सोशल मीडिया में एक ग्राफ घूम रहा है जिसमें बताया जा रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था पांचवे नम्बर पर है। पहले स्थान पर अमेरिका बताते हुए कहा गया है कि अमेरिका अर्थव्यवस्था 25 ट्रिटिअन डाॅलर की, दूसरे नम्बर पर चीन की 1803 ट्रिटिअन डाॅलर तीसरे नम्बर जापान की 4.3 ट्रिटिअन डाॅलर, चैथे स्थान पर जर्मनी और पांचवे स्थान पर भारत की 3.5 ट्रिटिअन डाॅलर पर बताया गया है। लेकिन ग्राॅफ बनाने वाले व्यक्ति ने जनसंख्या की तुलना नहीं की। लेकिन हमारे अनुसार इन पांचों देशों में भारत की अर्थव्यवस्था सर्वाधिक मजबूत नजर आ रही है। क्यों हम इस बिन्दु पर मंथन करते हुए उत्तर लिखने का प्रयास कर रहा हूं। यदि हम देशों की जनसंख्या के घनत्व में तुलना करते हैं तो अमेरिका की आबादी 33.19 करोड़, जर्मनी की 8.32 करोड़, जापान 12.57 करोड़ जबकि चीन की जनसंख्या 141.24 करोड़ और भारत की 140.76 करोड़ बैठ रही है। ;गूगल के अनुसार, फिर हम कह सकते हैं आंकड़ा सत्य हैद्ध इन आंकड़ों को देखते हुए कम हम कह सकते हैं कि हमारा मुकाबला मात्र चीन से है। क्योंकि चीन विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है और भारत जनसंख्या के मामले में दूसरे नम्बर पर है। अतंः इस प्रकार अमेरिका, जर्मनी और जापान की तो भारत और चीन की जनसंख्या से तुलना करने के साथ अर्थव्यवस्था का भारत से कोई मुकाबला नहीं बैठ रहा।
चीन की अर्थव्यवस्था से तुलना भारत से कैसे हो सकती है?
यदि हम चीन की अर्थव्यवस्था से तुलना करते हैं तो हम यह भी तुलना करनी होगी तो हमको दोनों देशों की औद्योगिक विकास के इतिहास पर जाना होगा। 1947 में भारत ने आजादी प्राप्त की जबकि चीन ने 1948 में राजतंत्र से मुक्ति प्राप्त की। आपको याद होगा कि भारत में औद्योगिक नीति बंदिशों में रही जैसे लाइसेंसी प्रणाली लागू रही, जबकि चीन में औद्योगिक विकास नीति में ऐसी कोई बंदिश नहीं रही। अब आप स्वयं विचार करलें कि जिस देश के उद्योगों पर 1993 में औद्योगिक नीति में खुलापन आने की यशुरुआत हुई और 2001 मंे देश में उद्योग व सेवा क्षेत्र में बूम अपने चरम गति पर था। निजि क्षेत्र में बैंकिग एवं इश्योरेंस सेक्टरों ने देश की अर्थव्यवस्था में अपनी दस्तक देने लगा और जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेप्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री का प्रभार संभालने के बाद देश में औद्योगिक क्रांति को एक नई पहचान मिली। इस संदर्भ में देश के बड़े उद्योगपति गौतम अडानी के एक बयान महत्वपूर्ण है कि ‘अगले 15 से 20 साल भारत को विकसित देश की श्रेणी में खड़ा करने के लिए महत्वपूर्ण है,’ यह बयान प्रमाण दे रहा है कि भारत एक स्वर्णिम भविष्य की ओर बढ़ रहा है। एक उदाहरण देना चाहता हूं औद्योगिक बूम कर, आपको ध्यान होगा कि 2001 से पूर्व देश मंे सिक्यूरिटी गार्ड सेक्टर का देश में नामोनिशान नहीं था लेकिल 2001 के बाद सिक्योरिटी गार्ड सेक्टर ने एक महत्वपूर्ण स्ािान बना लिया, जोकि भारी संख्सा में रोजगार देने के साथ देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहा है।
विश्व का सबसे बड़ा बाजार भारत
अब बात करते हैं विश्व के बाजार की तो अब देखने में आ रहा है चीन की आबादी के मुकाबले भारत की बाजार विश्व का सबसे बड़ा बाजार के रुप में स्थापित हो चुका है। अब हम इय तथ्य पर भी चर्चा करनी होगी कि भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार क्यों बना? आपने स्वयं अनुभव किया होगा कि आजादी के बाद से भारत में निर्माण सेक्टर की विश्व में कोई बड़ा योगदान नहीं था, कहना गलत नहीं होगा विश्व की बड़ी निर्माण कम्पनी बाजार के बाजार को महत्व नहीं देती थी। स्थिति यह भी थी कि भारतीय खरीदारों को विश्व की बड़ी कम्पनी अपनी शर्तो पर माल बेचती थी लेकिन अब बदलाव आ चुका है। बड़ा कारण यह रहा कि भारतीय सरकार देश के उद्योग-व्यापार को संरक्षण देते हुए सशक्त स्थान देने के साथ भारत में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्म निर्भर भारत’ योजना के तहत इलेक्ट्रोनिक, रक्षा क्षेत्र, इस्पात, सीमेंट, चमड़ा, पेट्रोलियम के साथ आॅटो सैक्टर में निर्माण को प्रमुखता दी और इस क्षेत्र के योगदान को नई पहचान भी प्रदान करने से देश का इलेक्ट्रोनिक, रक्षा क्षेत्र, इस्पात, सीमेंट, चमड़ा, टैक्सटाइल्स व आॅटो सैक्टर में निर्माण का प्रतिशत बहुत अधिक मात्रा में बढ़ चुका है। क्येांकि पहले रक्षा उपकरणों एवं रक्षा सामग्री के क्षेत्र में पूरी तरह कुछ विदेशों पर निर्भरता था लेकिन अब रक्षा उपकरणों एवं रक्षा सामग्री, जहाज तेजस आदि के साथ सैनिकों की वर्दी, हथियार, सुरक्षा कचवों जैसे कपड़े, जूते आदि क्षेत्र में भारत ने आत्म निर्भरता की ओर बढ़ता जा रहा है। और विदेशों में निर्यात भी कर रहे हैं। इसी प्रकार आॅटो सेक्टर में कारों के साथ भारी वाहनों के निर्माण और निर्यात में भी उल्लेखनीय वृ(ि करते हुए विश्व के प्रमुख एवं छोटे देशों में धाक जमा दी है। आपको स्मरण होगा कि पहने रक्षा के उपयोग आने वाले छोटे एवं मध्यम जहाज आदि का भी आयात करना पड़ता था लेकिन अब छोटे व रक्षा उपकरणों के नियात के आदेश प्राप्त होने लगे हैं।
जैसाकि मैंने ऊपर लिखा है कि पहले विश्व की निर्माण कम्पनियों अपनी शर्तो में पर भारत को माल बेचती थी लेकिन अब भारत खरीदने में अपनी शर्ते रखते हुए खरीद कर रहा है। आपने स्वयं यह अनुभव कर चुके हैं कि 2004 के बाद चीनी सामान का आयात बड़े पैमाने पर होता है। आपको यह भी याद होगा कि कि 2004 के बाद से मोबाइल का बाजार चीन मंे निर्मित मोबाईलों से पटा पड़ा रहता था, लेकिन अब मोबाईलों का निर्माण भारत में हो रहा है। इसी क्रम में कम्प्यूटर एवं चिकित्सा उपकरणों में ताइवान एवं कोरिया का प्रभुत्व था, जेकिन अब नहीं। चीन के सामग्री के बारे में चर्चा करना आवश्यक है कि चीन से घरेलू, सजावट, सौन्दर्य जैसे सभी वस्तुओं का आयात बड़े स्तर पर होता था, इसी प्रकार होली के रंग और दिपावली पर उपयोग होने वाली झालर आदि भी चीन से ही आती थी। असम की काष्ठ सामग्री भी चीन के आयात के कारण प्रभावित हो चुकी थी। उल्लेखनीय है कि असम में बांस एवं सरकंडों के बड़े घने जंगल है। असम मंे पैदा होने वाले बांस एवं सरकंडों से बने उत्पाद आदिवासी जनजाति का यह प्रमुख कुटीर उद्योग था, लेकिन भारत में इन उत्पादों को कृषि उत्पाद के साथ खनिज मानकर मंडी शुल्क लगना शुरु हो गया था, जोकि चीन के उत्पादों के आयात होने के कारण से प्रभावित हो गया था, मार्बल के मामले में अर्जेटिना के मार्बल भारत का बाजार भरा रहता था लेकिन जनता की राष्ट्रभाव कही जाये अथवा आत्म निर्भर भारत नीति, लेकिन चीन का निर्माण सेक्टर जो भारत पर निर्भर था लेकिन अब ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच चुका है।
चुनौतियों के बीच संभलती अर्थव्यवस्था
2020 को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था को कोरोना ने बे्रक लगा दिये थे लेकिन उनके बावजूद भी भारत पुनः उठ खड़ा हुआ और 2022 में रुस और यूक्रेन यु( ने प्रभावित कर दिया, ओपेक देशों से पेट्रोलियम पदार्थो की आपूर्ति कम होना बड़े चिंता के विषय था फिर भी देश की जीडीपी 6.5 से 6.9 के बीच बनी रहने प्रबल संभावना बनी हुई है। चलिए अब करते हैं अध्ययन भारत की अर्थव्यवस्था की तो 2022 के अंतिम माहों में भारतीय अर्थव्यवस्था सशक्त, पूर्ण क्षमता और मजबूत आर्थिक बुनियाद धरातल के कारण विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने लगी। औद्योगिक विकास के साथ बात करें बेरोजगारी की तो दिसम्बर 2022 में देश में बेरोजगारी के आंकड़ों घटकर 8 से 9 प्रतिशत के लगभग रहा। लेकिन कह सकते हैं कि विभिन्न आर्थिक चुनौतियों के बीच भी 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक मोर्चो पर उत्साहजनक प्रदर्शत करती रही। उपभोक्ता मांग में वृ(ि, उद्योग-व्यापार गतिविधियों में तेज गति के चलते जीएसटी में राजस्व संग्रह में वृ(ि इस प्रगति और मजबूती का प्रमाण तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का प्रमाण काफी है। कृषि क्षेत्र में वर्ष 2021-22 के अंतिम तिमाही में अनुमान के अनुसार कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकाॅर्ड 31.57 करोड़ टन रहा जो कि गत वर्ष की तुलना में 49.8 लाख टन अधिक रहा।
विश्व बैंक द्वारा जारी माईग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ रिपोर्ट 2022 के अनुसार विदेशी में प्राप्त आय अपने देश में 100 अरब डाॅलर भेजकर प्रवासी भारतीय दुनिया में सबसे अब्बल रहे, विदेशी मुद्रा भंडार में हिस्सेदारी दी। उधर भारत मुक्त व्यापार समझौते के माध्यम से विकास की गति दिखाई। लेकिन यह भी ध्यान में रखना होगा कि इतनी तेजी तब रही जबकि 2022 भारत के लिए चुनौती पूर्ण रहा।
जहां तक बात करें जीडीपी के 6.5 से 6.9 प्रतिशत रहने की तो हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान में भी भारत की जीडीपी दो दहाई में ही है क्योंकि सांख्यिकी विभाग द्वारा लिए जाने वाले आंकड़ों पर प्रश्न नहीं लगा रहे लेकिन आज भी भी हमारे देश में जनता अपने सही आंकड़े उपलब्ध कराने में संकोच करती है। अतः जीडीपी का आंकड़ा एकल दहाई में दर्शा रही है।
लेकिन हमको विश्वास रखना होगा, साथ ही भारत के समग्र विकास में अपनी सहभागिता, सहयोग और संभावनाओं को बनाये रखना होगा, जिसका दायित्व प्रत्येक भारतीय का है। ताकि अगले 2030 तक विश्य की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था से पहले स्थान को प्राप्त कर सके और भारत पुनः सोने की चिड़िा वाला गौरव प्राप्त कर सके।
-पराग सिंहल, आगरा