आज केवल यही कहूंगा कि मोदी सरकार के इस बजट में उस भारत की छवि स्पष्ट दिखायी दे रही है, जोकि प्रत्येक भारतवासी पुरातन भारत के समान ‘सोने की चिड़िया’ के रुप में चाहता है।
इसके अतिरिक्त हम सभी को यह विचार करना चाहिए कि वास्तव में वार्षिक बजट क्या है? क्या हमारे लिए बजट आयकर के साथ टैक्सों में छूट के साथ सुविधाओं को पुलिंदा है? हमारे देश में एक परिपाटी बन चुकी है कि संसद पटल पर रखे जाना वाला बजट यह बजट देश के सुनहरे भविष्य का खाका नहीं बल्कि जनता को फ्री में सुविधाएं, टैक्स में छूट और आयकर स्लैब बढ़ाना तक मात्र है, सबसे बड़ा मजाक यह भी है कि देश की कुल जनसंख्या (लगभग) 1.36 में मात्र 5.85 करोड़ लोग आकयर रिटर्न दाखिल कर रहे हैं और उनमें से मात्र 1.50 करोड़ लोग आयकर दाता है लेकिन बजट ऐसे सुनते हैं कि जैसे कितने बड़े ज्ञानी है ;यह सच हैद्ध और उन पर बजट में स्लैब बढ़ाये जाने के साथ आयकर की सीमा बढ़ाये जाने से कितनी राहत मिलने जा रही है। वैसें देखा जाये तो जनता की इस सोच में सरकार का भी बहुत बड़ा हाथ है। मैं तो यह कहता हूं कि अभी तक की सरकारों ने देश में कभी भी देश की जनता के बीच टैक्स देने की प्रवृत्ति (Taxation sense) पैदा ही नहीं होने दी। बल्कि देश में ऐसा वातावरण पैदा कर दिया गया है जो टैक्स दे रहा है वह समाज का अछूता व्यक्ति है, वह कोई अपराध कर रहा है। और सरकार कोई ऐसे करदाताओं को सुविधा प्रदान करती है तो यह हल्ला मचा दिया जाता है कि सरकार पैसों वालों के साथ दे रही है जबकि यह नहीं सोच पा रहे हैं कि जो जनता सरकार से राहत की आशा रखती है, सुविधाएं विदेश जैसी चाहती है, समय-समय पर मुआवजा की मांग करती है, किसानों का रोना रोते हैं, उनको देने के लिए सरकार कहां से पैसा लाती है? कभी सोचा कि इस सभी प्रकार की राहतों, मुआवजे के लिए, फ्री की सुविधा के लिए सरकार पैसा कहां से लाये, यह पैसा तो टैक्स से ही आता है!! जैसाकि ऊपर आयकर देने वालों की संख्या बतायी गई है कि 1.36 करोड़ की आबादी में से मात्र 1.50 करोड़ लोग आयकर का भुगतान कर रहे हैं अब आप स्वयं हिसाब लगाये कि 136 करोड़ की आबादी और आय का स्रोत मात्र 1.50 करोड़ लोग।
अब बात करें कि बजट के प्रभाव की तो बजट में चिकित्सा- स्वास्थ्य क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र के साथ सुदृढ़ और श्रेष्ठ भारत का खाका खींचने वाला कहा जाना चाहिए। प्रशंसनीय है कि दो साल की महामारी का दंश झेलने के बावजूद केन्द्रीय वित्त मंत्री जी ने ऐसा बजट प्रस्तुत किया है जो कि निकट भविष्य के साथ दूरगामी परिणाम देने वाला कहा जाना चाहिए।
जैसा कि कृषि विशेषज्ञ निरंकार सिंह ने कहा कि नई संभावनाएं तलाशती योजनाएं… बड़े बदलाव की उनका कहना है कि सरकारी मदद पर टिका कोई भी क्षेत्र आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। कुछेक घोषणाओं को छोड़ दें तो आम बजट में कृषि क्षेत्र के प्रति सरकार की नई दृष्टि और इस क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की इच्छाशक्ति दिखती है। इसमें किसानों की आय बढ़ाने और कृषि के पांरपरिक तरीके में बदलाव लाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। ऐसे प्रावधान जिसके जमीन पर उतरने के बाद इस क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन हो सकता है। इस प्रोजेक्ट में खाद-कीटनाशक रहित खेती से जुड़ा निर्णय है इस क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं, दुनिया रासयनिक खाद युक्त कृषि उत्पादों से दूरी बना रही है, प्राकृतिक कृषि उत्पादों के लिए अधिक खर्च करने के सरकार तैयार है। हम कह सकते हैं कि दुनिया में प्राकृतिक उत्पादों का एक बड़ा बाजार तैयार हो रहा है। यदि तुलना करनी है तो करते हैं कि कांग्रेस की यूपीए के अपने अंतिम 5 वर्षीय शासनकाल (2009-14) के दौरान प्रस्तुत 5 बजटों में कुल मिलाकर 1.14 लाख करोड़ रुपए कृषि मंत्रालय को दिए थे। जबकि केवल इस एक वर्ष के बजट में ही मोदी सरकार ने 1.24 लाख करोड़ रुपए कृषि मंत्रालय को दिए हैं।
बजट के बारे में अन्य बिन्दुओं पर गहन अध्ययन करने से ज्ञात हो रहा है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आज वित्तीय वर्ष 2022-23 का 39.44 लाख करोड़ रुपये का बजट प्रस्तुत किया गया है। आज से 9 वर्ष पूर्व अपने 10 वर्षीय शासनकाल के अंतिम वित्तीय वर्ष 2013-14 में कांग्रेसी यूपीए द्वारा 16.65 लाख करोड़ का बजट प्रस्तुत किया गया था। अर्थात अपने शासनकाल के 9वें वर्ष में मोदी सरकार यूपीए सरकार की तुलना में उससे 22.79 लाख करोड़ रु (137 प्रतिशत) अधिक खर्च करने जा रही है। कांग्रेसी यूपीए के अपने अंतिम 3 वर्षीय शासनकाल (2011-14) के दौरान प्रस्तुत 3 बजटों में कुल मिलाकर 5.61 लाख करोड़ रुपए रक्षा मंत्रालय को आंवटित किये थे। जबकि केवल इस एक वर्ष के बजट में ही मोदी सरकार ने 5.25 लाख करोड़ रुपए रक्षा मंत्रालय को दिए हैं। अपने शासनकाल के अंतिम वित्तीय वर्ष 2013-14 में कांग्रेसी यूपीए की सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय को 37.33 हजार करोड़ रुपये दिए थे। जबकि इस एक वर्ष के बजट में ही मोदी सरकार ने 86.60 हजार करोड़ (133 अधिक रुपए स्वास्थ्य मंत्रालय प्रतिशत) को दिए हैं। ऐसे तथ्यों की सूची बहुत लंबी है जो यह बताती है कि यूपीए शासनकाल की तुलना में कितना मोदी सरकार कितना अधिक धन देश पर खर्च कर रही है।
हम बजट की निंदा भी करते हैं तो प्रश्न यह भी उठता है कि कांग्रेस की यूपीए शासनकाल की तुलना में मोदी सरकार को 22.79 लाख करोड़ रुपये अधिक खर्च करने के लिए कौन दे रहा है? इतनी बड़ी राशि कहां से आ रही है?
यह कह देना कि इस बजट में आयकर की सीमा नहीं बढ़ायी गयी है। इस आलोचना का सच यह है कि यदि यह सीमा 50,000 और बढ़ाकर 5.5 लाख कर दी जाती तो अधिकतम 10 हजार की और छूट मिल जाती। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि आम आदमी पर बोझ डालने वाला किसी भी प्रकार का कोई नया टैक्स नहीं लगाया गया है और न ही पुराने किसी टैक्स की दर को बढ़ाया गया है। देश नहीं पूरी दुनिया की कमर तोड़ देने वाली भयानक महामारी कोरोना के जानलेवा संकट की 2 साल गहरी अंधेरी खाई से देश को निकाल रही सरकार के साथ इतनी निर्ममता, इतनी स्वार्थपरता उचित नहीं। इसलिए हम तो कहेंगे कि देश के जागरुक नागरिक होने के नाते बजट को केवल टैक्सेशन की दृष्टि से ही देखना उचित नहीं होगा बल्कि भारत के समग्र विकास का खाका के रुप में देखा जाना चाहिए।
– पराग सिंहल