श्रीलंका फिर बांग्लादेश और अब नेपाल में … नारायण बारठ

राजस्थान/बाड़मेर – वो पसीना गुलाब सी महक है ,वो पसीना इंकलाब की आवाज है‌। नेपाल के छात्र युवको ने सत्ता और सिंहासन की चूले हिला दी।भारत के छात्रों और उनके नेतृत्वकर्ता को सोचना चाहिए।कोई छात्र नेतृत्व और आंदोलन साधन सुविधाओं से खड़ा नहीं होता। बल्कि विचारो की साधना से खड़ा होता है। इसके लिए न आधुनिक सुविधाओं वाली गाड़ियों न स्कार्पियो ना किसी बाहरी कारोबारी की जरूरत होती है।

मैं चुनाव का प्रबल पक्षधर हूँ। मगर जब राज सत्ता ने चुनावों पर रोक लगा दी ,छात्र नेता लड़ाई के लिए खड़े हुए तो कोई जन समर्थन नहीं उमड़ा । एक वक्त था जब कैंपस का वातावरण परिसर के बाहर के माहौल को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता था,अब बाहरी शक्तिया कैंपस को निर्देशित करती है।

देश की सड़को ने वो मंजर देखे है जब छात्र नेता अपने समर्थको के साथ मजदूर और मजलूम ,गरीब और किसान के साथ हमेशा खड़े मिलते थे।यही वो दौर था जब देश को स्व सीताराम येचुरी ,अरुण जेटली,लालू यादव ,नीतीश कुमार ,ममता बनर्जी ,प्रकाश करात ,प्रफुल महंत ,सुशील मोदी , आरिफ मोहम्मद,अतुल अनजान ,मोहन प्रकाश और प्रो आनंद कुमार जैसे नेता मिले।तभी जमाना परिसर को लोकतंत्र की फुलवारी कहता था।

डॉ लोहिया कहते थे -जब सड़के वीरान हो जाएगी और ख़ामोशी ओढ़ लेगी तो देश की संसद आवारा हो जाएगी। बीते कुछ दशक छात्र आंदोलन के लगातार हाशिये पर चले जाने के रहे है। छात्र नेता न किसी मुद्दे पर बहस छेड़ते दिखे ,न तर्क तकरीर करते दिखे। राजनीति ने जब जम्हूरियत को दुनिया के सबसे खर्चीले चुनाव तंत्र में बदल दिया तो विद्यार्थी नेता हमेशा चुप रहे और फिर वे भी खुद महंगा चुनाव लड़ने के आदि हो गए। कभी नहीं पूछा कि संसद और विधान सभाये क्यों करोड़पतियों के क्लब बनती जा रही है। हमारे मुल्क में रोज दहेज की मांग 18 बेटियों को मौत की नींद सुला देती है ,हर दिन 80 बलात्कार होते है। लेकिन कोई नहीं बोलता। दफ्तर दफ्तर भ्रष्टाचार है ,पर कभी छात्र राजनीति ने मुद्दा नहीं बनाया। नेपाल में यही भ्रस्टाचार का सबसे ड़ा मुद्दा है।

पच्चीस साल हो गए। कोई छात्र नेता लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों पर बात नहीं करता।अदालत के आदेश पर कमेटी जरूर बनी थी। कमेटी कहती है पचहत्तर हाजिरी जरूरी होगी। प्रत्याशी पाच हजार से अधिक खर्च नहीं करेगा। कोई परिसर में नियमित कक्षाओं की बात नहीं करता। कभी विवि बहस मुबाहिसे , विचार विमर्श ,तर्क वितर्क के केंद्र होते थे। अब ये सब गायब है।

बनारस विवि के अध्यक्ष का दर्जा कभी सांसद से कम नहीं हुआ करता था। मुझे चार अध्यक्षों से मिलने का मौका मिला है – मार्कंडेय सिंह ,मोहन प्रकाश ,प्रो आनंद और आनंद प्रधान। मोहन प्रकाश अपने छात्र साथियो के साथ भिंडरावाले को ये कहने निकल पड़े कि हिंसा नहीं होनी चाहिए। वे अमृतसर पहुंचे ,मिले और अपनी बात कही।प्रोफेसर आनंद बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी आजकल वाराणसी, ज्वाहर लाल नेहरू युनिवर्सिटी दिल्ली दोनों के अध्यक्ष रहे ,दोनों जगह बतौर प्रोफेसर पढ़ाया भी।इन बातो की आज से तुलना करें तो सिर्फ मायूसी होती है।

आज़ादी की लड़ाई में भगत सिंह,हेमू कालानी ,खुदी राम बोस जैसे इंकलाबी भी छात्र राजनीति से निकले । ये मेरे मुल्क की छात्र राजनीति के लिए मौका है।हिंदुस्तान का अवाम आपकी पहल और रहनुमाई के लिए प्रतीक्षारत है -आंखे उस डगर पर लगी हुई है। उठो सेनानी ,उठो। ने नखत अमा के बुझते है ,सारा संसार तुम्हारा है।

– राजस्थान से राजूचारण

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