नीतू नवगीत के लोक गीतों से फैली बिहार की खुशबू

बिहार : डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के प्रांगण में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के बाद विश्वविद्यालय के विवेकानंद प्रेक्षागृह में लोक संस्कृति से ओतप्रोत सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न राज्यों के अलग-अलग रंग देखने को मिले । लोकगीत नृत्य और नाटिका की ऐसी त्रिवेणी प्रवाहित हुई जिसमें सभी वैज्ञानिक, शिक्षक और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आए आमंत्रित अतिथि घंटों झूमते रहे । नारी सशक्तिकरण पर आधारित आज की द्रौपदी नृत्य नाटिका को सभी ने खूब सराहा । लोकरंग के तहत बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका डॉ नीतू कुमारी नवगीत ने अनेक पारंपरिक और भक्ति गीतों की प्रस्तुति करके उपस्थित लोगों का मन मोहा । अपनी पहली प्रस्तुति में डॉ नीतू कुमारी नवगीत ने जनकपुर की पुष्प वाटिका में राम और सीता की पहली मुलाकात के प्रसंग का वर्णन करते हुए गाया देखकर रामजी को जनक नंदिनी बाग में बस खड़ी की खड़ी रह गई राम देखे सिया को सिया राम को चारो अखिया लड़ी की लड़ी रह गई । इसके बाद उन्होंने पटना से पाजेब बलम जी आरा से होठलाली मंगाई दा छपरा से चुनरिया छींट वाली, फर गइले नेमुआ परदेसिया बलमुआ जी ना अइले, लाली चुनरिया शोभे हो शोभे लाली टिकुलिया, मैया के शुभ लाले रंगवा हो, पिया मेहंदी मंगा द मोती झील से जाके साइकिल से ना यही थईया टिकुली हेरा गइले दइया रे और डर लागइ छी हमरा डर लागे छी जैसे बिहार के पारंपरिक गीतों की प्रस्तुति दी । पूरे देश में बेटियों की मान मर्यादा की रक्षा और स्वाबलंबन हेतु उचित शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने या रब हमारे देश में बिटिया कमान हो जेहन में बेटों जितना ही बिटिया की शान हो गीत प्रस्तुत करके सब को भावविह्वल किया ।
-नसीम रब्बानी ,पटना/ बिहार

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