प्रयागराज। विगत कुछ दशकों में स्थानीय प्रलोभन की राजनीति ने देश को जानबूझकर एक ऐसे दिशा में धकेल दिया है जहां पर मुफ्तखोरी की पराकाष्ठा ने भारत देश के विकसित व आत्मनिर्भर बनने के राह में रोड़ा अटका दिया है।
जानकारी के अनुसार मिफ्त सरकारी योजनाओं पर बोलते हुए आज वरिष्ठ समाजसेवी अधिवक्ता आर के पाण्डेय ने कहा कि मुफ़्त दवा, मुफ़्त जाँच, लगभग मुफ़्त राशन, मुफ़्त शिक्षा, मुफ्त विवाह, मुफ्त जमीन के पट्टे, मुफ्त मकान बनाने के पैसे, बच्चा पैदा करने पर पैसे, बच्चा पैदा नहीं (नसबंदी) करने पर पैसे, स्कूल में खाना मुफ़्त, मुफ्त जैसी बिजली 200 रुपए महीना, मुफ्त तीर्थ यात्रा, मरने पर भी पैसे, जन्म से लेकर मृत्यु तक सब कुछ मुफ्त की सरकारी योजनाओं से लैश भारतवासियों का जीवन अब अकर्मण्य बनता जा रहा है। सत्तालोलुप भावना में मुफ़्त बाँटने की होड़ मची है फिर कोई काम क्यों करेगा ? देश का विकास मुफ्त में पड़े-पड़े कैसे होगा?
बता दें कि विगत कुछ दशकों से लेकर वर्तमान में एक ऐसी पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है या हमारे नेता बना रहे हैं जो पूर्णतया मुफ़्तखोर हो गए हैं। अगर आप उन को काम करने को कहते हैं तो वो गाली देकर कहते हैं कि सरकार क्या कर रही है?
आर के पाण्डेय एडवोकेट ने समाज को आगाह करते हुए कहा कि स्मरण रहे यह मुफ़्तखोरी की ख़ैरात कोई भी पार्टी अपने फ़ंड से नही देती वह टैक्स दाताओं का पैसा इस्तेमाल करती है। हम नागरिक नहीं परजीवी तैयार कर रहे हैं! देश का अल्प संख्यक टैक्स दाता बहुसंख्यक मुफ़्त खोर समाज को कब तक पालेगा ?
जब ये आर्थिक समीकरण फ़ेल होगा तब ये मुफ़्तखोर पीढ़ी बीस-तीस साल की हो चुकी होगी। जिसने जीवन में कभी मेहनत की रोटी नही खाई होगी वह हमेशा मुफ़्त की ही खायेगा! नहीं मिलने पर ये पीढ़ी नक्सली बन जाएगी, उग्रवादी बन जाएगी पर काम नही कर पाएगी!
इन सबके बीच यक्ष सवाल यह है व सोचने की बात है कि सरकारें कैसे समाज का व कैसे देश का निर्माण कर रही हैं?