दरगाह के पैसो पर सबकी नजर, लेकिन व्यवस्थाओ के प्रति सब है मौन

*ड्यूटी के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में चूक, लेकिन कार्यवाही के नाम पर सिर्फ माथाचप्पी

कलियर /रुड़की-आखिर क्यों नही होती कार्यवाही,,, या कार्यवाही के नाम पर क्यों होती है माथाचप्पी,, ये सवाल वो है जो कलियर क्षेत्र की गलियारियो में अक्सर सुने जाते है, कलियर क्षेत्र इन दिनों *”अंधेर नगरी चौपट राजा,,* वाली कहावत को सार्थक कर रहा है। जिस तरह से निज़ाम चलाया जा रहा है, और उसपर क्षेत्रीय लोगो सहित जनप्रतिनिधियों की चुप्पी बयां करती है कि यहां कहने सुनने वाला शायद कोई बचा नही,, कुछ लोग अपने निजी मफाद के लिए, तो कुछ लफड़ों में ना पड़ने का हवाला देते हुए खामोश है, जनप्रतिनिधी शायद इस भर्ष्टाचार में अपनी चुनावी जमीन तैयार करने के लिए बेजुबान है, ऐसा इस लिए कहा जा रहा है कि कलियर एक ऐसा स्थान है जो हिंदुस्तान में ही नही बल्कि अन्य देशों में भी अपनी ख़ास पहचान रखता है, यहां उस सख्सियत का दरबात है जहां लोग अपनी हाजरी पेश करने के लिए तरसते है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से निज़ाम में बेहद बदलाव आए, भर्ष्टाचार को रोकने के खूब दावे प्रबन्धनतन्त्र द्वारा किए गए लेकिन शायद वह दावे भी चुवानी सभाओ वाले दावे बनकर जमीन पर नही उतर पाए। पिरान कलियर,, विश्व में दरगाह हज़रत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक के नाम से मशहूर है, ये दरबार जहां लाखो करोड़ो अकीदतमंदों का केंद्र है,, तो वही उत्तराखंड वक़्फ़ बोर्ड के लिए सबसे अधिक वाली दरगाह भी है। लेकिन बावजूद इसके अधिकारी मात्र दरगाह से होने वाली आय को ठिकाने लगाने का मंसूबा रचते रहते है, मामला दरगाह से जुड़ी सुरक्षा व्यवस्था का है, जहाँ लगभग 1 लाख रुपये प्रति माह, मात्र उन पीआरडी के जवानों पर खर्च होते है जो दरगाह में धींगामस्ती और जायरीनों से होने वाली आमद पर काम करते है। सुरक्षा व्यवस्था को तार तार करने वाली घटनाएं उस समय घटती है जब ये पीआरडी के जवान अपनी ड्यूटी पर कार्यरत होते है, और घटना का संज्ञान लेते हुए दरगाह प्रबंधक पीआरडी के जवाओ की सेवाएं समाप्त करने की शिफारिश ज्वाइंट मजिस्ट्रेट से करते है लेकिन मात्र कारण बताओ नोटिस देकर पूर्व की भांति मामले को रफा दफा कर दिया जाता है। सवाल ये उठता है कि जब पीआरडी के जवानो के रहते दरगाह शरीफ की सुरक्षा में चूक हो रही है तो इन पर दरगाह का लगभग 1 लाख रुपये क्यों खर्च हो रहा है, रही बात सुरक्षाकर्मियों की तो दरगाह प्रबंधक की ओर से शासन, प्रशासन से मांग की जा सकती है जो सरकारी खर्च पर मुहैया हो सकते है, लेकिन दरगाह हिट के लिए ये कष्ट उठाए कौन, क्योंकि प्रबंधक साहब को फाइल चलाने के लिए लिखित में चाहिए और लिख कर मांग करने वाले शायद अभी गहरी नींद सोय है। बरहाल कोई तो अकीदतमंद उठेगा और दरगाह में आने वाली अकीदतमंदों की गाढ़ी कमाई को बचाने का प्रयास करेगा।
– रूडकी से इरफान अहमद की रिपोर्ट

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