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बाड़मेर मेडिकल कॉलेज के नर्सिंग कर्मियों की सेवा भावना वाकई तारीफें काबिल है लेकिन आजकल बेरूखी का जमाना है : राजू चारण

बाड़मेर/राजस्थान- बाड़मेर मेडिकल कॉलेज के अधीन जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल डाक्टर बी एल मन्सुरिया की देखरेख में साफ़ सफाई और बेहतरीन चिकित्सा प्रबंधन को देखकर अन्दाज़ लगा सकते हैं कि ये कोई निजी अस्पताल हैं या फिर सरकारी अस्पताल, चारों तरफ शानदार साफ़ सफाई और प्रत्येक वार्ड में फिनायल की खुश्बू से वार्ड के मरीजों को अलग ही अनुभूति महसूस करते हैं। अस्पताल आने वाले मरीजों ने भी नर्सिंग कर्मियों द्वारा इलाज़ के दौरान सेवा करने की भावना से खुशी महसूस करते हैं। अगर कोई तारीफ करते हैं तो उन्हें भी खुशी मिलती है और कोई खिलाफत करते हैं तो वो उनके दिमाग की उपज पर निर्भर करता है।

अस्पताल आने वाले मरीजों और उनके परिजनों ने कहा कि अस्पताल आने के बाद हम आश्वस्त है कि मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और जिलाधिकारी टीना डाबी के कुशल प्रशासनिक पकड़ के साथ ही जिला प्रशासन की देखरेख में बेहतरीन इलाज मिल रहा है। पिछले एक महिने में ही जिलाधिकारी द्वारा अस्पताल का औचक निरीक्षण करते हुए नुवो बाड़मेर स्वच्छता के लिए साफ़ सफाई अभियान भी चलाया जा रहा है इसका परिणाम आपको शहर में भ्रमण करते हुए ही पता चलेगा।

अस्पताल में सबसे पहले सेवा भावना और नर्सिंग सेवाओं के सम्बन्ध में आपका विचार पर प्रत्युत्तर में नर्सिंग आफिसर अन्जू विश्नोई ने कहा कि मदर टेरेसा की प्रेरणा से मैंने अपने जीवन का कुछ हिस्सा नर्सिंग करते हुए बिताया और नर्स भाई-बहनों का नि:स्वार्थ सेवाभाव, प्रेम व समर्पण को बहुत करीब से देखा है। उनका जज्बा हमेशा औरों को भी प्रेरित करता है।

विश्नोई ने कहा कि नर्सिंग का काम सेवा, प्रेम और करुणा के भावों से भरा हुआ होता है। हमारे स्वास्थ्यकर्मी भाई-बहन लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए पूरे समर्पण के साथ मेहनत करते हैं और मुश्किल हालात में भी लोगों की सेवा करते हैं। कोरोना भड़भड़ी के समय हमारे स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी जान तक दांव पर लगा दी थी।

सिनीयर नर्सिंग आफिसर वैणी दान चारण ने कहा कि कोरोना भड़भडी ने यह भी सबक दिया है कि दुनिया भर में कोरोना के कारण लाखों मौतें हुई है तो करोड़ों लोगों की जान भी बचाई गई है। दरअसल कोरोना ने एक अलग तरह के ही हालात पैदा किए और आम आदमी ही क्या सरकारों तक को लाचार हालात में खड़ा कर दिया था। जिस तरह से कोरोना की जंग डॉक्टरों के भरोसे लड़ी गई तो इस जंग में नर्सिंग कर्मियों और पेरामेडिकल स्टॉफ की भूमिका को भी एक कदम अधिक ही महत्व देना होगा। हालात यह है कि देश दुनिया में कोरोना के अनुभवों को देखते हुए अस्पतालों में बेड और अन्य सुविधाएं तो बढ़ाने का सिलसिला जारी था, पर इन सुविधाओं को संचालित करने वाले चिकित्सकों, नर्सिंग कर्मियों और पेरामेडिकल स्टाफ को होने वाली कमियाँ को दूर करने के प्रति अभी अधिक गंभीरता नहीं दिखाई दे रही है।

चारण ने कहा कि देखा जाए तो चिकित्सक से भी एक कदम अधिक रिस्क नर्सिंग कर्मियों का होता है। मरीज की देखभाल और समय पर दवा, इंजेक्शन, ड्रेसिंग आदि की जिम्मेदारी नर्सिंग कर्मियों पर ही होती है। चिकित्सक के साथ ही अस्पताल के नर्सिंग कर्मियों का मरीज और उनके परिजनों के साथ व्यवहार और सेवाभाविता बहुत मायने रखती है। भारतीय नर्सिंग परिषद की मानें तो देश में 31 लाख नर्स पंजीकृत हैं। एक समय था जब नर्सिंग कार्य पर महिलाओं का ही एकाधिकार था और नर्सिंग कर्मी मतलब केरल की महिलाओं की अलग ही पहचान होती थी लेकिन आजकल राजस्थान भी पीछे नहीं है। सेवा भाव व ड्रेस कोड भी प्रभावी रहा है। आज देश में एक हजार की आबादी पर दो से भी कम 1.7 नर्स हैं जबकि आज की तारीख में यह आंकड़ा कम से कम दो गुणा होना चाहिए।

बाड़मेर नर्सिंग ट्रेनिंग स्टूडेंट हर्षिता नागौरी और हर्षिता जागिड ने कहा कि चिकित्सा सेवाएं जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा है और अस्पताल आने वाले मरीजों के साथ हमारी सेवा भावना को देख कर मरीज को सकुन मिलता है और जल्दी स्वस्थ होकर अपने परिवारिक सदस्यों के पास चला जाता है लेकिन अस्पताल में नर्सिंग कर्मियों की सेवा उन्हें आजीवन याद रहती है इसमें कोई शक सुबहा नहीं।

सेवानिवृत्त इन्जीनियर बी एल शर्मा ने किया कि एक तरह से देखा जाए तो हमारे देश में भी यह आंकड़ा लगभग इसके पास ही करीब 10.7 है। दुनिया भर में दो करोड़ 80 लाख नर्सें रोगियों की सेवा में जुटी हैं। कोविड में जिस सेवा भाव से दुनिया के देशों में चिकित्सकों के साथ ही नर्सिंग और पेरामेडिकल स्टाफ ने मानवता के लिए काम किया है, अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना लोगों को जीवनदान दिया है और यहां तक तो कईयों ने तो अपने जीवन की आहुति देकर अपना धर्म निभाया है।

शर्मा ने कहा कि जिस तरह के हालात हैं और जो भविष्य दिखाई दे रहा है उसमें स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की अत्यधिक आवश्यकता महसूस हो गई है। यदि हमारे देश ही की बात करें और भारतीय उद्योग परिसंघ यानि सीआईआई की मानें तो देश में 2030 तक 60 लाख नर्सों की आवश्यकता होगी। इसका मतलब यह कि देश में 2030 तक दोगुणी नर्सों की आवश्यकता होगी। अब सवाल दो तरह के उठ रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोविड के दौरान देश के नर्सिंग कर्मियों ने बेहतरीन सेवाएं दी हैं। पर कहीं ना कहीं यह सोचना होगा कि जो सेवा भाव व प्रतिबद्धता एक जमाने की केरल की नर्सों में देखी जाती थी, आज कहीं ना कहीं उसमें कमी साफ दिखाई दे रही है।

अस्पताल परिसर में ही मरीजों की सेवा भावना से घूम रहे
भाजपा प्रवक्ता रमेश सिहं इन्दा ने कहा कि आज भी नर्सिंग क्षेत्र में दुनिया के देशों में दस में नौ नर्स महिलाएं ही हैं पर आज के युग में लैंगिकता की बात करना उचित नहीं होगा। महिलाओं के साथ ही पुरुष नर्सिंग कर्मी भी पूरी सेवा भाव से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। पर एक चिंतनीय परिदृश्य और सामने आ रहा है कि जिस तरह से देश में कुकुरमुत्ते की तरह से इंजीनियरिंग कॉलेज खुले और जिस तरह से एमबीए का दौर चला और अध्ययन का स्तर बनाए नहीं रखने के कारण इन संस्थाओं में से कईयों को तो बंद करने और कईयों को चलाए रखने में भी मुश्किलात आ रही है, ऐसे में जिस तरह से गली गली में नर्सिंग कालेज खुल रहे हैं वहां शिक्षण, प्रशिक्षण का स्तर बनाए रखना बड़ी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में सरकार और संस्थान दोनों का ही दायित्व हो जाता है कि वे लोगों के जीवन मरण से जुड़े इस पवित्र क्षेत्र की गरिमा को बनाए रखने वाली टीम तैयार करें ताकि बीमार और परिजन नर्सिंग कर्मियों में फ्लोरेंस नाइटेंगल की झलक देख सकें। यह मानवीय सेवा का क्षेत्र है, सेवा शर्तों और सुविधाओं का ध्यान रखना राज्य सरकार या संस्थान का काम है तो रोगी के प्रति सेवा भाव रखना नर्सिंग कर्मियों का हो जाता है। ऐसे में नर्सिंग कर्मियों की ऐसी नई पीढी तैयार की जानी है जिसमें केरल की नर्सों जैसी मानवीयता और अनुशासन हो तो फ्लोरेंस नाइटेंगल जैसी सेवा, प्रेम और स्नेह का सागर भी हो।

– राजस्थान से राजूचारण

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