दिल्ली- सौराष्ट्रदेशे विशदेतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम भजन का सुमधुर गायन करने वाला स्वर थम गया है। इस भजन को गा कर भक्तों को मंत्रमुग्ध करने वाले वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ ब्रह्मलीन हो गये हैं। आज शैव परंपरा के अनुसार उनको समाधि दी गयी।
केदारनाथ धाम के मुख्य पुजारी वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ हमेशा के लिए समाधिस्थ हो गये हैं। श्री केदारनाथ धाम के वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ की 31 वर्ष की अल्पायु में हृदयाघाट से निधन होने से सभी स्तब्ध हैं।
वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ रावल 108 श्री गुरुलिंग जी महाराज के चार पुत्रों में सबसे छोटे थे।दक्षिण भारत के जंगम सेवा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मृत्युंजय हीरेमठ अविवाहित थे। उनका परिवार अब स्थाई रूप से उखीमठ (रुद्रप्रयाग) में ही निवास करता है। उनके बड़े भाई शिव शंकर लिंग मंदिर समिति केदारनाथ प्रतिष्ठान में पुजारी के पद पर हैं।