प्राकृतिक जल क्षेत्र में हुआ विकास कम विनाश ज्यादा:एच. के. पुरोहित

*मात्स्यिकी विकास संवर्धन विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में बोले संयुक्त निदेशक मत्स्य उत्तराखंड

*रिवर रेन्चिंग के तहत गंगा में मत्स्य संपदा रोहू बच्चा छोड़ लिया प्रदूषणमुक्ति का संकल्प

हरिद्वार । राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड के तरवादन में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत उत्तराखण्ड राज्य के गंगा नदी एवं उनकी सहायक नदियों में मात्स्यिकी संवर्धन एवं प्रबन्धन विषय पर एक विचार गोष्ठी एवं जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन नमामि गंगे अवलोकन घाट,चंडीघाट हरिद्वार में किया गया। इस दौरान मुख्य अतिथि ज्वाइंट डायरेक्टर मत्स्य उत्तराखंड एच के पुरोहित, मत्स्य फेडरेशन अध्यक्ष एवं मत्स्य विभाग के अन्य अधिकारियों ने संयुक्त रूप से रिवर रेन्चिंग कार्यक्रम के तहत चंडीघाट पर जीवनदायनी माँ गंगा में रोहू मछली का बच्चा छोड गंगा मैया को प्रदूषणमुक्त कराने का संकल्प लिया। कायर्क्रम के अवसर पर मछुआ समुदाय के सैकड़ो मत्स्य पालक मौजूद रहे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि ज्वाइंट डायरेक्टर मत्स्य उत्तराखंड एच. के. पुरोहित ने कहा कि प्राकृतिक मात्स्यिकी जल क्षेत्र में विकास कम और विनाश ज्यादा हुआ है, जिसके चलते जीवनदायनी माँ गंगा एवं इसकी सहायक नदियों में आज मत्स्य संपदा विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई हैं जो अपने आप मे गंभीर चिंता एवं मंथन का विषय है, जबकि पूर्व में मछलियों के कारण ही अधिकांश मछुआ समुदाय नदियों के किनारे निवास करता था। उन्होंने कहा कि हरिद्वार से लेकर गंगा सागर तक मां गंगा एवं सहायक नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए इनमे न केवल अधिक से अधिक मत्स्य संपदा को पुनर्जीवन देना होगा बल्कि संकल्पबद्ध होकर जनजागरूकता भी लानी होगी। मुख्य अतिथि ने सहकारी मत्स्यजीवी समितियों के पदाधिकारियों एवं सदस्यगण से आह्वान करते हुए कहा कि एकता ही आपकी सफलता का आधार है। वैज्ञानिक विधि अपनाते हुए अधिक से अधिक तालाबों में मत्स्य पालन करे। प्रति हेक्टेयर की दर से तालाब में 8 हजार फिंगर साइज मछली का बच्चा ही डाले यही मछुआ समुदाय की उन्नति के साथ ही प्राकृतिक जल श्रोतो की प्रदूषण से मुक्ति का भी आधार है। मछलियों के उचित मूल्य हेतु सुलभ बाजार व्यवस्था उपलब्ध कराएं जाने के साथ ही बड़े बड़े कोल्ड स्टोरेज बनाए जाएंगे ताकि एक-एक वर्ष में भी मछलियां एक्सपायर न हो सके।उप निदेशक मत्स्य प्रमोद कुमार शुक्ला ने कहा कि 20 वर्ष पूर्व हरिद्वार में मछली पालन एवं मछुआ समुदाय दोनो की ही हालत अच्छी नही थी, लेकिन आज मछुआ समुदाय वैज्ञानिक विधि से बेहतर मत्स्य पालन के कारण स्वतः रोजगार की दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है जो अपने आप मे सराहनीय है। उन्होंने रिवर रेन्चिंग कार्यक्रम के अंतर्गत गंगा में छोड़े गए रोहू के मत्स्य बीज की उपलब्धता की बाबत हरिद्वार के मछुआ समुदाय की पूरी टीम को बधाई दी। सहायक मत्स्य निदेशक हरिद्वार अनिल कुमार ने कहा कि मछुआ समुदाय ढूंड-ढूंड कर तालाबों और जलाशयों को मत्स्य पालन के लिए अपने नाम आवंटित कराए, क्योंकि तालाब एवं जलाशयों आदि में मछली का बच्चा पड़ जाने से इन प्राकृतिक जल श्रोतों का जल 80 प्रतिशत प्रदूषणमुक्त हो जाता है, जो वैज्ञानिक कारण है। उन्होंने कहा कि मानव जनित रोगों जैसे डेंगू, महामारी आदि का कारण प्राकृतिक जल श्रोतो नदियों, जलाशयों, तालाबों का बड़ा कारण प्रदूषित हो जाना है। उन्होंने कहा कि जनपद में अभी तक मत्स्य पालन के साथ-साथ बत्तक पालन व मुर्गा पालन का अनुभव मछुआ समुदाय के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ है। एनसीडीसी अधिकारी एवं राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड के पूर्व सलाहकार अजय पांडे ने अपने संबोधन में कहा कि गंगा को जीवनदायनी और जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र को हर सूरत में संरक्षित एवं सुरक्षित रखना होगा, क्योंकि गोमुख से गंगा सागर तक माँ गंगा पर देश की 46 प्रतिशत आबादी निर्भर है। उन्होंने कहा कि फिसरिंग दो प्रकार की होती है कैप्चर फिसरिंग और कलचर फिसरिंग। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि जहां एक ओर 70-80 के दशक में कैपचर फिसरिंग से 60 से 70 प्रतिशत मछली पकड़ी जाती थी आज इसकी स्थिति 20 से 30 प्रतिशत ही रह गई है, जबकि आज कलचर फिसरिंग वैज्ञानिक विधि के सहारे करीब 80 प्रतिशत मछली का उत्पादन किया जा रहा है, जिसका मुख्य कारण है कि हम गंगा नदियों का संरक्षण नही कर पा रहे हैं। जिला सहकारी मत्स्य विकास एवं विपणन फेडरेशन हरिद्वार के अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यमंत्री नेपाल सिंह कश्यप ने कहा कि गंगा के पानी को स्वच्छ रखने के लिए मछली छोड़ी जाती है ताकि गंगाजल की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ ग्राम प्रधान मत्स्य पालन हेतु तालाब आवंटन का विरोध करते हैं जबकि मछलिया तालाबों को प्रदूषण मुक्त करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक बड़ा आधार है, जिसे किसी भी सूरत में नजरअंदाज नही किया जा सकता है, इसलिए अधिक से अधिक तालाबों का मत्स्य पालन हेतु आवंटन किया जाए। उन्होंने जीवनदायनी माँ गंगा के तट पर नमामि गंगे योजना के तहत बनाए गए सुंदर चंडीघाट एवं गंगा अवलोकत की बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भारत सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य सरकार के साथ ही भारत सरकार का ध्यान भी पूरी तरह जनपद हरिद्वार के मत्स्य पालन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, इसलिए सहकारी मत्स्यजीवी समितियां एवं मत्स्य पालक मत्स्य विभाग एवं राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम व जिला सहकारी मत्स्य विकास एवं विपणन फेडरेशन के परस्पर सहयोग से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन कर जनपद हरिद्वार का नाम रोशन करे। मत्स्य अधिकारी देवेश मिश्रा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम को एनसीडीसी प्रभारी हरिद्वार यूपी सिंह, भाजपा मंडल अध्यक्ष झबरेड़ा विपिन कुमार गर्ग, सहकारी मत्स्यजीवी समिति भिस्तीपुर अध्यक्ष श्रीमती बबिता आदि ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर सीनियर इंस्पेक्टर मत्स्य एवं एनसीडीसी प्रभारी रुड़की/भगवानपुर अमित कुमार पैन्यूली, मत्स्यकर्मी चंद्रपाल व विजयपाल, राजेश कुमार, नन्दकिशोर, संजय कुमार, अमन कुमार, मयंक कुमार, बीके कश्यप, मांगेराम, पप्पू, लल्ला, श्रवण, श्यामकुमार, आदि सहकारी मत्स्य जीवी समितियों के दर्जनों मत्स्यपालक मौजूद रहे।

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