आज जब हमारा देश 75वी वर्ष में अमृतोत्सव मना रहे हैं तब 31 दिसम्बर 2021 को समाप्त हुई अंतिम तिथि पर देश की आबादी लगभग 136 करोड़ के साक्षेप में आयकर रिटर्न मात्र 589 करोड़ ही दाखिल हो पाये हैं। हम यह मानते हैं कि यह संख्या अभी 5.89 करोड़ पर नहीं रुकेगी क्योंकि अभी 31 मार्च 2022 अंतिम तिथि नियम है, अभी आॅडिट वाले रिटर्न दाखि होने हैं तो यह संख्या 10 करोड़ हो सकती है लेकिन संख्या पर संशय बना रहेगा। लेकिन स्थिति चिंताजनक तो बनी रहेगी। हम इस संख्या को चिंताजनक क्यों कह रहे हैं आगे बताएंगे।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारे देश में व्यापक रुप से ‘टैक्स देने की प्रवृत्ति विकसित’ स्थापित होनी चाहिए, परन्तु अनुभव यह कह रहा है कि सरकार पुराने ढर्रे पर नियम बनाती हुई टैैक्स वसूलने की कोशिश कर रही है और यदि टैक्स की वसूली नहीं हो पाये तो लेटफीस और पेनल्टी वसूल कर खजाना भरने की कोशिश कर रही है। इस संबन्ध मंे बता दें कि हम इस विषय में पहले भी लेख लिख चुके हैं, जिस पर बहुत से साथियों ने सहमति व्यक्त करते हुए हमारे विचारों का समर्थन किया था।
हमारे विचार से सरकार देश में ‘टैक्स देने की प्रवृत्ति विकसित’ करने की नीति लगभग असफल ही दिखायी दे रही है, क्योंकि सरकार देश के जनता को करदाता बनने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही है और न ही टैक्स देने के लिए प्रोत्साहित कर पा रही है।
यदि आप आयकर अधिनियम, 1961 का अध्ययन करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि इस अधिनियम का आधार 61 साल पुराना है, उस समय देश में समाजवादी पूंजीवाद अर्थव्यवस्था लागू थी। महत्वूपर्ण तथ्य यह भी कि उस समय यानि 1961 में प्रति व्यक्ति आय मात्र 130 रुपये थी लेकिन अब 1,70 लाख रुपये प्रति व्यक्ति आय आंकी जा रही है। साथ ही विचार यह भी करना होगा कि 1961 से 2000 तक भारत का विभिन्न उद्योग आयात पर और विदेशों के साथ व्यापारिक अनुबन्धों और आयात पर आधारित थी। हम यह कह सकते हैं कि 2010 के बाद भारत विश्व का व्यापारिक केन्द्र बनता चा जा रहा है। पहले भारत को बहुत गरीब देश के रुप में जाा जाा था परन्तु अब एक विश्व के सबसे बड़ा बाजार के रुप में देखा जा रहा है। 2012 के बाद से पयर्टन क्षेत्र में भी बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला कि पहले विदेशी पयर्टन भारत घूमने आते थे परन्तु अब उनकी संख्या लगातार कमी देखी जा रही है बल्कि भारत के लोग विदेश भ्रमण पर जाते हैं, अब विदेशी दुकानदार भारतीय पयर्टकों का दिल से स्वागत करते हैं। इसी क्रम मंे यदि देखा जाये तो पहले भारत हथियारों का बड़ा बाजार के रुप में देखा जाता था प्रत्येक बड़े देश भारत को अपनी शर्तो पर अपने उत्पाद हथियार बेचने के लिए तैयार रहते थे लेकिन अब भारत स्वयं में एक बड़ा उत्पादक देश के रुप में स्थापित हो रहा है। पहले भारत में जो उत्पादन हुआ करता था उसका स्वरुप यह था कि भारत में कलपूर्जे के स्थान पर सम्पूर्ण उत्पादन की इकाईयां हुआ करती थी, जिसमें विदेशों से कलपूर्जो का आयात होता था, साथ ही उनकी शर्तो के आधार खरीदारी की निर्भरता भी रहती थी। परन्तु अब कलपूर्जे भारत में बन रहे हैं और विदेशों में निर्यात विदेशों में किया जा रहा है। आपको याद होगा भारत से पूर्व पहले चीन में कलपूर्जे बनते थे, और विदेशों में निर्यात करता था, अर्थात चीन पर निर्भरता बनी रहती थी, उन कलपूर्जो को ऐसम्बल करने की इकाईयां भारत में थी परन्तु अब कलपूर्जे भारत में बन रहे हैं और भारत उसका निर्यात कर रहा है, स्पष्ट है कि विदेशांे में स्थापित इकाईयां अब भारत के निर्यात पर निर्भर हो रही हैं। यदि मेडिकल क्षेत्र की ओर देखा जाये तो भारत में मेडिकल कम्पनियां बहुत कम थी, और जो थी भी उनकी गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह् लगा रहता था परन्तु अब भारत की निर्माण इकाईयां विदेशी कम्पनियों का मुकाबला कर रही हैं। 2020 के कोरोना के बाद की स्थिति यह होती जा रही है कि पहले भारत पीपीई कीट, मास्क आदि पूरी तरह आयात पर निर्भर रहता था परन्तु अब पीपीई कीट, मास्क आदि का निर्माण भारत के कुटीर उद्योग के रुप में स्थापित हो चुके हैं।
परन्तु यदि बदलाव नहीं आया है तो कर प्रणालियों में नहीं आया। बात कर आयकर एक्ट की तो आज भी देश में 60 साल पुरानी अर्थव्यवस्था को आधार बनाकर एक्ट की व्यवस्थाएं लागू हैं उसी प्रकार माल एवं सेवाकर अधिनियम, जो 2017 में लागू किया गया, तो यह कहने में संकोच नहीं है कि इस एक्ट का आधार भी पुरानी सोच पर आधरित रखा गया है। हम दोष दे सकते हैं नीति निंयताओ एवं नीति आयोग और अर्थशास्त्रियों को, आज भी देश की अर्थव्यवस्था पर उनका आंकलन 60 साल पुरानी सोच पर ही आधारित है, प्रत्येक बदलाव एवं संशोधन का आधार पुरानी अर्थव्यवस्था पर ही केन्द्रीय दिख रहा है। क्योंकि 1992 मंे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री पीवी नरसिन्ह्ाराव में देश की उद्योग नीति में क्रांतिकारी संशोधन और परिवर्तन किया तो उसका आधार पुरानी सोच पर नहीं रखा बल्कि नयी सोच और आवश्यकता पर रखा। उसी प्रकार 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने देश में औद्योगकि बूम पैदा करने के लिए समय की मांग को आधार बनाकर नीतियों का निर्माण किया, जिसका आज सुखद परिणाम देखने में आता है। एक उदाहरण देना चाहता हूं कि 2000 से पूर्व सिक्यूरिटी गार्ड उद्योग बहुत ही नीचले स्तर पर था, आपको ध्यान होगा कि जिस कोठी के सामने गार्ड खड़ा रहता था वह बहुत ही अमीर माना जाता था लेकिन आज देश की सिक्यूरिटी उद्योग बड़े स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है, साथ ही बड़े स्तर पर रोजगार तो दे रही है, साथ में सरकार को राजस्व भी दे रही है। इसी प्रकार देश में परम्परागत कुटीर उद्योग प्रायः विलुप्त होते जा रहे थे परन्तु ओडीओपी योजना में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं।
अतः देश की कर प्रणालियों के साथ कर प्रणालियों के साथ औद्योगिक नीतियों में बहुत ही अधिक क्रांतिकारी सोच के साथ बड़े स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है। इनको बनाने के लिए नीति नियंताओं और अर्थशास्त्रियों को उद्योग एवं व्यापार के प्रति विश्वास की नीति को अपना कर समय के अनुरुप नीति बनाने की परम आवश्यकता है।
अतः समय की महती मांग है कि पुराने सोच को छोड़कर नयी सोच के साथ कर प्रणालियों को लागू करने की। -पराग सिंहल