राजस्थान/बाड़मेर- पिछले दो तीन दशकों से राज्य में सरकार चाहे कोई भी हो लेकिन पुलिस तत्र के थानाप्रभारियो से लेकर पुलिस कर्मियों की नफरी में लाइन हाज़िर होना कोई बड़ी बात नहीं है, थोड़ी सी कमी मिलती तो फिर एक ही मागे, कारण चाहे छोटे होते हो या फिर बडे़ कटना तो आखिर खरबूजे को ही है तलवार को नहीं, आजकल सबको सिर्फ लाइन हाज़िर करने का बहाना चाहिए और पुलिसकर्मी झट से थाना क्षेत्र से पुलिस लाइन में जाने का दुख किसी को बता भी नहीं सकते हैं सिर्फ अच्छे समय का इन्तजार करते हुए कहते हैं अपना भी अच्छा समय आऐगा कभी न कभी लेकिन वो वक्त भी आने से पहले पुलिसकर्मी का पूरा पसीना निचोड़ कर रख देता है।
पिछले दो तीन दशकों से राज्य के थानाप्रभारियो को भी लाइन हाज़िर करने का आकड़े लगातार बढ़ रहें हैं और रही सही कसर पुलिसकर्मी भी साथ में शामिल होकर अपने मातहतों के साथ साथ चलो पुलिस लाइन हाज़िर देने के लिए…, थानो के प्रभारियों को लाइन हाजिर का रास्ता दिखा दिया गया। इस प्रकार थानाधिकारीयों का लाइन हाजिर होना हमारे आदर्श पुलिस थानों की कार्यप्रणाली पर एक सांवलिया निशान जरूर खड़ा करता हैं। दो तीन दशकों से मन्थन के बाद हमारे द्वारा इस लाइन हाज़िर कार्यप्रणाली की जाँच पड़ताल की तो कुछ बेहद चौकाने वाले ओर कुछ बेहद चिंताजनक विषय सामने आए।
बाड़मेर जिले में लगभग सभी पुलिस थानों के आसपास शरणस्थली वाली होटलों पर इन्तजार करते फरियादियों की भीड़ की स्थिति देखने पर शान्ति व्यवस्था और सुरक्षा व्यवस्थाओं के साथ ही बॉर्डर इलाके की सरहदों पर स्थित होने के साथ जिले से निकलने वाले छोटे बड़े हाइवे सडको पर होने के कारण एक तरह से पुलिस वालों के लिए कमाऊ पूत की तरह काम करता हैं। अक्सर इनके आगे की गई बेरीकेड्स सहित नाकाबंदी के बावजूद भी सफेदपोश तस्करी के छोटे बड़े ट्रक शराब तो गुजरती रहती हैं लेकिन कभी कभार गठजोड़ टूटने पर पकड़े भी जातें हैं जैसे सालभर में दो चार से लेकर आठ दस ट्रकों में पकड़ा गया अवैध शराब का बड़ा जखीरा। तस्कर चाहे छोटे हो या फिर बडे़ उन्हें तो सिर्फ ऊपरी कमाई से मतलब है और रूपये गलत काम करने पर मिलतें है सही काम धन्धे करने पर नहीं।
आजकल सभी जगहों पर शराब के साथ साथ ऐम डी, स्मेक, हिरोइन, चरस गाजा के साथ साथ अफीम व डोडा पोस्त की भी बिक्री अब ओर परवान चढ़ने लग गई हैं। क्योंकि पिछली सरकारों ने 2016 से डोडा पोस्त नशेड़ीयो के ठेके बंद कर दिए। लेकिन अभी भी भारी मात्रा मे नशेड़ी इसका सेवन गाँव ग्वाड और समाज की सामाजिक रैयाणो में नशा करते हुए देखा जा सकता हैं। अब जब कोई शिकायत करने पर तस्कर पकड़ मे आता हैं तो एक बड़ी रकम का ऑफर देकर छुट जाता हैं ओर पुलिसकर्मीयों द्वारा भी खानापूर्ति करती है मात्रा कम दिखाकर। देखा जाए तो ये सब स्थानीय राजनीतिक शह पर ही निर्भर करता हैं क्योकि आमजन में भी अक्सर चर्चा के दौरान सुनने को मिलता है कि लेनदेन का हिसाब रखते हैं और ये सब हिस्सा ऊपर तक भी जाता हैं। थानों में नियुक्त होने वाले किसी भी थाना प्रभारी को जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने से कोई सरोकार नहीं है। उनका ध्यान सिर्फ तस्करी रूपी कोई बड़ी मुर्गी पर ही टिका रहता है। हालांकि क़िसी की तकलीफ या फिर दुख दर्द की सुनवाई पर इनका कम ही ध्यान रहता हैं। ये लोग थाना क्षेत्र के पंच, सरपंच, प्रधानो ओर अन्य जनप्रतिनिधियो की आवभगत मे कोई कमी नहीं रखते जिससे इन लोगो के बीच इनकी एक शानदार साख क्षेत्र में बनी रहती हैं। इनकी तरफ से थानो पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं बनाया जाता है। जिससे ये लोग अपनी पर उतर आते है ओर हर बार पिछले चार वर्षो के दौरान एक समय ऐसा आया हैं। कि आखिरकर पानी नाक से ऊपर से गुजरने पर अमूमन टाइगर की गाज थाना प्रभारी और पुलिसकर्मीयों पर लाइन हाजिर के रूप में ही गिरती है उससे पहले ही खानापूर्ति, इस दरमियान कई केसों की फाइलें इधर उधर करदी गई। जिनका आज तक कोई पता नहीं चला हैं। यही नही अगर कोई छोटे बड़े मुकदमे में कैसे ही थानो मे आ जाता हैं।तो वहाँ गलबाहियाँ वाली पार्टी देखी जाती है कि ज्यादा कमाई देने वाले कोनसी हैं बस ले देकर, एक पक्ष को दबाकर मामला रफा दफा कर दिया जाता है। या फिर “एफ आर” डाल दी जाती हैं ओर सिर्फ दिखावे के कभी कभार छोटी बडी़ कार्यवाही जरूर कर दी जाती है।
महिलओं पर हो रहे अत्याचारो को देखकर लगता है कि पुलिस ने अपना मुँह ही उनसे मोड़ लिया हैं। अगर महिलाएं हिम्मत करके नजदीकी थाने पहुँच भी जाती है तो पुलिसकर्मी उसके साथ पूरी निर्दयता के साथ पेश आते हैं। ऐसी हरकतों से विश्वास उठने पर महिलाएं क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक के समक्ष न्याय के लिए गुहार लगाती है। उनके आश्वासनों पर थानो मे दुबारा आकर पेश होते हैं तो ओर थानाप्रभारी आग बबूल हो जाते हैं। वहाँ क्यों गए हेड साहब इसको अन्दर कर दो जेसे महिला मुजरिम खुद ही हैं। एक तरफ जहां केन्द्र और राज्य सरकार महिला शक्तिकरण को बढ़ावा देने की बात करती वहीँ इसकी दूसरी तरफ थानो मे महिलाओं पर हो रहे अत्याचारो के संबंध मे कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं होते है इसमें आवश्यक सुधार होना चाहिए कागजी खानापूर्ति की जगह धरातल पर।
आखिरकार जब जनता जनार्दन जब आक्रोश मे भर जाती हैं तो थानाप्रभारी को तुरंत संज्ञान लेकर लाइन हाजिर कर जता दिया जाता है कि हम सख्त कार्यवाही करते हैं और डियूटी के प्रति लापरवाही बरतने वालो को नहीं बख्स्ते। लेकिन सालों बाद वहीँ पदोन्नति लेकर पुनरावर्ती दोहराई जाती है थानेदार है हम यहाँ के भाई । लेकिन थानो के उच्च स्तरीय सुधारों के लिए कागजी फरमान जरूर जारी होता रहता है लेकिन धरातल पर कभी कोई सुधार नहीं किया जाता है।
आमजन से जब जानना चाहा की वो पुलिस के बारे मे आपलोग किसी तरह की राय रखते हैं तो सबसे पहले तो वो ये ही कहते कि भगवान भला करें हमे अपने जीवन में कभी भी किसी थाना ,कोर्ट, कचहरी जाना ही नहीं पड़े। लेकिन जिस किसी द्वारा सताए हुए को थाने का चक्कर लगाना पड़े उसका तो पुलिस से भरोसा ही उठ जाता है की हमारे यहाँ पुलिस सिर्फ पैसों वालो को ही अपना माई-बाप कहतीं है। वहाँ गरीब की कोई सुनाता ही नहीं उसको थानो में रिपोर्ट दर्ज करवाने से पहले है गेट के बाहर से ही फटकार कर भगा दिया जाता है। ओर ज्यादा रोने-धोने पर अगर केस दर्ज होता हैं तो सिर्फ कागजी कार्यवाही की जाती हैं। अपराधियों के मन में कोई भय नहीं रहता हैं।वो खुलेआम घूमते फिरते है ओर थानों में रिपोर्ट दर्ज करवाने वालों से अक्सर कहते है कि पुलिस वाले हमारे जेब मे ही रहते हैं अगली बार और जाना हमारे खिलाफ पुलिस में कार्रवाई करवाने के लिए।
– राजस्थान से राजूचारण