भाद्रेश में महात्मा इशरदासजी पैनोरमा का हुआ शिलान्यास

राजस्थान/बाड़मेर- भारतीय चारण समाज के शिरोमणि अवतार पुरुष महात्मा एवं ईसरदासजी बारहठ भादरेश के चिर प्रतिक्षित पैनोरमा का ईसरदासजी की जन्म भूमि भादरेश गांव में भव्य समारोह में मुख्य अतिथि राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत के कर‌ कमलों द्वारा किया गया विशिष्ट अतिथि हजारी दान उप प्रधान, बाड़मेर चारण समाज कार्यवाहक अध्यक्ष तेजदान खारोड़ा एवं भादरेश के पांचों गांवों के वरिष्ठ नागरिक उपस्थित रहे। पैनोरमा निर्माण करवाने के लिए ग्राम पंचायत भादरेश एवं श्री‌ इशरा सो परमेशरा हरिरस न्यास भादरेश द्वारा किए गए प्रयासों से ही सार्थक हुआ।

आज प्रन्यास द्वारा की गई व्यवस्थाएं सराहनीय रही न्यास अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह बारहठ एवं समस्त कार्यकारिणी द्वारा तीन दिन तक अथक मेहनत करके शिलान्यास का कार्य विधिवत रूप से सम्पन्न करवाया इस दौरान भूर सिंह , तन सिंह, रेवत दान, मनोहर सिंह व्यवस्थापक , करणी दान, नेनी दान, नरपत दान, आला राम, राम दान,गोविन्द एवं समस्त ग्राम वासियो एवं श्री इशरा सो परमेशरा हरिरस न्यास की समस्त कार्यकारिणी की सेवाएं सराहनीय रही। शिलान्यास समारोह के दौरान महादान सिंह बारहठ अध्यक्ष महात्मा ईसरदास चारण साहित्य शोध संस्थान बाड़मेर ने स्वागत भाषण दिया।

बारहठ ने कहा कि ईसरदासजी का पैनोरमा बनना भारत वर्ष के संपूर्ण चारण समाज के लिए गौरव की बात है,इसके लिए राजस्थान का संपूर्ण चारण समाज मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा एवं धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत का विशेष रूप से आभारी है। महात्मा इशरदास ज़ी भगवान रूपी देवता हैं इनके पर्चे जग जाहिर हैं इस दौरान मंच संचालन सेवानिवृत्त इन्जीनियर नरपतसिंह बारहठ भाद्रेश ने किया।

महात्मा इशरदासजी के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए समाजसेवी अक्षय दान भाद्रेश ने बताया कि चारण महात्मा ईसरदास रोहड़िया (वि. सं. 1515 से वि. सं. 1622) को राजस्थान और गुजरात में भक्त कवि के रूप में आदरणीय स्थान प्राप्त है। उनकी साहित्यिक संपदा गुजरात और राजस्थान की संयुक्त धरोहर है। आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया यथार्थ रूप में कहते हैं कि- हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में जो स्थान गोस्वामी तुलसीदास और कृष्णभक्त कवि सूरदास का है वही स्थान गुजरात, राजस्थान, सौराष्ट्र, सिन्ध, धाट और थरपारकर में भक्तवर ईसरदास का है। भक्त कवि ईसरदास ने उम्रभर भक्ति के विरल स्वानुभवों और धर्मग्रंथों से प्राप्त ज्ञान का सुंदर समन्वय अपने साहित्य में प्रस्तुत किया है। मगर यहाँ ईसरदास रोहड़िया के जीवन में हुए चमत्कारों, पुरस्कारों और शिलालेखों के संदर्भ में ही बातें करनी अभीष्ट है। भक्त कवि ईसरदास रोहड़िया के दीर्घ जीवन में अनेक घटनाएँ एवं चमत्कार हुए और उन्हीं चमत्कारिक घटनाओं के साथ उनका जीवन जुड़ गया है। हम कह सकते हैं कि ये चमत्कार उनके जीवन में सहज ही प्रगट हुए हैं।

लोकप्रसिद्धि या बदइरादे से या बाहरी दिखावे के लिये ये चमत्कार बताये हों ऐसा नहीं है। वस्तुतः भक्त कवि ईसरदास के हृदय में स्थाई रूप से निहित अनुकंपा, त्याग की भावना से प्रेरित हो दीन-दुखियों की सहायता करने की वृत्ति के कारण ही उनके जीवन में घटित कुछ सहज घटनाएं तत्कालीन परिवेशानुसार लोकमानस में चमत्कार के रूप में पैठ गई। भक्तों में मिलनेवाली अलौकिक शक्ति के बारे में कालिदास महाराज ने एक संदर्भ में कहा है कि-‘भक्ति की चरमसीमा पर पहुँचे व्यक्ति भक्त के हृदय को द्रवीभूत कर अपने आराध्य में लीन हो जाते हैं। इससे आराध्य इष्ट की सारी शक्तियाँ उसमें आ बसती है” परमात्मा पर अटूट श्रद्धा और अमिट विशास ही भक्त की आत्मशक्ति को बढ़ाता हैं। ईसरदास के जीवन में बनी चमत्कारिक घटनाएँ उनकी परमात्मा के प्रति अटूट श्रद्धा के ही कारण हैं। इस श्रद्धा के बल पर ही ईसरदास अनेक बाधाओं को पार कर ईसरा सो परमैशरा’ वाली उक्ति प्राप्त कर सके हैं। यहाँ भक्त कवि ईसरदास के जीवन में घटी चमत्कारिक घटनाओं का बहुत सारे इतिहासकारों और विद्वान कवियों ने अपनी कविताओं में सार प्रस्तुत किया गया है।

– राजस्थान से राजूचारण

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