धूप की तपिस में भी करते है अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़

पूर्णिया/बिहार- यह गर्मी और यह तपिस , न जाने कितने को जीना मुहाल कर रही हैं। एसी और कूलर में रहने वालों को क्या पता कि 40 से 50 डिग्री तापमान को सहना कितना महंगा पड़ता है। हम आज भी उस माहौल में जी रहे है जहाँ अधिकतर लोग मेहनत मजदूरी कर कमाते खाते है। कोई सड़क पर खोंचा लगाता है तो कोई ठेला , कोई सब्जी बेचता है तो कोई मछली , और इस बढ़ती तापमान में लोगो की पयास बुझाने के लिए कोई गन्ने का जूस बेचता है तो कोई आइसक्रीम , सारा दिन इस भीषण धूप में घूम घूम कर अपना रोजगार में जुटा रहता है। पर इस गरीब का दर्द कौन समझे भले ही लोगो की प्यास ये गरीब जो सड़क पर मेहनत कर बुझाते है। अपनी खून पसीना बहाते है ये उनकी मजबूरी है , डिजिटल इंडिया कहलाने वाले देश मे न जाने ये गरीब कब डिजिटल होंगे । इस भीषण गर्मी के कारण सबसे ज्यादा बूढ़े और बच्चे ग्रसित है। किसी को लू मार जाती है तो कोई गर्मी की वजह से चक्कर खा कर चकरा रहे है। पर हमारी सरकार की तरफ से कोई खास इंतजाम नही है। और सच कहें तो सरकार कर भी क्या सकती हैं। जनता उम्मीद लगाए रहती हैं कि किसी न किसी दिन हमारी विनती सुनी जाएगी और ठीक उसी प्रकार सरकार और विपक्षी के लोग भी इसी उम्मीद में रहते हैं कि इस बार जनता हमे ही वोट देगी और फिर हम इस गरीब ,बेरोजगार की सारी दुःख दूर कर देंगे पर सत्ता मिलने के बाद न जाने वो किये हुए वादे भूल जाते हैं या फिर भूलना उनकी मजबूरी बन जाती हैं।
बात कितनी भी कर ले , चाहे किसी की भी सरकार हो । सत्ता में बैठे हुए लोगों को सत्ता के नशे में चूर होकर न तो उन्हें गरीब दिखता है और न गरीबी । जरा सोचिए जो लोग अपने जीवन में एक बार विधायक तो छोड़ , अगर मुखिया भी बन गए तो बस फिर एसी ,चार चक्का गाड़ी का लुफ्त उठाने से फुरसत ही नही है। लाखो करोड़ो की लागत से चुनाव जीतने वालो की पहली प्राथिमकता अपना लगाया हुआ पूंजी निकलना होता हैं। फिर 5 साल की कमाई , शायद इसलिए कि फिर अगला चुनाव का नतीजा न जाने क्या होगा । और फिर बाद में आती हैं गरीब जनता । तब तक मे फिर चुनाव का वक़्त आ जाता है वापस नेता जी अपने चुनाव मैनेजमेंट में व्यस्त हो जाते हैं। और गरीबो से किया वादा किसी ठंडे बस्ते में धरा का धरा रह जाता है। और मजबूर जनता एक बार वापस ठगी का शिकार हो चुकी होती हैं। न तो हम बदल सकते हैं। न जनता और न ही कोई नेता और न ही पार्टी। बस हम एक बार और इसी प्रकार जीवन जीने को मजबूर है । सड़को पर ठेला लगाना, रिक्शा चलाना , खोंचा में आम और लीची बेचना और परिवार का भरण पोषण करना ही हमारा मुख्य लक्ष्य रह जाता है। इस भीषण गर्मी में न तो हम कुछ बोल पाते हैं और न कुछ कह पाते हैं।
-पूर्णिया से शिव शंकर सिंह की रिपोर्ट

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