*सत्य पर असत्य की जीत सुनिश्चित करने वालों का हो रहा बोलबाला..
30 मई 1826 को पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने हिन्दी के पहले अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया था जिसकी याद में आज देशभर में हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है।आज पत्रकारों में भी सत्य के लिये असत्य से लड़ने वालों की संख्या निरंतर गिरती जा रही है। कारण यह कि कांटों भरी राह पर खुद तो चल लो लेकिन अपने परिवार को उस राह पर झौंकना अक्लमंदी का काम नहीं रह गया है। आज पहले की तरह आज जुझारूपन और मुफलिसी में भी बुराई के खिलाफ लड़ाऊपन सम्मान की बात नहीं रह गयी है।चकाचैंध भरी जिन्दगी में समाज ने भ्रष्टाचार को न केवल मान्यता दे दी अपितु उसे सिर माथे पर बिठा दिया है। भ्रष्ट तरीके से अर्जित शानो शौकत को समाज ज्यादा महत्व दे रहा है।सत्य पर असत्य की जीत सुनिश्चित करने वालों का बोलबाला पत्रकारिता की मूल भावना के विपरीत होने के साथ ही एक सामाजिक अपराध ही है लेकिन आज ऐसे ही अवसरवादी और भ्रष्ट लोगों को सरकार और समाज से सम्मान और संरक्षण मिलता है। जिसका राज उसके पूत पत्रकारों को ही सफलतम पत्रकार माना जा रहा है।
जनसरोकारों के उद्धेश्य से शुरू हुई पत्रकारिता की अबतक की यात्रा कोई भरोसा नहीं जगाती। देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान उसने अपना स्वर्णकाल देखा था। आज वह अपनी विश्वसनीयता के सबसे बड़े संकट से रूबरू है। अपवादों को छोड़ दें तो पत्रकारिता की प्रतिबद्धता आमजन के प्रति नहीं राजनीतिक सत्ता और उससे जुड़े लोगों के प्रति है! मीडिया के मामले में तो यह प्रतिबद्धता बेशर्मी की तमाम हदें पार कर चुकी है। उसपर सत्ता और पैसों का दबाव उतना कभी नहीं रहा जितना आज है; वज़ह साफ है!चैनल और अखबार चलाना इन दिनों कोई मिशन या आंदोलन नहीं। जो बिकता है वही दिखता छपता है के इस दौर में पत्रकारिता अब एक शुद्ध व्यवसाय है, जिसपर किसी लक्ष्य के लिए समर्पित लोगों का नहीं, देश के बड़े व्यावसायिक घरानों का एकछत्र कब्ज़ा है उन्हें अपना चैनल या अखबार चलाने और कमाने के लिए विज्ञापनों से मिलने वाली भारी रकम चाहिए और यह रकम उन्हें सत्ता और उससे जुड़े व्यवसायी ही उपलब्ध करा सकते हैं कोई आम आदमी नहीं! नतीज़तन सिक्के उछाले जा रहे हैं और मीडिया का नंगा नाच ज़ारी है।
देश में जो मुट्ठी भर लोग पत्रकारिता को लोक-चेतना और सामाजिक सरोकारों का वाहक बनाने की कोशिशों में लगे हैं, उन लोगों के आगे साधनों के अभाव में प्रचार-प्रसार और वितरण का गहरा संकट है। उम्मीद की कोई किरण दूर तक नज़र नहीं आती। मीडिया जगत में कार्यरत सभी बंधुओं और पत्रकारों को पत्रकारिता दिवस की हमारी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं, इस उम्मीद के साथ कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ समझने के मुगालते से बाहर निकल आएं। अभी सत्ता और पूंजी का यह सबसे मज़बूत स्तंभ है और शायद बना भी रहेगा।