पत्रकारिका की चुनरी में लागा दाग़ मिटाऊ कैसे : राजू चारण

राजस्थान- आजकल की तार तार होती बेजान पत्रकारिता को देखकर मन बहुत क्रोधित होता है और ना चाहते हुए भी कलम को अपने दिल के जख्मों से डुबोकर रक्तरंजित शब्दों से कडवी सच्चाई ब्या करने की छोटी सी कोशिश करते हैं लेकिन जब अखबारों में खबरें छपकर लोगों को बिना बिकाऊ और कड़वाहट के साथ में परोसी जाती है तब तो औरों से ज्यादा अपनों के जलने की बदबू आती है, लेकिन जिदंगी एक युद्ध का मैदान है जैसे सरहदों पर दुश्मन देश के जवानों को गोली नहीं मारते हैं तो फिर हम उनकी गोली खाकर शहीद की श्रेणी में आ जातें हैं और फिर मिलती है सरकारी सुविधाओं की झड़ी।

जर्नलिस्ट काउंसिल आफ इण्डिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सलाहकार समिति के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण ने दो दशकों की पत्रकारिता में बहुत कुछ देखा है, कई दुख सुख और तकलीफ झेलकर आज भी वो दिन याद आते हैं।

सेवानिवृत्त इन्जीनियर बी एल शर्मा ने कहा कि एक समय था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त थी कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द राजनेताओं, व सरकारी अधिकारियों की कुर्सी को हिला देता था, पत्रकारिता ने हमारे देश की आज़ादी में अहम् भूमिका निभाई, देश जब गुलाम था तब अंग्रेजी हुकूमत के पाँव उखाड़ने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से अनेक समाचार पत्र, पत्रिकाओं का सम्पादन शुरू हुआ था। समाचार-पत्र पत्रिकाओं ने देश को जोड़ने व एकजुट करने अहम भूमिका निभाई थी।

आज जिस तरह से समाचार पत्र-पत्रिकाओं की संख्या घट रही है और सोशलमीडिया के सहारे आधुनिक पीढ़ियों के युवाओं की फौज दिनोदिन बढ़ रही हैं। उसी तेजी से आपके आसपास में युवा पत्रकारों की संख्या भी बढ़ रही है, लेकिन इन सबके बीच, कुछ ऐसे लोग भी सरहदी बाड़मेर जिले की पत्रकारिता से जुड़ गए है। जिनके कारण पत्रकारिता पर ही सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं।

आज के जमाने में कुछ युवाओं ने पत्रकारिता को एक तरह का शोक समझ लिया है।बो इसी के चलते पत्रकारिता करते हैं। जबकि पत्रकारिता एक ऐसा कार्य है जिसे ना तो हर कोई कर सकता है और ना ही ये हर किसी के बूते की बात है।पत्रकारिता हर दौर में एक चुनौती रही है और आज भले ही सोशलमीडिया और मोबाइल फोन मीडिया क्रांति का दौर हो लेकिन पत्रकारिता आज भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आज ऐसे पत्रकारों की भी लंबी चौंडी कतार है कि जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक भी कोई लेना देना नही उनको पत्रकारिता का एक अक्षर तक नही पढ़े वो पत्रकार बने मोबाइल फोन पर कवरेज करने के लिए घूमते रहते हैं।जिससे पत्रकारिता की आमजन में छवि धूमिल हो रही हैं।लोगों का भरोसा पत्रकारों पर से उठने या फिर कम होने लगा है। अब आये दिन समाचार पत्रों में खबरें छपती है।वह पत्रकार किसी को ब्लैकमेल कर रहा था उस थाने में उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ है।ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।

लेकिन आज पत्रकार बनने के लिये गुंडे, निरक्षर आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति अपने कारोबार को संरक्षण देने के लिए पत्रकारिता से जुड़ रहे है। अपनी धाक जमाने व काले शीशे और चमचमाती हुई आधुनिक गाड़ी पर प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता क्यूंकि सिर्फ प्रेस शब्द ही काफी है। गाड़ी पर नम्बर की ज़रूरत नहीं, किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं, हेलमेट की ज़रूरत नहीं मानो सारे नियम व क़ानून इनके लिए ताक पर रखे हुए है। क्यूंकि सभी इनसे डरते जो हैं। चाहे नेता हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, पुलिस हो, अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक रहती है। इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों, कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भर कर ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीना पसंद करते हैं। खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।और भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा समाज के सामने पीटते हैं।मानो यही सच्चे पत्रकार हो सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते हैं कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि सच्चे, ईमानदार काम के लिए समर्पित अधिकारियों और कर्मचारियों को काम भी नहीं करने देते।जिससे उनका धन्दा, चलता रहे।और वह लोग समाज को गुमराह कर अपना कारोबार चला रहे।यह समाज के लिये आज नहीं तो कल घातक होगा। पत्रकार समाज को नई दिशा दिखाता है। जो समाज की अच्छाई व बुराई को समाज के सामने लाता है। जो पत्रकारिता के गिरते स्तर को बयान करता हैं इसलिए पत्रकारिता के गिरते स्तर को बचाने के लिय पत्रकार ही इस ओर कदम नही बढायेंगे तो पत्रकारिता के गिरते स्तर को बाड़मेर जिले में बचाया नही जा सकता है।

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