* पत्रकारो व पुलिस कर्मी ने की मदद, निजी अस्पताल में कराया भर्ती
सम्भल- सौ बैड का सरकारी अस्पताल असुुविधाओं के लिए जाना जाता है। क्यों कि यह महज़ इमारत है जो कोई ऐतिहासिक धरोहर भी नहीं बन सकी है। अन्य शहरो के छोटे-बड़े अस्पतालों में तमाम तरह की बीमारी का ईलाज हो सकता है। लेकिन यहां मरीज़ को ईलाज नहीं बल्कि मौत या तड़प मिलती है। यह एक कड़वा सच है जो शायद जिले की सीएमओ को भी नागवार गुज़रे। अधिकारी भी भ्रमण करने के बाद खानापुरी कर लौट जाते हैं लेकिन फिर वहीं हाल रहता है जैसा हमेशा आये दिन अस्पताल की सुर्खियों में देखने को मिलता है
मंगलवार को नगर के मौहल्ला मियां सराय की एक अपने रोते बिलखते पेट दर्द से पीड़ित 14 वर्षीय मासूम मो0 नबी को लेकर आयी। महिला कई घण्टो तक अस्पताल में अपने बच्चें को देख लेने की गुहार लगाती रही। डयूटी पर तैनात चिकित्सक बच्चे को कोई डाॅक्टर न होने का हवाला देकर टरकाने में लगे रहे। इसी बीच पहुंचे पत्रकारों ने महिला व उसके बच्चे को तड़पते व रोते बिलखते देखा तो कारण पूछा। बच्चे को पेट दर्द और जाड़ा बुखार की शिकायत पर पत्रकारों ने बैड पर लेटाया और चिकित्क डा0 चमन से सम्र्पक साधा। तब कहीं जाकर चिकित्सक ने एक इंजेक्शन लगाया। फिर भी निजी अस्पताल में ले जाने की सलाह दी। महिला निजी अस्पताल में उपचार के लिए पैसे न होने का हवाला देकर रोते बिलखती रही। पत्रकारों ने उसके बेटे का दर्द जाना और पांच सौ रूपये मदद करते हुए एक निजी अस्पताल विभवाया। इसी दौरान एक पुलिस कर्मी थाना नखासा में तैनात अनीस अहमद ने यह मंज़र देख अपनी जेब से पर्स निकालकर महिला के हाथ पर पांच सौ रूपये रख गये। महिला के पास ऐसी हालत में रिक्शा किराये लिये 10 रूपये भी नहीं थे। पत्रकारों ने इतना ही नहीं एक हज़ार रूपयें की मदद होने पर ई-रिक्शा से किराया देकर निजी अस्पताल में भर्ती कराया और स्वंय दवाईयों आदि का खर्च चिकित्सक को जमा कर किशोर को उपचार के लिए भर्ती कराया। सरकारी अस्पताल से बिना उपचार बैरंग लौटी महिला अपने बेटे की मदद को गुहार लगाती रही लेकिन अस्पताल प्रशासन नहीं पिघला। पत्रकारों एवं पुलिस कर्मी द्वारा की गई मदद के बाद महिला अपने बच्चे का उपचार कराने के लिए सक्ष्म हुई। अस्पताल की इस लापरवाही और असुविधा की शिकायत पत्रकारों ने सीएमओ से लेकर आला अधिकारियों व सीएमएस तक से की। लेकिन इस शिकायत के बाद भी किसी के मन में ज़रा भी टसक नहीं आयी एक दूसरे पर टाल मटोल कर ममाले को ठण्डे बस्ते में डाल दिया। अस्पताल की बदत्तर हालत पर मरीज़ कौसते हुए नज़र आये। आखिर गरीब का बच्चा बीमार हो तो जाये तो कहां जाये।
सम्भल अंतिम विकल्प से सय्यद दानिश की रिपोर्ट