सरस्वती शिशु मंदिर में बहनों ने भाईयों की कलाई पर बाधें रक्षासूत्र

बरेली- नैनीताल मार्ग नाथनगरी बरेली सरस्वती शिशु मंदिर के नन्हें मुन्ने सहपाठी छात्र छात्राओं ने भाई बहन के उसे त्यौहार को छात्राओं ने छात्रों को राखी बांधकर आज स्कूल में मनाया रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया नन्हा बच्चियों ने प्रधानाचार्य सुशील कुमार सिंह जी को भी राखी बांधी धार्मिक मान्यता है कि शचि ने यह रक्षासूत्र अपने पति इंद्र की कलाई पर बांधा, जिसके बाद राक्षसों को पराजित करने की शक्ति प्राप्ति हुई। इंद्रदेव की पत्नी शचि ने रक्षाबंधन के दिन उन्हें राखी बांधा था। इसलिए इस दिन राखी बांधने की परंपरा की शुरुआत हुआ. भविष्य पुराण में कहीं पर लिखा है कि सबसे पहले इंद्र की पत्नी शचि ने वृत्तसुर से युद्ध में इंद्र की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। इसलिए जब भी कोई युद्ध में जाता है तो उसकी कलाई पर कलाया, मौली या रक्षा सूत्र बांधकर उसकी पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बनाकर हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था और अपने बंधक पति श्रीहरि विष्णु को अपने साथ ले गई थी दूसरी कथा हमें स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में मिलती है। कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में असुरराज राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुंच गए। चूंकि राज बली महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग ली। बली ने तत्काल हां कर दी, क्योंकि तीन पग ही भूमि तो देना थी। लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णुभक्त राजा बली ने कहा, भगवान आप मेरे सिर पर रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बली को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया। लेकिन बली ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं माना जाता है कि राजसूय यज्ञ के समय जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया था तो तब उनकी अंगुली से खून बहने लगा था। इसे देखकर द्रौपदी ने तुरंत ही अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया था। इस कर्म के बदले श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देकर कहा था कि एक दिन मैं अवश्य तुम्हारी साड़ी की कीमत अदा करूंगा। इन कर्मों की वजह से श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी साड़ी को इस पुण्य के बदले ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और उनकी लाज बच गई। कहते हैं कि इसी के बाद रक्षा बंधन पर बहन द्वारा राखी बांधने की परंपरा की शुरुआत हुई थी उत्तर भारत में रक्षा बंधन वाले दिन अर्थात श्रावण की पूर्णिमा को राखी का त्योहार मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में समुद्री क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। नारियल पूर्णिमा खासकर सभी मछुआरों का त्योहार होता है। मछुआरे भी मछली पकड़ने की शुरुआत इसी दिन से भगवान इंद्र और वरुण की पूजा करने से करते हैं। पूजा के दौरान विधिवत रूप में उन्हें केल के पत्तों को समुद्र किनारे नारियल अर्पित किए जाते हैं। इसीलिए इस राखी पूर्णिमा को वहां नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं। दक्षिण भारत में यह त्योहार समाज का हर वर्ग अपने अपने तरीके से मनाता है। इस दिन जनेऊ धारण करने वाले अपनी जनेऊ बदलते हैं। इस कारण इस त्योहार को अबित्तम भी कहा जाता है। इसे श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहते हैं प्राचीनकाल से ही राखी के रूप में मौली या कलावा बांधने का प्रचलन रहा है। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है। इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है।शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली या राखी बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है। यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है संकल्प के लिए भी रक्षा सूत्र बांधा जाता है जिस तरह की राजा बली ने तीन पग भूमि को दान में देने के पहले जल छोड़कर संकल्प लिया था कि मैं तीन पग भूमि दान करता हूं। इसी तरह रक्षा बंधन पर हम बहन को उसकी रक्षा का वचन देते हैं। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने राखी या मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है।

– बरेली से शिवजी भट्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *