मृत शवों का सम्मान तो होना ही चाहिये इन्सानियत के नाते मौताणा प्रथा पर लगेगी सरकारी रोक…..

बाड़मेर/राजस्थान- विधानसभा राजस्थान में मृत इन्सान के शरीर का सम्मान विधेयक 2023 बहुमत के आधार पर पास हो गया है। यह बात अलग है कि विधेयक पर जिन एक दर्जन से ज्यादा विधायकों ने अपने विचार रखे, उनमें से 14 ने विधेयक का विरोध किया। विधेयक पर चर्चा करते हुए नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि मौजूदा सरकार के पौने पांच साल के कार्यकाल में तीन सौ छ: बार शव को सड़क पर रख कर धरना प्रदर्शन किया गया। मांगों को मनवाने के लिए और भी तरीके हैं, लेकिन हमारे अपने मानव लोगों का शव को सड़क पर रखना अमर्यादित है। पक्ष विपक्ष का अपना नजरिया हो सकता है, लेकिन यह सही है कि इन्सानियत के नाते शव का सम्मान होना चाहिए। अब जब यह विधेयक पास हो गया है तो शव को सड़क पर रखना भी गैर कानूनी हो गया है। अब यदि कोई व्यक्ति शव को सड़क पर रखेगा तो उसे दो वर्ष तथा उकसाने और धरने में शामिल होने वाले नेता को पांच वर्ष की सजा होगी। कानून तो बहुत सारे हैं, लेकिन कई बार उनकी क्रियान्विति नहीं होती। चूंकि मृत्यु के कारण अलग अलग होते होते हैं, इसलिए कई बार लोगों का गुस्सा सड़क पर आ जाता है। लोगों के गुस्से के दौरान इस नए कानून की क्रियान्विति भी नहीं हो पाएगी। गुस्से के समय पुलिस की हिम्मत नहीं होगी कि कानून की क्रियान्विति करवाए। हमने कई जन आंदोलन में देखा है कि उपद्रवियों पर मुकदमे दर्ज होते हैं, लेकिन समझौते के समय सरकार को ऐसे मुकदमे वापस लेने होते हैं। कानून अपनी जगह होता है, लेकिन मृत्यु के बाद अगले बारह घंटे में शव का अंतिम संस्कार हो जाना चाहिए। कोई भी धर्म मृत्यु के बाद शव को कई दिनों तक रखने की छूट नहीं देता है। चिकित्सक भी मानते हैं कि बारह घंटे बाद ही शव अकड़ने लग जाता है। इससे मृत शरीर में कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। बिना किसी उपाय के शव को सड़क पर कई दिनों तक रखने का मतलब है कि शव की जानबूझकर दुर्गति करना। कई बार शव को सड़क पर इसलिए रखा जाता है ताकि परिवार वालों को सरकारी नौकरी, जमीन मुआवजा आदि मिल जाए। परिजन को उचित सरकारी मुआवजा मिले, इस पर किसी को एतराज नहीं होना चाहिए , लेकिन यह मुआवजा शव की कीमत लगाकर मौताणे की तरह नहीं होना चाहिए। आम तौर पर देखा गया है कि हमारे किसी नेताओं के परिवार के सदस्य का शव सड़क पर नहीं रख जाता। हर बार गरीब व्यक्तियों का शव ही सड़क पर होता है। गरीब के शव को ही सड़क पर ही शव रखकर धरना प्रदर्शन होते हैं। नेताओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ताकि की मृत दे की दुर्गति हो रही है। प्रशासन भी तब तक तनाव में रहता है, जब तक शव का अंतिम संस्कार न हो। सरकार और प्रशासन को इस मामले में संवेदनशील होने की जरूरत है। मुआवजा, सरकारी नौकरी या अन्य कोई सुविधा देने की एक समान नीति राज्य में होनी चाहिए आजकल भीड़ को देखकर मुआवजा देने की प्रथा चल रहीं हैं हमारे बाड़मेर जिले में औधोगिक घरानों द्वारा। जहां तक आदिवासी समुदाय की मौताणे की प्रथा का सवाल है तो इस समुदाय को अपनी इस प्रथा पर मौजूदा हालात देखकर इन्हें भी पुनर्विचार करना चाहिए। आदिवासी समुदायों की परंपराओं का ख्याल तो रखा जाए, लेकिन शव को कई दिनों तक लटकाए रखने की प्रथा मानवीय दृष्टि से उचित नहीं है। समय के साथ कई सामाजिक प्रथाओं में बदलाव हुए हैं। आदिवासी समुदाय के पंचों का फैसला शव को रखे बिना भी हो सकता है। पंच प्रथम कायम रहे, लेकिन मृत्यु के बाद शव का अंतिम संस्कार होना ही चाहिए। 20 जुलाई को जब यह विधेयक विधानसभा में स्वीकृत हुआ, तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वास्थ्य कारणों से उपस्थित नहीं थे, लेकिन इस विधेयक के पीछे सीएम गहलोत की सकारात्मक और संवेदनशील सोच रही है। सीएम भी चाहते हैं कि मृत्यु के शव की दुर्गति नहीं हो। कानून बनने के बाद शवों का कुछ तो सम्मान होगा ही।

– राजस्थान से राजूचारण

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