बरेली। मजदूर मुसीबत में हैं। जिंदगी चौराहे पर है। काम बंद हैं, लेकिन पेट में भूख की आग जल रही है। भूख मिटाने के लिए कोई नई राह निकाल रहा है, तो कोई हारकर रोड पर खड़ा हो जा रहा है…इस इंतजार में कोई सामाजिक संगठन आएगा और खाने का पैकेट दे देगा। कोरोना महामारी के चलते मजदूरों की जिंदगी बेपटरी हो गई है। लॉकडाउन के चलते हजारों श्रमिक देश के विभिन्न जगहों पर फंसे हैं। मजदूर दिवस पर यह जानने की कोशिश की गई कि कैसे उनकी जिंदगी चल रही है। बरेली मे आज से डेढ़ महीने पहले गुलजार थी। सुबह से ही बाजार, मॉल और दुकानें कामगारों से गुलजार होने लगती थी। अब ऐसा नहीं है। बरेली में कई जगहों पर सुबह-सुबह ही मजदूरों की मंडी सजती थी। यहां काम भी था और कामगार भी। किसी को भवन निर्मण से जुड़े मजदूर चाहिए या अन्य सामान की ढुलाई के लिए कोई मजदूर, सीधे यहां पहुंचते थे। चाय की दुकानों के पास रेट तय होता था। उन चौबारों पर आज सन्नाटा पसरा है । न तो वहां काम है और न कामगार। मजदूरों की इन मंडियों में सन्नाटा पसरा मिला। वहां मजदूरों के बारे में जानकारी देने वाला भी कोई ना था।
काम ही नहीं है, कैसे मनाएं मजदूर दिवस
लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियां बीते लगभग सवा महीने से बंद पड़ी हैं। इस बार मजदूरों को एक मई की छुट्टी की कोई खुशी नहीं है। उनके सिर पर रोजगार जाने का संकट मंडरा रहा है। मजदूरों को अब फैक्ट्री खुलने का बेसब्री से इंतजार है। फैक्ट्रियों की ठंडी पड़ चुकी चिमनियों को देखकर मजदूरों का दिल बैठ रहा है। संगठित क्षेत्र के मजदूरों से ज्यादा परेशानी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को है। बरेली जिले में इन मजदूरों की काफी आबादी है। यहां इनकी संख्या लाखो मे है। ये मजदूर दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं।।
बरेली से कपिल यादव