व्यंग्य : तारीफ़ का टूलकिट !

किसी की हँसी उड़ाना या आलोचनाएं करना हमारी जीभ का राष्ट्रीय पर्व बन चुका है. जीभ घुमा-घुमाकर शब्दों की वो रेसिपी परोसते हैं कि चखने वाले चकित रह जाएं ! वहीँ तारीफ़ करते वक्त हमारी जीभ मयखाने से निकलने वाले सोमरसियों जैसी लड़खड़ाने लगती है. पर ऐसा भी नहीं कि हम तारीफ़ नहीं करते ? करते हैं, अपने स्वार्थ और फ़ायदे के लिए जमकर तारीफ़ करते हैं. और चेहरे पर झूठ के भाव भी नहीं आने देते . सिने अभिनेता अमरीश पुरी का यह संवाद बड़ा चर्चित हुआ था,” ज़माना बहुत ख़राब है तोलाराम .”
अब हमारे पड़ोसी कलमकार जी इस बात से बेहद दुखी हैं कि कलम रगड़ते सालों बीत गए. कम्प्यूटर पर अंगुलियाँ घिसते हुए भी लम्बा समय हो गया . पर किसी अच्छे लेखक समूह ने उनकी तारीफ़ नहीं की . बड़ी नाइंसाफी है ! फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी . उनकी तारीफ नहीं हुई ,कोई बात नहीं . भाई लोगों की तारीफ करवाएँगे .
इसी सोच के साथ उन्होंने तारीफ़ का एक ‘टूलकिट’, तैयार किया है . आनेवाले समय में साहित्य जगत में इसकी जबरदस्त मांग भी होगी. फ़िलहाल यह स्टोर एक्सक्लूसिव है. उनके घर पर ही चल रहा है . जल्दी ही इसके आउटलेट्स देशभर में खुलने वाले हैं l

जैसे लेखन के हर क्षेत्र में असफल होकर लोग समीक्षक और आलोचक बन जाते हैं . फिर नागिन की तरह से चुन-चुनकर बदला लेते हैं; वैसे ही टूलकिट से तारीफ के पहाड़े याद करवाए जाएँगे . इसे खासतौर पर तैयार किया गया है . सोशल मीडिया से लेकर जनमंचों तक सिर्फ और सिर्फ उन्ही लेखकों को तारीफ मिलेगी जो इसका इस्तेमाल करेंगे . शुरुआत में ये टूलकिट्स मुफ्त में बाँटे जाएंगे .
टूलकिट में वह सभी औजार हैं जो आपकी तारीफ के ढीले पड़े नट बोल्ट्स को इस तरह कस देंगे कि फिल्म ‘महान’, का गीत ‘जिधर देखूँ ,तेरी तस्वीर नज़र आती है’, चरितार्थ होने लगेगा . दुनिया आपकी तारीफों के उजाले से रोशन होने लग जाएगी . साम,दाम,दण्ड,भेद की नीति को चरितार्थ करने के लिए सारे जुगाड़ करने पड़ते हैं ! महाभारत के युद्ध मैदान से चला ‘आपातकाले मयार्दा नास्ते’, का सिद्धांत यहाँ भी प्रासंगिक बना हुआ है . साहित्य का क्षेत्र भी किसी रणभूमि से कम थोड़े ही है ! उन्होंने एक नया मुहावरा भी गढ़ दिया है- ‘एवरी थिंग इज करेक्ट इन लव एंड लिटरेचर .’
आजकल तारीफ करवाने के लिए जगह-जगह कारखाने चल रहे हैं इसीलिए टूलकिट बनाने का यह कार्य शुरू किया है . अब आप पूछेंगे कि इसमें क्या-क्या है ? आप जानने को उत्सुक हो रहे हैं . होंगे ही . अपनी तारीफ सुनने के लिए बड़े-बड़े दिग्गज उतावले होते दिखाई देते हैं . लीजिए खुलासा कर ही देते हैं . इसमें एक शपथ- पत्र है, जिसमें लिखा है, ‘ तू मुझे धर्मेन्द्र कह कर पुकार, मैं तुझे अमिताभ बच्चन कहूँगा .’ हाँ यह चालू जुमला है . पर, यह अब शपथपूर्वक कहना और देना पड़ेगा , तारीफ भी आजकल द्विपक्षीय सौदा हो गई है .
टूलकिट सोशल मीडिया के विभिन्न साहित्यिक समूहों में शामिल लेखकों की सारी मुश्किलें दूर कर देगा . इसके जरिए आपको समूहों के भीतर चुपचाप अपना एक-एक छोटा समूह गठित करना होगा . तारीफ के टूल किट में अलसुबह से देर रात तक हल्लाबोल स्टाइल में कार्य करने के टूल्स हैं . कृपया इसकी रणनीति का ज़्यादा खुलासा नहीं करें . अपने भीतरी समूह को मजबूत करने के लिए ‘दुश्मन के दुश्मन, दोस्त’, का फंडा भी काम में लें . ध्यान रहे, बाहर से आपको निर्गुट बने रहना होगा .
आपकी रचना पर सबसे पहले समूह के भीतरिये तारीफ़ के पुल बाँधने शुरू करेंगे . फिर आप अपने सगे सम्बन्धियों , दोस्तों , जान-पहचान वालों को फुनियाइये . आपकी भूरी-भूरी प्रशंसा कर आपके गाल लाल करने का आग्रह करिए . कुछ ही देर में आपकी तारीफों से फेसबुक और व्हाट्सएप की बगिया में रंग-बिरंगे फूल खिलखिला उठेंगे . तारीफ के लिए कुछ मुर्गे भी चाहिए होंगे जो अलसुबह बांग देकर प्रशंसकों को जगाने का काम भी करेंगे !

यहाँ एक खतरा मंडराने की सम्भावना बनी रहेगी . लोग आपकी तारीफों की बाढ़ को रोकने के लिए अपने आपदा प्रबंधन दल को सक्रिय कर सकते हैं ! चिंता न करें , जैसे ही कोई, किसी दूसरी अच्छी रचना पर चर्चा शुरू करे अथवा दूसरे साहित्यकार की तारीफ होने लगे तो ‘यलगार है’, के जय घोष के साथ टूट पड़ें l
आपदा में अवसर के सिद्धांत के तहत आपकी टीम के सभी सदस्य; आपकी रचना की तारीफ के रण में शब्दों की तलवारें भांजते हुए कूद पड़ें . लाइक्स के घोड़ों पर सवार होकर उसकी टापों से समूह को गुंजायमान कर दें . यदि इससे काम न बने तो आप किसी नई किताब या बड़े लेखक के उपन्यास की चर्चा भी शुरू करवा सकते हैं, इससे चर्चा का रुख बदल जाएगा ! और कोई आपत्ति भी नहीं करेगा . कोई कालजयी रचना चस्पा कर दें . सारा समूह उस पर टिप्पणी करना शुरू कर देगा,जैसे अपने हक के लिए लड़ना पड़ता है, वैसे ही तारीफ पाने के लिए भी जूझना पड़ता है बाबूमोशाय !

– राजस्थान से राजूचारण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *