बरेली। दीक्षांत समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने उपाधि और पदक हासिल करने वाले विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने माता-पिता और गुरुओं को कभी न भूलें। उनके श्रम और परिश्रम के बिना ये संभव नहीं था। उन्होंने कहा कि दीक्षांत का मतलब शिक्षात नहीं, बल्कि दीक्षांत एक नए जीवन की शुरुआत है। आप अपना लक्ष्य निर्धारित कर शिखर पर पहुंचना चाहेंगे, ये उसकी नींव है। शिक्षा से जो संस्कार मिलते हैं, उनसे ही व्यक्ति का निर्माण होता है और उसी से समाज का निर्माण आपको करना होगा। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद संस्कारयुक्त शिक्षा की बात करते थे। कोरोना काल में डॉक्टरों ने जो किया वह एक उदाहरण है। उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाई। मगर वो कौन सी शिक्षा है जो डॉक्टरों को आतंकी बनाती है। शिक्षा मानयता की रक्षा के लिए होती है, दानव बनाने के लिए नहीं होती। वो कौन सी शिक्षा है जो बच्चों के हाथ में कलम नहीं देती बल्कि पत्थर देती है। वो कौन सी शिक्षा है जो बच्चों के हाथ में कंप्यूटर नहीं बम देती है। हमें इससे कैसे निजात मिले इसका संकल्प लेना होगा। शिक्षा वो है जो ज्ञान-विज्ञान सिखाए, शिक्षा वो है जो स्वावलंबी बनाए। मगर आज जो शिक्षा कुछ लोगों को मिल रही है उन्होंने अपने लिए ज्ञान विज्ञान के दरवाजे बंद कर लिए है। केवल एक पुस्तक से शिक्षा नहीं मिलती। सरदार वल्लभ भाई पटेल से हमें शिक्षा मिलती है कि राष्ट्र की एकता के लिए हमें समर्पित रहना चाहिए। बिरसा मुंडा के आदर्शों से हमें शिक्षा मिलती है। वंदेमातरम केवल गीत नहीं बल्कि एक उद्घोष था जो मानव जाति को चेतना देता था।।
बरेली से कपिल यादव
