बिहार: (हाजीपुर)वैशाली जिले के अबाबकरपुर निवासी एवं चकमोजाहिद गाव स्थित मस्जिद के इमाम, क़ारी मो0 जावेद अख्तर फ़ैज़ी ने कहा कि मुहर्रम अल हराम इस्लामी वर्ष का प्रथम महीना है, जो अपनी विशेषताओं और गुणों की वजह से एक अलग ही महत्व रखता है ।
इसका सद्भाव और सम्मान प्राचीन काल से चला आ रहा है। अरबों एवं यहूदियों में आज से 1400 साल पूर्व भी इसके सम्मान का बहुत प्रचलन था। अरब लोग इस महीने में अपनी वर्षों पुरानी युद्धों को भी बंद कर दिया करते थे। अल्लाह ने इसकी पूर्व बहुत सी विशेषताओं और सम्मान को स्वीकार करते हुए इसे बाकी रखा, इस से भी बढ़कर ये किया के इस महीने को इस्लामी वर्ष का प्रारंभिक महीना बना दिया। अल्लाह ने इस महीने के विषय में क़ुरआन में कहा है (बेशक अल्लाह के यहां महीनों की गिनती बारह महीने हैं। अल्लाह की किताब में, जिस दिन अल्लाह ने धरती व आकाश को बनाया इनमें से चार सम्मान वाले महीने हैं सूरः तौबा 63) इन चार महीनों के बारे में मुफ़स्सिरीन ने लिखा है के ये चार महीने “मुहर्रम,रजब,ज़ी का:दा एवं ज़िल हिज्जा हैं।
दस-मुहर्रम-इतिहास-के आईने में
दसवीं मुहर्रम से इतिहास की बड़ी – बड़ी कहानियाँ जुड़ी हुई हैं।किताबों में आता है, इसी दिन धरती व आकाश , क़लम, एवं हज़रत आदम को बनाया गया और उनकी तौबा स्वीकार की गई। हज़रत इद्रीस को आसमान पर उठाया गया, हज़रत नूह की कश्ती जूदी पहाड़ पर जाकर रुकी,हज़रत इब्राहीम को खलीलुल्लाह बोला गया और इसी दिन उनकी आग को ठंडा कर दिया गया। हज़रत इस्माईल का जन्म भी इसी दिन हुआ,हज़रत यूसुफ को जेल से छुटकारा और इजिब्त का बादशाह भी बनाया गया,और पिता याक़ूब से एक लम्बे समय के बाद मुलाकात भी इसी दिन हुई। हज़रत मूसा और उनकी क़ौम को फिरऑन के चुंगल से इसी दिन आज़ादी मिली एवं तौरात अवतरित हुई, हज़रत सुलैमान को फिर से बादशाहत मिली,हज़रत अय्यूब की बीमारी दूर हुई। हजरत यूनुस मछली के पेट से निकाले गए। हजरत यूनुस की कौम की तौबा स्वीकार की गयी और इसी दिन उनसे अजाब को हटाया गया।हजरत ईसा का जन्म और उनको यहूदियों से नजात भी इसी दिन मिली, और इसी दिन पहली बार दुनिया में रहमत की बारिश हुई।इसी दिन मक्का के कुरैशी काबा को नया कपड़ा पहनाया करते थे। इसी दिन हजरत खदीजा से हुजूर ने निकाह किया(अलैहिस्सलाम), इसी दिन इराक़ के एक शहर कूफ़ा के लोग ने हजरत हुसैन को शहीद किया और इसी दिन क़्यामत का आरंभ होगा।(उदमतुल क़ारी बाबा सियाम यौमी आशूरा, नुजहतुल मजालिस, मआरिफुल क़ुरआन, मआरिफुल हदीस) इस में कोई शक नहीं कि हजरत ईमान हुसैन रज0 ने 72 लोगों की जमाअत के साथ मिलकर जो शहादत दी , इतिहास का एक दर्दनाक हादसा है, जिस से हर ईमान वाले के लिए तकलीफ की बात है , लेकिन इस मौके पर सीना पीटना, गरेबान फाड़ना, चेहरा नोचना,कपड़े फाड़ना , ढोल बाजा डीजे बजाना, जंजीरों और ब्लेडों से स्वयं को जखमी करना, ताजिया लेकर उस पर फूल माला चढ़ाना , गलियों में फिरना, नशा कर के चिल्लाना ये बहुत बुरा अमल है।क़ुरान, हदीश , सहाबा , ताबइन तब: ताबइन बुजुर्गान ए दीन और अइम्मा मुजतहिदीन से बल्कि अहल के सुन्नत वल जमात के किसी भी जामआत से उस तरह कर अमल का कोई सबूत नहीं मिलता।ये सबके सब गैर इस्लामी काम है। जो ऐसा करे उससे अल्लाह के रसूल ने खुद को अलग कर लिया है। आप अलैहिस्सलाम ने फरमाया , उस व्यक्ति का हम से कोई केन देना नहीं जिसने चेरे को जख्मी किया।गरेबान को फाड़ा और जाहिलों की तरह चीख पुकार की(बुखारी 1:273)अतः हमें इस तरह के गुनाह वाले कामो से बचकर शोहदाए कर्बला के नाम से ये काम करें जैसे क़ुरान खानी, मिलाद शरीफ जलसा फातेहा सदका भूखे को खाना खिलाना , हजरत इमाम हुसैन शोहदाए कर्बला के नाम पर प्यासों को पानी पिलाना चाहिए ।
– नसीम रब्बानी पटना बिहार