• राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम में सीएचओ की भूमिका पर हुई व्यापक चर्चा
• वर्ष 2025 तक यक्ष्मा उन्मूलन का है लक्ष्य
• रीच संस्था एवं राज्य टीबी सेल के तत्वावधान में तीन दिवसीय कार्यशाला का हुआ शुभारंभ
पटना/बिहार- जिला स्वास्थ्य समिति के प्रांगन में शुक्रवार से जिला में कार्यरत सभी कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर्स (सीएचओ) का राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम में उनकी भूमिका के बारे में उन्मुखीकरण के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ किया गया. जिले के सभी सीएचओ का 40 का बैच बनाकर तीन दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत की गयी. जिले में कार्यरत कुल 120 सीएचओ का उन्मुखीकरण किया जायेगा. प्रथम बैच में शुक्रवार को अथमलगोला, बख्तियारपुर, दनियावां, धनरुआ, मनेर, खुसरुपुर, नौबतपुर, पालीगंज तथा संपतचक में कार्यरत 40 सीएचओ को प्रशिक्षित किया गया.
राज्य में 78 टीबी चैंपियंस कर रहे यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम में सहयोग:
कार्यशाला में प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए रीच संस्था के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक मोहम्मद मुदस्सिर ने बताया कि राज्य में 78 टीबी चैंपियंस यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम में समुदाय में जागरूकता फैलाकर अहम् भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने बताया कि कार्यशाला का उद्देश्य है कि सभी सीएचओ यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम में अपनी भूमिका की महत्ता से वाकिफ होकर मरीजों की पहचान तथा उन्हें उपचार उपलब्ध कराने में मदद करें.
सीएचओ अपनी जिम्मेदारी को समझ निभाएं अपनी भूमिका:
कार्यशाला में विडियो संदेश के माध्यम से जुड़े अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, यक्ष्मा डॉ. बी.के.मिश्र ने बताया कि सामुदायिक स्तर पर टीबी मरीजों को चिन्हित करना, उन्हें ससमय दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराना, नियमित फॉलो अप तथा अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्यकर्मी एवं जन प्रतिनिधियों के साथ समंवय स्थापित कर जन आरोग्य समिति एवं टीबी मुक्त पंचायत के सपने को साकार करने में अपनी जिम्मेदारी निभाना राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत सभी कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर्स का प्रमुख कार्य है. उन्होंने प्रेजेंटेशन के माध्यम से शामिल प्रतिभागियों को अपनी जिम्मेदारियों को सजगता के साथ निभाने की जानकारी दी.
टीबी मरीजों का फॉलो अप सबसे जरुरी:
कार्यशाला में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए जिला संचारी रोग पदाधिकारी, डॉ. कुमारी गायत्री सिंह ने कहा कि चिन्हित टीबी मरीजों का फॉलो अप करना सबसे जरुरी है. मरीज लगातार 6 महीने तक नियमित रूप से दी गयी दवाओं का सेवन करें यह सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती है. अक्सर मरीज तबियत में सुधार होने पर दवा खाना छोड़ देते हैं और वह एमडीआर टीबी की श्रेणी में चले जाते हैं. यह स्थिति खतरनाक होती है और इससे मरीजों की मृत्यु भी हो सकती है. उन्होंने बताया कि सभी संक्रामक रोगों में टीबी से होने वाली मृत्यु दर सबसे ज्यादा है. निक्षय पोषण योजना के तहत मरीजों को उपचार के दौरान हर महीने 500 रुपये की राशि उनकी पोषण की जरूरतों को पूरा करने के लिए दी जाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के टीबी सलाहकार डॉ. बिज्येंद्र कुमार सौरभ ने प्रतिभागियों को टीबी से संबंधिक सभी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सभी सीएचओ मरीजों को चिन्हित कर उनका निक्षय पोर्टल पर निबंधन तत्काल रूप से करें जिससे उक्त मरीज को सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जा रही सभी सुविधा निशुल्क प्राप्त हो सके. राज्य आईईसी पदाधिकारी बुशरा अज़ीम ने प्रतिभागियों को राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत मिलने वाली सभी प्रोत्साहन राशि के बारे में जानकारी दी.
कार्यशाला में झपयिगो के जीशान ने भी टीबी मुक्त पंचायत में सीएचओ की भूमिका से अवगत कराया और तकनीकी जानकारी दी.
– बिहार से नसीम रब्बानी