बरेली। कोरोना महामारी को खत्म करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना कर्फ्यू लगाया गया है। बीते वर्ष लगे लॉकडाउन के दर्द से लोग उबर नही पाए थे। लोग जिंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे कि इसी के बीच फिर से कोरोना की दूसरी लहर आ गई। उसके बाद एक दिन का साप्ताहिक, फिर दो और उसके बाद तीन दिन के साप्ताहिक लॉकडाउन से लगातार लॉकडाउन बढ़ता जा रहा है। लॉकडाउन के बढने के साथ ही रोज कमाने खाने वाले व छोटे कामगारों की मुश्किलें बढ़ रही है। ऐसे लोगों को घर चलाना पहाड़ जैसा हो गया है। वहीं अनिश्चितता भी परेशान किए हुए है क्योंकि यह साफ नहीं है कि लॉकडाउन को और कितना बढ़ाया जाएगा। उसके बाद उनके रोजगार का क्या होगा। रोजगार चल पाएगा या मंदी से ही गुजरना पड़ेगा। रोज कमाने खाने वाले व छोटे कामगारों के आगे आय का कोई साधन नहीं बचा है। उन्हें कोई उम्मीद नहीं दीख रही है। कही से कोई मदद नही मिल रही है। लाचारी इतनी कि अब उन्हें इस दर्द से कोई चमत्कार ही उबार सकता है। लोगों के सेविंग अकाउंट खाली हो चुके हैं। ऐसे सामान्य जीवन जीने वाले लोग सेविंग अकाउंट महीने में कई बार खंगार रहे हैं कि कहीं से भी कोई भूल कर कुछ पैसे आ जाते। यह तो चमत्कार की उम्मीद जैसा है। सही मायनों में जो रोज कमाते रोज खाते हैं ऐसे लोगों के लिए घर चलाना आज पहाड़ जैसा हो गया है। रोज कमाने खाने वाले व छोटे कामगार से जुड़े लोग बीते एक वर्ष से आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। प्राइवेट नौकरी करने वालों में कई लोगो को नौकरी से निकाल दिया गया। बचे लोगों को भी पूरा वेतन नहीं मिला। पहले से कर्जा लेकर कर गुजर कर रहे इन लोगों पर फिर से लॉकडाउन का पहाड़ टूट पड़ा। हालात यह हो गए हैं कि ऐसे लोगों की भविष्य में भी आय का कोई भरोसा ही नहीं है। लॉकडाउन के बाद भी उनका रोजगार बचेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे लोगों को बिना जमानत के कोई उधार भी देने को तैयार नहीं है। ऐसे में तमाम लोगों को घर के जेवर गिरवीं रखने पड़े थे। बचे खुचे जेवर अब इस लॉकडाउन की भेंट चढ़ रहे हैं। जो जेवर वक्त जरूरत के लिए खरीदे थे, वे साहूकारों के पास गिरवीं पड़ रहे हैं। इस भवायह अविस्मरणीय समय को संभालने के लिए लोग जीवन की कुर्बानी के साथ-साथ अपने सम्मान को भी गिरवी रख रहे हैं। जिसमें मध्यम वर्गीय लोगोंं की हालत बहुत ही खराब है। अपनी मेहनत के बल पर सबकुछ करने की दम रखने वाले और किसी के आगे हाथ न फैलाने का गुरूर लेकर परिवार का पालन करने वाले लोगों का जब रोजगार छूटा तो उन्हें भी झुकना पड़ा। अपने सम्मान को गिरवीं रखकर दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ा। कोरोना काल वह भयावह काल है कि इस दौर के गुजरने के बाद भविष्य मे इंसानी रिश्ते भी शर्मसार होंगे। रोज कमाने खाने वाले व छोटे कामगारों में आर्थिक संकट गहराने पर उनके सगे संबंधियों ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। वजह यह भी हो सकती है कि दूसरे पक्ष की भी आर्थिक स्थिति खराब हो। दूसरा पहलू यह भी है कि डगमगा रहे रोजगार के दौर में किसी की आर्थिक मदद करने के बाद उससे वसूली करना कठिन होगा या रिश्तों में दरार आएगी। ऐसे तमाम मामलों के चलते भविष्य में इंसानी रिश्तों को भी शर्मसार होना पड़ेगा। पिछले बार कोरोना काल में लॉकडाउन अचानक लगा था। कोरोना की दूसरी लहर आने पर तमाम राज्यों में नाइट कफ्र्यू लगाया जा रहा था। जिससे दिन में लोग रोजगार कर लेते थे। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल के तीसरे हफ्ते में राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान यह कहा था कि फिलहाल देश में लॉकडाउन नहीं लगने जा रहा। देश को लॉकडाउन से बचाना है, यह आखिरी विकल्प होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में लॉकडाउन लगाने से साफ इनकार कर दिया था। मुख्यमंत्री ने कहा था कि हमारा प्रयास है लोगों के जीवन के साथ उनकी आजीविका बची रहे। हमें लोगों के जीवन को भी बचाना है और उनकी आजीविका को भी। लॉकडाउन से गरीब, मजदूर, स्ट्रीट वेंडर जैसे रोज कमाने वाले प्रभावित होते है।।
बरेली से कपिल यादव