*इलेक्ट्रिक मशीनों का क्रेज बढऩे से घरों की रसोई भी हो गई हाईटेक
हमीरपुर: उत्तर प्रदेश के के बुन्देलखंड क्षेत्र में पिछले कई दशकों से चल रहा चकिया और सिलबट्टे का कारोबार अब दम तोडऩे लगा है। इलेक्ट्रानिक मशीनों की गांवों में पहुंच के कारण आटा पीसने वाली चकिया की घरों से विदाई हो गई है। शहर और कस्बों में अब पिसा आटा की डिमांड ज्यादा बढ़ी है। घरों में भी दाल, चटनी के लिए महिलाएं मिक्सर मशीनों का प्रयोग बढ़ गया है। सदियों पुरानी चकिया और सिलबट्टे का चलन कम होने के कारण ही आज पेट सम्बन्धी बीमारियां भी बढ़ी है जिसकी जद में हर उम्र के लोग आए है।
किसी जमाने में शहर से लेकर गांवों तक हर घर में आटा पीसने के लिए पत्थर की चकिया होती थी। भोर होने से पहले ही महिलाएं दिन भर के लिए रोटी बनाने के लिए चक्की चलाती थी। दरअसल में इसके पीछे खास वजह भी चक्की चलाने से महिलाएं हर पेट सम्बन्धी बीमारी से महफूज रहती थी। एक घंंटे तक चक्की चलाने के बाद घरों में महिलाएं सिलबट्टा से मसाला और दाल पीसती थी। सिलबट्टे से तैयार दाल और मसाला स्वाद से भरपूर होता था लेकिन अब मिक्सर और बिजली से चलने वाली चक्की ने इनकी जगह ले ली है। यहां के लोकतंत्र सेनानी देवीप्रसाद गुप्ता व पूर्व सरपंच बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि किसी जमाने में भोर होते ही हर घरों में महिलाएं खुद अपने हाथों से चक्की चलाते हुए आटा पीसता थी।
आटा तैयार होने के बाद घरों से सिलबट्टा चलने की आवाजें भी सुनाई देती थी लेकिन अब ये मशीनरी युग में खत्म हो गए है। बताया कि आधुनिकता के दौर में जब से मशीनरी युग का समय शुरू हुआ तो पढ़ी लिखी महिलाओं ने घरों से चक्की और सिलबट्टा की विदाई ही कर दी है। हमीरपुर समेत समूचे बुन्देलखंड के बीहड़ में बसे ग्रामों में ही कहीं-कहीं सिलबट्टे से मसाला और दाल पीसी जाती है लेकिन शहर और कस्बों के अलावा विकसित गांवों में इनके दर्शन भी अब नही होते है।
मशीनरी युग में घर की रसोई भी हो गई हाईटेक
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की 105 वर्षीय पत्नी विजय कुमारी ने बताया कि पहले का जमाना बड़ा अच्छा था जब घर की महिलाएं रोटी बनाने के लिए घर में ही चक्की से आटा पीसा करती थी। इससे वह कभी बीमार नही पड़ती थी। चक्की से आटा मोटा पिसने के कारण इसकी रोटी सेहत के लिए मुफीद रहती है लेकिन अब मशीनरी युग में लोग बाहर से पिसा हुआ आटा इस्तेमाल कर रहे है जिससे हर घर में महिलाएं और बच्चे पेट सम्बन्धी कोई न कोई बीमारी की जद में रहती है। बताया कि घरों में सिलबट्टा से मसाला और दाल जब पीसकर खाने में प्रयोग किया जाता था तो इसका स्वाद भी गजब का होता था लेकिन इलेक्ट्रिक मिक्सर मशीन का चलन बढ़ जाने से खाने का स्वाद भी अब नहीं रहा। पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि अब हर घर की रसोई हाईटेक हो गई है।चकिया, सिलबट्टा का कारोबार बंदी के मुहाने मशीनरी युग में अब चकिया और सिलबट्टे का कारोबार भी बंद होने के मुहाने आ गया है। बुन्देलखंड के अकेले हमीरपुर में ही दर्जनों दुकानें बंद हो चुकी है। शहर के अमनशहीन में कालपी रोड पर लक्ष्मी पत्नी टिंकू पिछले पांच दशक से झोपड़ी बनाकर पत्थर के चकिया और सिलबट्टा बेचती है। इसका पति परिवार के भरण पोषण के लिए रिक्शा चलाता है। तीन पुत्रियोंं व एक पुत्र की मां लक्ष्मी ने बताया कि कभी दुकान से चक्की और सिलबट्टा की खूब बिकते थे लेकिन अब मशीनरी युग में इसकी बिक्री न के बराबर रह गई है। बताया कि इसी दुकान से घर का गुजारा अच्छे से होता था लेकिन अब घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है इसीलिए घर के मुखिया को रिक्शा चलाना पड़ रहा है। भूमिहीन लक्ष्मी को सिर छिपाने के लिए मकान भी नहीं है।