मातृ एवं शिशु मत्यु दर को कम करने के लिए परिवार नियोजन जरूरी : डॉ. दिव्या

*शिशु-मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए उपाय किये जाएं

मुजफ्फरनगर – मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के साथ परिवार नियोजन की योजनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विभाग द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। बाल विवाह और मातृत्व की आयु, मां के स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति और गर्भावस्था, जन्म एवं उसके बाद बच्चे के पोषण, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर, जन्म के समय लिंग अनुपात, बाल लिंग अनुपात समेत कई बिंदुओं पर गौर करना बेहद जरूरी है। शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी लाई जाए और इसे रोकने के उपाय किए जाएं। यह कहना है परिवार नियोजन कार्यक्रम की नोडल अधिकारी डॉ. दिव्या वर्मा का।
डॉ. दिव्या वर्मा का कहना है कि मातृ एवं शिशु मत्यु को कम करने के लिए परिवार नियोजन की विशेष भूमिका है। परिवार नियोजन द्वारा अनचाहे गर्भ एवं गर्भ से संबंधित जटिलताओं को कम करने से 30 प्रतिशत तक मातृ मत्यु दर कम हो सकती है। उन्होंने बताया कि 20 वर्ष से कम उम्र में गर्भधारण करने के कारण मां को होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एवं खतरे हो सकते हैं, जिनमें गर्भपात, प्रसवपूर्व अधिक रक्तस्राव, झिल्लियों का समय से पहले फटना, बच्चेदानी में संक्रमण, उच्च रक्तचाप, बाधित प्रसव आदि शामिल हैं। इस कारण 15 साल से कम उम्र में यह खतरा पांच गुना जबकि 20 साल से कम उम्र में दो गुना बढ़ जाता है। परिवार नियोजन द्वारा शिशु मृत्यु दर की रोकथाम भी की जा सकती है। उत्तरप्रदेश में बड़ी तादाद में नवजात शिशु की पैदा होने के एक माह के अंदर मृत्यु हो जाती है। जिसका मुख्य कारण समय अवधि से पहले जन्म लेना, सांस लेने में तकलीफ, संक्रमण आदि है। इसी तरह निमोनिया, डायरिया, कुपोषण, मलेरिया, अन्य संक्रमण, चोट लगना, जन्मजात विसंगतियां के कारण बड़ी संख्या में शिशु अपना पहला जन्मदिन नहीं देख पाते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि सही उम्र में गर्भधारण यानि 20 वर्ष से अधिक उम्र, बच्चों में तीन साल का अंतर, गर्भपात की अवस्था में दोबारा गर्भवती होने में कम से कम छह माह का अंतराल रखा जाए, तो परिवार नियोजन गर्भावस्था की जटिलताओं मातृ और शिशु मत्यु दर को कम किया जा सकता है।
कम अतंराल या अधिक बार गर्भवती होने से प्रभाव
• नवजात शिशु जन्म के समय कम वजन का होता है।
• गर्भ में पल रहा बच्चा कमजोर हो सकता है। (मां के कुपोषण की वजह से)
• मां की बच्चेदानी कमजोर होने से नवजात शिशु का जन्म समय से पहले होने की आशंका
• कम वजन के नवजात शिशु को जानलेवा जटिलताएं और कुपोषण होने की आशंका अधिक होती है।
• दो बच्चों में कम अंतर होने की वजह से पहला बच्चा भी कुपोषित हो सकता है व अन्य जटिलताओं की संभावना भी बढ़ जाती है।

– मुजफ्फरनगर से भगत सिंह

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