राजस्थान- बालोतरा जिले के बायतु विधायक हरीश चौधरी ने बाड़मेर जिला मुख्यालय पर पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश में आज अनेकों मुद्दे है, वर्तमान हालातों और राजनीति में आजकल भाषण और बातों का ट्रेंड आ गया है। ज़ब पीएम नरेंद्र मोदी हमारे थार के बीकानेर में आकर बोलते है कि रगो में खून नहीं सिंदूर बह रहा है, इससे पहले 2014 में प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरे खून में पैसा बहता है, व्यापार बहता है। आज जिस मुद्दे पर आपसे रूबरू हो रहा हूं, उससे उम्मीद करता हूं कि इसके बाद प्रधानमंत्री ही नहीं हम सबके रगों और मन में किसानों, काश्तकारों और प्रकृति को बचाने की भावना आएगी और यह मुद्दा है बढ़ती हुई हाईटेंशन लाइन्स का, चौधरी ने कहा कि एक व्यक्ति, एक विचारधारा लड़ाई नहीं लड़ सकते, हमें सामूहिक रूप से यह लड़ाई लड़नी होंगी।
चौधरी ने कहा कि आज थार क्षेत्र में सोलर कंपनियों द्वारा टावर स्थापित कराने के मामले में जो प्रक्रिया बनाई जाती है उसमे पारदर्शिता नहीं है और मुआवजा निर्धारित करने का मजबूत तरीका नहीं है। कंपनियों द्वारा प्रत्येक किसान की पहुंच के हिसाब से उसके हालातों को देखते हुए मुआवजा तय किया जाता है। किसी किसान को एक लाख दे दिया जाता है जबकि जो किसान विरोध करते हैं उन्हें ज्यादा भी दे दिया जाता है। अभी हाल में भणियाणा में प्रधान को कंपनी द्वारा तीन लाख का मुआवजा दिया गया, जबकि बाकी किसानों के मामले में कंपनी चाहती है कि स्थानीय पुलिस बल से डरावना माहौल पैदा कर टावर लगा दिए जाएं। इसी तरह सनावडा में पहले कंपनी पुलिस लेकर टावर लगाने पहुंच गई लेकिन बाद में जब राजनीतिक दबाव आया तो किसानों के साथ बैठकर समझौता किया गया। टेलीग्राफ एक्ट के तहत दोनों पक्ष आपत्ति दर्ज करवा सकती है, जिला कलेक्टर ने एक भी आपत्ति दर्ज नहीं की। प्रति पोल से जो किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए वो लाइजनिंग के नाम से बिचोलियों द्वारा लाखों रूपये लूटे जा रहे है।
हरीश चौधरी ने कहा कि टावर की लोकेशन के संबंध में गजट में प्रकाशन किया जाता है। इसमें कायदे से स्पेसिफिक खसरा नंबर का मैशन होना चाहिए लेकिन कंपनी द्वारा सिर्फ गांव का नाम दिया जाता है उसके बाद खसरो का चयन मनमर्जी से किया जाता है, इससे किसानों की सुनवाई का अधिकार प्रभावित होता है।
चौधरी ने कहा कि अगर कोई किसान अपने खसरे में टावर लगवाने से विरोध करता है तो इसमें कानूनी प्रक्रिया यह है कि कंपनी द्वारा 5/16 टेलीग्राफ एक्ट के तहत जिला कलेक्टर के सामने प्रार्थना पत्र पेश की जाएगी। लेकिन कंपनी द्वारा इस प्रक्रिया को अपनाने की बजाय सीधा पुलिस बल को साथ लेकर बलपूर्वक टावर लगवाएं जाते हैं। चौधरी ने बताया कि प्रति पोल से जो किसानों को हक मिलना चाहिए वो लाइजनिंग के नाम से लुटा जा रहा है।
हरीश चौधरी ने कहा कि कोई किसान टावर का विरोध करता है तो कंपनी को कलेक्टर के समक्ष प्रार्थना पत्र लगाई जानी चाहिए, जिला कलेक्टर द्वारा उस पर स्पीकिंग ऑर्डर करना चाहिए जिसमें स्पष्ट लिखा हो कि मुआवजा कितना मिलेगा और विरोध करने पर किसान को क्या सजा मिलेगी अगर किसान इस फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह सक्षम अदालत में इसकी अपील कर सकता है, लेकिन वर्तमान में क्या हो रहा है कि जिला कलेक्टर द्वारा कोई लिखित आदेश दिया ही नहीं जा रहा, मनमाने तरीके से पुलिस जाकर बल प्रयोग कर रही है अब अगर किसान चाहता भी है कि वह अदालत के समक्ष अपील करें तो उसके पास लिखित में कोई आदेश ही नहीं है. जिसकी अपील वह कर सके यह किसानों के मौलिक अधिकारों का हनन है।
कंपनी द्वारा एक टावर के लिए कितना पैसा निर्धारित किया गया है. सम्पर्क कर्ता को कितना पैसा दिया गया है, टावर निर्माण पर कितना पैसा आता है, मुआवजे के लिए कितना पैसा रखा गया है इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया जाता कंपनी की सोच यह रहती है कि सम्पर्क कर्ता को पैसे दे दिए जाएं, और सम्पर्क कर्ता आगे अधिकारियों को मैनेज करके काम करवा ले. अगर सम्पर्क कर्ता को दिया जाने वाला पैसा सीधा किसानों को दे दिया जाए तो सारी दिक्कत ही खत्म हो जाएगी।
हरीश चौधरी ने कहा कि कंपनी किसान को एक लाख से कम रुपया देना चाहती है जब विरोध हो जाता है तो कंपनी तीन लाख तक भी रूपये पैसा दे देती है इसका मतलब कंपनी के पास मार्जिन है इसका यह भी मतलब है की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है मनमर्जी से चल रही है।
चौधरी ने कहा कि टावर स्थापित करने के दौरान किसान की फसल भी नष्ट होती है. टावर के बेस की जमीन भी खेती लायक नहीं रहती इसके अलावा इस टावर से 50-60 मीटर तक की दूरी तक किसी प्रकार का कन्वर्जन नहीं हो सकता किसान को यह नुकसान भी होता है इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मुआवजा तय किया जाना चाहिए।
– राजस्थान से राजूचारण