बरेली। वैश्विक महामारी मे अभी तक उभर रही मुक्तिधाम की तस्वीरे उस तंत्र को आइना दिखा रही है जो वक्त रहते चेत जाते तो कई जिंदगियां बच जाती। सरकारी आंकड़े जनपद मे कोविड से अब तक लगभग 259 मौतों का दावा कर रहे हैं। जबकि, मुक्तिधाम मे जली चिताओं और कब्रिस्तान मे बेहिसाब कब्रों की गिनती करें तो ये आंकड़े झूठे साबित होते हैं। नदियों में बहकर किनारों से टकरा रही लाशें भी इशारा कर रही हैं कि कही न कही चूक जरूर हुई है। महामारी ने जब दस्तक दी तो होटल, धर्मशालाएं, कालेज तक कोविड वार्ड बना दिए गए थे। तब आक्सीजन की कमी भी नही थी। अब इस महामारी की दूसरी लहर कहर बरपा रही है तो अस्पतालों में भी इंतजाम नहीं हो पा रहे। होम आइसोलेट मरीज इलाज को तरस रहे है। हाल जानने मरीजों के घर टीम नहीं पहुंच रही। माननीयों की मदद सिर्फ नसीहतों तक सीमित है। आक्सीजन की कमी की चर्चा क्या हुई, सिलेंडर सभी जुटाने लगे। जी हां, इन दिनों आक्सीजन सिलेंडरों की जुगाड़ पर हर कोई जोर दे रहा है। अफसर भी कतार मे लगे हुए है। पिछले दिनों आक्सीजन की कमी पर लंबी बहस छिड़ गई। कुछ तो घबरा ही गए। सोचने लगे कि भविष्य में जरूरत पड़ी तो आक्सीजन कहां से लाएंगे? फिर क्या था, सिलेंडर की खोज शुरू हो गई। इधर-उधर फोन खटखटाकर सभी जुगाड़ करने लगे। एक साहब की जुगाड़ बैठ गई। चहेते ने ई-रिक्शा से सिलेंडर घर पहुंचा दिया। सिलेंडर देखकर साहब ने गहरी सांस ली और मन ही मन बोले अब कोई डर नहीं। मगर साहब ने ये नही सोचा कि इसी तरह सिलेंडर बेवजह घरों में रखे जाएंगे तो अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिए कहां से उपलब्ध होंगे। सरकारी महकमों के अफसराें की जिम्मेदारी तो कहीं ज्यादा है। उन्हें सहयोग करना चाहिए।।
बरेली से कपिल यादव