राजनीतिक दलों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर सा हो गया शुरू

आजमगढ़- लोकसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है जिले की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ती जा रही है। राजनीतिक दलों के बीच जहां आरोप प्रत्यारोप का दौर सा शुरू हो गया है वहीं टिकट के दावेदार अपनी दावेदारी को पक्की करने के लिए एक दूसरे को कमजोर साबित करने में जुटे है। वैसे तो आजमगढ़ संसदीय सीट पर बीजेपी के पास बाहुबली रमाकांत के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है लेकिन रमाकांत की सवर्णो के खिलाफ बयानबाजी से उपजी नाराजगी को पार्टी के सवर्ण नेता भुना कर रमाकांत की दावेदारी को कमजोर कर अपनी दावेदारी को मजबूत करना चाहते हैं। वहीं कई अति पिछड़े नेताओं ने दावेदारों में शामिल होने से लड़ाई और दिलचस्प हो गयी है। रहा सवाल बीजेपी नेतृत्व का तो वह किसी भी हालत में सीट जीतना चाहता है कारण कि पूर्वांचल में बड़ी जीत ही उसे 2019 में दोबारा सत्ता के शिखर तक पहुंचा सकती है।
बता दें कि पूर्वांचल में आजमगढ़ जिला हमेंशा से बीजेपी की कमजोर कड़ी रहा है। वर्ष 2009 में आम चुनाव में बाहुबली रमाकांत वजह से पार्टी आजमगढ़ संसदीय सीट पर खाता खोलने में सफल रही थी। जबकि वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी लहर के कारण पहली बार पार्टी को लालगंज सीट जीतने में सफलता मिली। वर्ष 2014 के चुनाव में सपा से मुलायम सिंह के चुनाव लड़ने के कारण आजमगढ़ संसदीय सीट न केवल बीजेपी के हाथ से चली गयी बल्कि उसका पूर्वांचल में विपक्ष का सूपड़ा साफ करने का सपना भी साकार नहीं हुआ। अब पीएम मोदी की 2014 जैसी लहर नहीं दिख रही है। रमाकांत ने पिछले तीन साल में गृहमंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और स्थानीय सवर्णो के खिलाफ मोर्चा खोल और उन्हें अपशब्द कह सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी बढ़ा दी है जो बीजेपी का बेस वोट माना जाता है। पिछले दिनों रमाकांत यादव के सपा में जाने की चर्चा शुरू हुई तो सवर्ण मतदाता और बीजेपी के सवर्ण नेता भी काफी खुश दिखे थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि रमाकांत ने संघ से अपनी नजदीकी बढ़ाकर अपनी टिकट की दावेदारी को और मजबूत कर ली। राजनीति के जानकार मानकर चल रहे है कि विकल्प के आभाव में बीजेपी एक बार फिर रमाकांत पर दाव लगाएगी। रमाकांत के मैदान में आने के बाद सवर्ण मतदातओं के पास भी बीजेपी के पक्ष में मतदान के अलावा कोई अच्छा विकल्प नहीं होने वाला है। कारण कि गठबंधन न होने की स्थित में सपा से तेजप्रताय यादव, बलराम यादव में से किसी एक का लड़ना तय माना जा रहा है जबकि बसपा से गुड्डू जमाली की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही है। वहीं दूसरी तरह बीजेपी के सवर्ण और अदर बैकवर्ड नेता रमाकांत यादव की कमजोरी का फायदा उठाना चाह रहे हैं।
अखिलेश मिश्र गुड्डू, जनार्दन सिंह गौतम खुलकर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं तो अदर बैकवर्ड में कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान, कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा, श्रीकृष्ण पाल सहित कई दावेदार सामने है। यह सभी पार्टी नेतृत्व को रमाकांत के प्रति सवर्णो की नाराजगी को बता कर अपना दावा पक्का करने की कोशिश में हैं। कौन किसपर भारी पड़ेगा यह तो समय बतायेगा लेकिन बीजेपी में इस समय स्थिति काफी दिलचस्प हो गयी है। रमाकांत का एक गलत कदम उनपर भारी पड़ सकता है।

रिपोर्ट-:राकेश वर्मा आजमगढ़

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