहीं करने पर घर का रास्ता दिखाने की धमकी समय-समय पर कर्मचारियों को जरूर मिलती रहती है, कलक्ट्रेट से दूसरी पारी की फिल्डिंग जमाने आए एक बाबूजी इस सहन नहीं कर पाए और शायद मझधार में छोड़ कर चले गए।
– राजस्थान से राजूचारण