फतेहगंज पश्चिमी, बरेली। पूरी दुनिया में कोरोना हाहाकार मचा हुआ है। दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए प्रयासरत हैं। भारत में भी शुरू में तो ऐसा लगता था कि यहां कोरोना वायरस देखने को नहीं मिलेगा लेकिन धीरे धीरे दुनिया के कई देश कोरोनाग्रस्त हो गए जिसमें भारत बाहरवें मे स्थान पर आ गया। भारत में अन्य देशों की तुलना में कोरोना मरीजो की संख्या कम है, पर यह कोई गौरव की बात नहीं। पहले रोगी थोड़े थे, मृत्यु दर कम थी, पर अब रोगियों की संख्या 70 हजार पार कर गई है। कोरोना के खिलाफ संघर्ष करने वाले देश के उन लोगों को कोरोना योद्धा कहकर पूरा सम्मान दिया जो अस्पताल के अंदर या बाहर, सड़क पर या प्रयोगशालाओं में इस त्रासदी से निपटने के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन दुख है की कुछ कोरोना योद्धा कोरोना वायरस का शिकार हो गए। कोरोना संकट के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांचवीं बार देश के नाम संदेश दिया। चौपट हुई अर्थव्यवस्था को समेटने के लिए 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज की घोषणा की। लेकिन सच्चाई यह है कि इससे उन लोगों को शायद ही कुछ मिल मिले जो भूखा पेट छिपाने की कोशिश में लगे हुए है। आज दूसरे राज्यों से मजदूरी करने आए मजदूरों के धैर्य का बांध भी धीरे-धीरे टूट गया और घर जाने के लिए सड़कों पर उतर आए। सभी राज्यों की सरकारों ने केंद्र सरकार के सहयोग से लाखों श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचाने दूसरे राज्यों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को वापस लाने और विदेशों में फंसे भारतीयों तथा भारत मे फसे विदेशी नागरिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने में काफी कुछ काम किया है पर भारत जैसे 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में करोड़ों मजदूर हैं उनको संभालना एक बड़ी चुनौती है। जिसका सामना करने में देश की राज्य सरकारें सफल नहीं हो पा रही है। अब बारी है कोरोना योद्धा व नागरिकों की। जिसमें सफाई कर्मी, पुलिस के जवान, मेडिकल स्टाफ, डॉक्टर यह सब तो कोरोना योद्धा पर हम लोग क्या कर रहे है। जिन लोगों के पास घरों में खाने को कुछ नहीं है उनका बाहर आना तो समझ में आता है लेकिन बिना वजह भीड़ क्यो? क्या हमें यह शोभा देता है कि चौक चौराहे पर खड़ी पुलिस हमें मास्क पहनने के लिए कहें या लॉक डाउन का पालन करने के लिए लाठियां या चालान करें। आखिर हम क्यों यह है जानने की कोशिश कर पाए कि मास्क पहनना बहुत आवश्यक है। सोशल डिस्टेंसिंग उतनी ही जरूरी है जितना कि मास्क। सामाजिक दूरी का पालन कराने के लिए भी पुलिस को लाठियां चलानी पड़े। अब दुनिया भर के देश जैसे अमेरिका इटली समेत बहुत से देशों से यह आवाज उठनी शुरू हो गई है कि लॉक डाउन में अब हमें नहीं रहना है। केंद्र सरकार भी यह संदेश दे गई है कि कोरोना के साथ जीना सीखने की आदत डालनी होगी। इससे अच्छा है कि देश का हर नागरिक कोरोना योद्धा बने। कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क सामाजिक दूरी का पालन करें और सादा जीवन शुद्ध शाकाहारी भोजन के साथ जीवन व्यतीत करे। क्या सरकारों को यह भी समझाना पड़ेगा कि वार वार साबुन से हाथ धोये जाएं व सैनिटाइजर का प्रयोग किया जाए। ग्रंथों में स्वस्थ रहने की बातें लिखी गई जिसमें पश्चिमी सभ्यता की आंधी में हम जड़ों से इतनी दूर गए कि आज भारत इस महामारी से जूझ रहा है। मैं यह नहीं कहता कि अगर हम सभी अपने ढंग से जीवन व्यतीत करते तो यह महामारी न आती पर यह भी सच है कि नियमों का पालन हम अपने दैनिक जीवन में पहले से ही करते थे अगर उनका अब भी इस्तेमाल करते रहते तो महामारी भारत में इतना भयावह रूप नहीं होता। पुराणों में मार्कंडेय पुराण में लिखा है की स्नान करने के बाद या स्नान के समय पहने वस्त्रों से शरीर को नहीं पहुंचना चाहिए। बाधूल स्मृति के अनुसार महाभारत में भी यह संदेश दिया गया है सोने के समय या बाहर घूमने के समय या संध्या के समय अलग-अलग वस्त्र होने चाहिए और सभी कार्य स्नान करके शुद्ध आचरण से करने चाहिए। घरेलू जीवन में धर्मसिंधु का यह संदेश है कि नमक भी अन्य तथा सभी प्रकार के व्यंजन चम्मच से ही परोसने चाहिए। अगले सबसे महत्वपूर्ण बात जिसकी इस समय चर्चा है कि अपने नाक, मुंह तथा सिर को ढक कर ही रखना चाहिए। इसी मनुस्मृति कहते हैं कि बिना कारण अपनी नाक कान आदि इंद्रियों को बेवजह न छुए। इससे यह लगता है कि जो बातें हमारे दैनिक जीवन से छूट गई हैं जिसका संदेश ग्रंथों ने दिया है। जिसका पालन हमारे पूर्वज करते रहे अगर वह आज भी हमारे जीवन में आ जाएं तो हमारी शारीरिक क्षमता बढ़ेगी और हम रोगों से लड़ सकेंगे। कोरोना वायरस की बीमारी के दिनों में जो सबसे बड़ी बुराई दिखाई दी वह यह है कि हमने भ्रष्टाचार नहीं छोड़ा। जहां भी हाथ डाल सके वहीं से कुछ ना कुछ छीन लिया। भारत सरकार द्वारा भेजा जा रहा राशन क्यों आमजन तक नहीं पहुंच रहा है। मास्क और सैनिटाइजर बनाने व बेचने में कहीं ना कहीं अनाचरण हो रहा है। जो भी राशन गरीब व जरूरतमंद लोगों के लिए आता है वह उन सभी तक पहुंचे जिन के चूल्हे ठंडे हो रहे हैं। केवल राजनीति चश्मे से देखकर राशन न बांटा जाए। यह सब तभी संभव है जब हम सभी कोरोना वायरस के विरुद्ध संघर्ष में सैनिक के तौर पर काम करेंगे। नियमो का पालन हर नागरिक करें और दूसरों से करवाएं और इस त्रासदी को समाप्त करने में अपना सार्थक योगदान दे।।
बरेली से कपिल यादव