बाड़मेर- देश में कोरोना महामारी के दौरान ओर आजकल वापसी की संभावना आफ़तकाल और आपातकाल को देखते हुए हममें से अधिकांश ने अपने अपने तौर तरीके से इससे निपटने का इंतज़ाम किया है। आने वाला समय कैसा रहेगा यह कोई बता नहीं सकता है मौजूदा समय में भी कोराना भड़भड़ी वापस अपने रूद्र रूप में तांडव मचा देने वाली गति से दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।
साथ ही घरेलू राशन पानी का भी इंतज़ाम कर लिया है ताकि ज़रूरत पड़ने पर पहले की तरह महीनों खींच सकें,लेकिन मित्रों यहीं पर हम मनुष्यों को संवेदनशीलता का परिचय देने का भी वक़्त है।
दरअसल काम और भागमभाग के बीच हमारे आसपास क्या हो रहा है कौन कौन किस पीड़ा से गुज़र रहा है हमें समझ नहीं आता,ऐसा नहीं है कि हम सब संवेदनहीन हैं ।लेकिन अपनी जरूरतों और महत्वाकांछाओं के बीच उलझकर रह जाने से दूसरों पर क्या बीत रही है बस इसे हम महसूस नहीं कर पाते,तो फिर मुख्य मुद्दे पर आता हूँ।
दरअसल घर से आफिस के रास्ते से गुज़रने के दौरान सुनसान सड़क पर एक रिक्शेवाले को जाता हुआ देख अपनी गाड़ी धीमी कर उससे एक पता पूछना चाहा तब तक मेरी नज़र उसकी डबडबाई आंखों पर जा पड़ी,मैंने कारण पूछा तो बोला साहब रहने दो आप जाओ बाएं से कट लेकर तीन सौ मीटर आगे चले जाना मिल जाएगा आपको अपना ठिकाना,उसका जवाब सुनकर झुँझलाकर मैं वहां से आगे निकल गया लेकिन कुछ दूर आगे जाकर पता नहीं क्यों वापस उस रिक्शेवाले के पास फिर आ गया और अपनी गाड़ी किनारे लगाकर उसे पानी देकर पूछा भईया परेशान ना हो बताओ क्या हुआ,बस मेरा इतना कहना था और लगभग 40 साल का वो रिक्शे वाला भाई फुट फुट कर कर रोने लगा,मुझे समझ नहीं आया क्या करूँ,थोड़ी देर उसका मन हल्का होने दिया
फिर दुबारा पूछा बताओ कैसे मदद करूं फिर जो उसने कहाँ उसको सुनकर मुझसे भी नहीं रुका गया और बड़े दिन बाद जैसे मुझे भी मौका मिल गया हो थोड़ा अपने आपको हल्का करने को….
उस रिक्शे वाले ने बताया भईया पिछले ढाई तीन दिन से अनाज का एक दाना उसके पेट में नहीं गया..दिहाड़ी का काम होता है रोज़ कमाते हैं तो 2 वक़्त का खाना पूरे परिवार के साथ नसीब हो पाता है और इतना नहीं बच पाता की अगले दिन के लिए बचा सकें..पत्नी गुज़र चुकी है और 3 छोटे छोटे बच्चे हैं,परसो से लेकर आज तक पिछले 3 दिन में सिर्फ एक सवारी मिली थी जिसने 30 रुपये दिए थे तो उसमें 16 रुपये की बच्चे की बुखार की दवाई और 14 रुपये में थोड़ा सा खुदी वाला चावल खरीदकर मांड वाला भात बच्चों को खिला दिया,मेरे लिए कुछ बचा नहीं इसलिए भूखा पेट रहना पड़ा,खाने की तलाश में मंदिर भी गया की शायद कुछ वहां खाने को मिल जाए श्रद्धालु कुछ दे दें लेकिन वहां भी कोई मिला नहीं लगता है हमारे नसीब में बंद है।
और मैं बाबूजी तब से दो रोटी और सवारी के लिए इधर से उधर भाग रहा हूँ कि कहीं कोई सवारी मिल जाए लेकिन कोई मिला नहीं आखिर में मेरी हिम्मत जवाब दे गई और मैं रोते हुए बस ऐसे ही बदहवास सड़क पर रिक्शा लेकर चले जा रहा था,बस इतना सुनकर पता नहीं मैं कहीं शून्य में चला गया दिमाग काम नहीं कर रहा था,मैं कहीं खो सा गया था,कोई नहीं था दूर दूर तक,सड़क किनारे पेड़ के नीचे ये बातें चल रहीं थीं,ऐसा लगा जैसे ये घटना किसी अपने के साथ ही हो गई हो,खैर भावनाओं से बाहर निकल जब दिमाग की बत्ती जली तो सबसे पहले गाड़ी में पड़े अपने बैग को टटोला क़िस्मत से पूरा का पूरा लंच निकल आया जो घर से मुझे मिला था,और कुछ फल भी,रिक्शे वाले को खाता देख ना जाने क्यों मेरी आँखों से अपने आप पानी गिरने लगा,लेकिन तभी याद आया रोना मेरी फ़ितरत में नहीं,बचपन से ही किसी को भनक भी नहीं लगने देता रहा मैं,तो खुद पर काबू पाने के लिए रिक्शे वाले से कुछ क़दम की दूरी पर चला गया जब लौटा तो जो संतुष्टि मिली वो शब्दों में बयां नहीं कर सकता,इस दौरान रिक्शे वाला भइया आशीर्वाद देता रहा और खाता रहा,जब खा लिया तब मैंने पूछा अच्छा ये बताओ घर क्यों नहीं चले जाते बोला सर घर बहुत दूर है।
जा नहीं सकता कैसे जाऊं कहाँ जाऊं और जब लोग घरों से बाहर ही नहीं निकलेंगे तब सवारी भी नहीं मिलेगी हमारे को तो हम गुज़ारा कैसे करेंगे,रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया है, हमारा भी परिवार है और हम जैसे अनेक रिक्शेवालों और दिहाड़ी मज़दूरों के सामने जीवन यापन की समस्या हो गई है,फिर मैंने पूछा आपका एक महीने का खर्चा कम से कम में कितने पैसे में हो जाएगा,बोला भइया ढाई हज़ार में…मेरे पास उस वक़्त जेब में नकदी के रूप में पांच हजार रुपये मौजूद थे जो बिना देर लगाए मैंने भाई को दे दिया और दिल में बहुत कुछ समेटे हुए अपने घर पहुँच गया।
आप सभी लोगों से मेरी विनती है कि अपने आस पड़ोस में किसी को भी भूखा ना सोने दें,ये ईश्वर की सच्ची सेवा होगी। गांव घर परिवार में जब मुसीबत आती है तो सारे भाई मिलकर उसका मुकाबला करते हैं तो देश पर भी संकट परिवार के संकट जैसा ही होगा ।आइये हम सब मिलकर उसका सामना करें,इन गरीबों को अकेला न छोड़ें, इन भाइयों की मदद ज़रूर करें,हमारी इतनी संख्या है । अगर 2-2 लोगों की भी मदद करें तो सबका कल्याण हो जाएगा,और मुसीबत की घड़ी में मदद करना ही हमारी असली परंपरा और पहचान रही है,तो मदद ज़रूर करें ईश्वर हम सबकी मदद करेंगे…. हर हर महादेव आपबीती है और फिर आप कहेंगे कि हमें अपने लायक अभी तक नहीं समझा