आज़मगढ़ – पूरे देश में नवरात्र की पूजा धूमधाम से समापन पर है तो विजयादशमी के पर्व का जोश उफान पर है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस त्यौहार पर रामलीला का अपना महत्व है। आजमगढ़ में रामलीला दशहरा के बाद भी होती रहती है। वहीं आजमगढ़ के पश्चिम छोर पर स्थित रासेपुर बाज़ार की रामलीला का ख़ास महत्व है। आजमगढ़ के रासेपुर में सालों से मुस्लिम समाज के लोग रामलीला के आयोजन से लेकर इसमें तमाम पात्रों को बखूबी निभाते हैं। रामायण की कठिन चौपाई को बोलने में तनिक भी जबान नहीं लड़खड़ाती है कोई नहीं कह सकता है कि दूसरे धर्म से जुड़े हैं। घण्टों कार्यक्रम के दौरान प्रतिदिन अपना पात्र सहजता से निभाते हैं। यह आज से नहीं बल्कि 45 वर्ष पूर्व 1973 से है जब यहाँ की रामलीला की शुरुआत हुई थी। एक पुश्त ने शुरुआत कर राह दिखाई तो आगे की पीढ़ी भी इस विरासत को चला रही है और इसमें फख्र भी महसूस करती है। आज भी रामलीला समिति के तत्वावधान में श्री रामलीला रासेपुर का आयोजन हर वर्ष होता है। रामलीला हिंदू मुसलमान एकता की प्रतीक रामलीला का कल्पनाथ सिंह, मोहम्मद इदरीश, रामदास पांडे, राजदेव साव, हरि शंकर पांडे, इंद्रासन पांडे आदि लोगों ने शुभारंभ किया था। उस समय मोहम्मद इदरीश की भूमिका काफी सराहनीय रही अब इस समय इदरीश के पुत्र मोहम्मद युसूफ, शकील अहमद, सरोज, अजय सिंह, अरुण सिंह आदि लोगों की भूमिका रामलीला में काफी सराहनीय है। रामलीला संचालन कर्ता मोहम्मद यूसुफ ने बताया कि यह रामलीला ऐतिहासिक रामलीला है हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। वहीं शकील अहमद ने बताया कि यह रामलीला हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यहां की रामलीला का समय आते ही हिंदू मुस्लिम आबादी काफी खुशी होती है।
रिपोर्ट-:राकेश वर्मा आजमगढ़