झोला छाप डॉक्टरों ने संभाली है पहाड़ के स्वास्थ्य की कमान

उत्तराखंड : कोई भी नेता हो हर एक चुनाव लड़ते हुए स्वास्थ्य विभाग का रोना जरूर रोता है पलायन के नाम पर बड़े बड़े भाषण देते हैं।विपक्ष लगातार पहाड़ की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सोशल मीडिया पर कहता रहता है।पहाड़ो में बड़े बड़े अस्पताल बन गए हैं पर फिर भी ढाक के तीन पात, कही डॉक्टर नही तो कही आधुनिक चिकित्सा यंत्र नही है।

कोरोना महामारी ने जहाँ पूरे उत्तराखंड में पांव जमाये तो उसका साथ देने के आजकल अधिकतर गांवो के लोगो को बुखार, सर्दी ,जुकाम ,पेचिस ,जोड़तोड़ दर्द होना आदि ने दे दिया है हालात इतने खराब हो चुके हैं कि बाजारों में पैरासीटामोल भी मिलनी मुश्किल हो गई है।,

लोग सरकारी अस्पताल में इसलिये नही जा रहे हैं कि उनको सर्दी बुखार हो रखा है कही डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव न बता दें। इस वजह से लोग निजी क्लिनिको व मेडिकल स्टोरों , बंगाली डॉक्टरों , झोला छाप के पास बडी मात्रा में जा रहे हैं और सोशल डिस्टेंस का भी कोई पालन नही हो रहा है।

स्वास्थ्य विभाग को सब पता है कि किस जगह कितने झोला छाप डॉक्टर जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे परन्तु स्वास्थ्य विभाग इसलिये इनपर कार्यवाही नही करता कि उसे पता है यदि इन पर कार्यवाही की तो चिकित्सा विभाग हिल जाएगा

कई मेडिकल स्टोर डॉक्टरों की दुकान बने बैठे हैं और कई तो ऐसे भी है जो दसवीं फेल है और धड़ल्ले से एमबीबीएस डॉक्टर का काम कर रहे हैं कुछ मेडिकल स्टोर्स तो बड़े बड़े ऑपरेशन ,दाँत ,फिजिशियन, सर्जन बने बैठे हैं और जब साल भर में प्रशासनिक टीम जाती है तो ये लोग खर्चा पानी करके अपडेट हो जाते हैं।

विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में झोला छाप डॉक्टरों ने दुकानें खोल रखी है जो धड़ल्ले से चल रहीं है।

– पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल

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