बरेली/फ़तेहगंज पश्चिमी/ मीरगंज- तहसील क्षेत्र अंतर्गत मुनाफाखोरी के लिए प्राकृतिक दोहन और पर्यावरण प्रदूषण की दोहरी चपत लगाई जा रही है। कोयला भट्टी अधिनियमाें को दरकिनार कर नेशनल हाइवे किनारे मानकाें के विपरीत भट्टियाें का संचालन हो गया है। वन विभाग महकमा भी इस कारोबार पर हो रही नियमित अनदेखी से खामोश है।मीरगंज ब्लाक क्षेत्र में कई सालों से संचालित कोयला भट्टिया लेकिन कायदे कानूनाें को नजरंदाज कर यह कारोबार शुरू है। कोयला भट्टी अधिनियम के विपरीत कस्बें में कोयला भट्टियां धधकने लगी हैं। यहां बड़े पैमाने पर बेशकीमती लकड़ी का कटान कर बगैर वन विभाग के मार्का के ही लकड़ी का उपयोग खुलेआम किया जा रहा है। जिससे प्राकृतिक दोहन तो हो ही रहा है, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश कोयला भट्टी अधिनियम नियमावली के तहत वन क्षेत्र से दस किलोमीटर दूर भट्यिाें का संचालन किए जाने का प्रावधान है। इनको आबादी से एक किलोमीटर दूर रखते हुए अधिकतम भट्टियां निर्धारित मानकाें पर बनाने का लाइसेंस दिया जाता है। जहां आग, दुर्घटना, दैवीय आपदा से निपटने के लिए समुचित प्रबंध होने चाहिए लेकिन कोयला भट्टी अधिनियमाें के विपरीत अधिकतर भट्टियां आबादी से जुड़ी हुई है। यहां दुर्घटना, आगजनी और आपदा से निपटने के कोई प्रबंध भी नहीं दिख रहे हैं। अधिकतर भट्टियां मानक के विपरीत हैं। कई भट्टियां व्यवसायिक दायरे में होने के बाद भी घरेलू भट्टियाें का लाइसेंस लेकर चल रही हैं। भट्टियाें में कोयला के लिए प्रयुक्त होने वाली लकड़ियों में मार्का लगाने के लिए वन महकमा भी नहीं पहुंचता। बगैर अनुमति के ही लकड़ी का कटान करवाकर वाहनाें से लाकर भट्टियाें में झाेंका जा रहा है।
– बरेली से सौरभ पाठक की रिपोर्ट