शीशगढ़, बरेली। अल्लाह रब्बुल इज्जत ने माहे रमजान में मुकद्दस कुरान को नाजिल कर मुसलमानों को जिंदगी जीने का तरीका बताया। किन कामों को करना चाहिए और किन कामों से बचना चाहिए कुरान की आयतें करीमा बयां कर रही हैं। इस्लाम धर्म में जकात (दान) और ईद पर दिया जाने वाला फितरा का खास महत्व है। माहे रमजान में इनको अदा करने का महत्व और बढ़ जाता है। क्योंकि इस महीने में हर नेकी का अल्लाह तआला सत्तर गुना अता करता है। यह हर मुसलमान पर फर्ज है जो साहिबे निसाब (जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी की हैसियत हो) है। नबी करीम फरमाते हैं कि ईद की नमाज के बाद फितरा देना वाजिब है। अगर कोई इसको अदा नहीं करता तो उसके रोजे आसमान और जमीन के दरम्यान मुअल्क (लटकता) रहता है। मौलाना शराफत हुसैन सलफी ने बताया कि कुरआन मजीद में अल्लाह ताला ने जकात अदा करने वालों को सच्चे मोमिन करार दिया है। अल्लाह ताला ने कुरआन मजीद में फरमाया वह लोग जो नमाज कायम करते हैं और जो कुछ माल हमने उन्हें दिया है उससे खर्च करते है। वह सच्चे मोमिन हैं सूरे बकरा में अल्लाह ताला ने फरमाया कि जकात अदा करने वाले लोग कयामत के दिन हर किस्म के खौफ और गम से महफूज होंगे। दूसरी जगह फरमाया जो लोग ईमान ले आएं और नेक अमल करें नमाज कायम करें और जकात दें उनका अजर बेशक उनके रब के पास है और उनके लिए किसी खौफ और रंज का मौका नही है। जकात की अदायगी गुनाहों का कफ़्फ़ारा और बुलन्दिये दर्जात का बहुत बड़ा जरिया है। नवी करीम सलल्लाहो अलैहे बसल्लम को अल्लाह ने हुकुम दिया ऐ हमारे नवी तुम लोगों के मालों में से जकात लो ताकि उनको गुनाहों से पाक करो और उनके दर्जात बुलन्द करो। जकात अदा करने से न सिर्फ गुनाह माफ होते है बल्कि अल्लाह ताला ने ऐसे माल में इजाफा करने का वादा भी कर रखा है। सूरा रूम में अल्लाह ताला ने फरमाया जो जकात तुम अल्लाह ताला की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए देते हो उससे तुम अपने ही माल में इजाफा करते हो। क्योंकि लफ़्ज़े जकात का लुग्वी मफहूम पाकीजगी और इजाफा है। जिससे यह बात बाजे हो जाती है कि इस इबादत से इंसान का माल हलाल और पाक बनता है और नफ़्स भी तमाम गुनाहों और बुराइयो से पाक हो जाता है।।
बरेली से कपिल यादव