जीवन को पूर्ण होने के लिये संसाधनों का भंडार नहीं हृदय की पूर्णता है जरूरी :स्वामी चिदानन्द सरस्वती

*नोटबंदी में भी लंगरबंदी कभी नहीं हुई

* पूर्णिमा अर्थात पूर्णता 

* नाम जपो, कीरत करो, वंड चखो यही सिख धर्म का सार

ऋषिकेश- आज कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ‘‘पूर्णिमा अर्थात पूर्णता! संसार में गुरू ही पूर्ण माँ है। पूर्णिमा उसी दिन जीवन में उतरती है जब ’’गुरू’’ हमारे मार्गदर्शक सत्ता बनकर जीवन में आते हैं, वही पूर्ण – माँ हैं। जिस दिन यह समझ में आ जाये उसी दिन पूर्णिमा है और जब उसे जीने लगे तब से हर दिन; हर क्षण ही ’’पूर्णिमा’’ है। जीवन को पूर्ण और सम्पूर्ण बनाने के लिये जरूरी नहीं कि हमारे पास संसाधनों का भंडार हो परन्तु हृदय की पूर्णता होना नितांत आवश्यक है। जीवन में यह जरूरी नहीं है कि हमारी हस्ती क्या है परन्तु यह जरूरी है हमारी मस्ती क्या है; किसमे है और कहां है साथ ही वह हमेशा जिंदा रहे। जिनकी हस्ती नहीं होती है कई बार वे खुल कर हंस भी नहीं पाते परन्तु जिनके पास मस्ती होती है वह हर दम मनमोहक मुस्कान लिये जीते हैं। जो मस्त होते हैं वहीं जीवन में खिल सकते हैं और खुल सकते हैं आईये मस्त रहें और खुलकर जीवन जियें।’’पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने श्री गुरूनानक देव जी के 551 वें प्रकाश पर्व पर देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि गुरू नानक देव जी ने संदेश दिया कि ’’अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे, एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे’’। वे एक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि और देशभक्त थे और उन्होने हमेशा ही परम पिता परमेश्वर एक ही है यह संदेश दिया। ’’सतगुरू नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानण होआ, ज्यूँ कर सूरज निकलया, तारे छुपे अंधेर पलोआ।’’ आज उनके 551 वें प्रकाशपर्व पर उनकी साधना, आराधना, सद्भाव और राष्ट्र भक्ति को नमन।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि 551 वर्ष पूर्व एक ऐसी ज्योति प्रकट हुई जिनका नाम पड़ा ‘‘सद्गुरू नानक’’ वे बचपन से ही बुद्धि के प्रखर थे, उन्होंने हिन्दी, फारसी आदि कई भाषाओं में अध्ययन किया तथा बचपन से ही उनमें एक ऐसी लगन थी, वे अक्सर एकांत में बैठकर घन्टों प्रभु में ध्यान लगाते थे और जगत तथा जगदीश के बारे में चिंतन करते थे।
सच्चा सौदा वाली कथा हो या अन्य अनेकों कथायें हो या सामान तोलते-तोलते जब संख्या में (13) तेरा-तेरा आता तो उनके हृदय में यह भाव उत्पन्न होता कि जो कुछ है वह सब तेरा है। उनकी सबसे पहली शिक्षा थी कि कैसे हृदय की गांठ खुलें, इससे जात-पात, भेदभाव, ऊँच-नीच के भाव समाप्त हो जाते हैं। ‘‘कहो नानक जिन हुकम पछाता, प्रभु साहब का तिन भेद जाता’’ अर्थात प्रभु का भेद प्राप्त हो जाने के बाद सारे भेद मिट जाते है। ’’सब घट ब्रह्म निवासा’’, सब बराबर हैं, कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा नहीं, बस एक ही भाव रह जाता है सब से प्रेम करो, सब की सेवा करो,  हृदय को पवित्र रखो और सदा ईश्वर का स्मरण करते रहो। जीवन श्रेष्ठ बनाये यही संदेश लेकर सद्गुरू नानक जी सभी जगह गये और सभी को नाम दान दिया।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि सिख धर्म की नींव में गुरू भक्ति और गुरू की सेवा का बड़ा महत्व है। जीवन में जो भी है वह गुरू प्रसाद है। ‘‘गुरू मेरी पूजा, गुरू गोविंद’’ गुरू मेरा पारब्रह्म यह जो भाव है, यह सचमुच अद्भुत भाव है। गुरू परम्परा का इतिहास अद्भुत है, अलौकिक है। गुरू और पूज्य संतों के प्रति निष्ठा; गुरू की वाणी में निष्ठा अद्भुत है, अवर्णनीय है। ‘‘आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ, सब सिखन को हुक्म है गुरू मान्यो ग्रंथ’’ ग्रंथ को ही गुरू मानकर उसकी वाणी को अपने जीवन का पाथेय मानकर जिस तरह से सिख परम्परा ने अद्भुत और गौरवमयी परम्परा को जन्म दिया है, यही अपने आप में एक प्रकाश पर्व है। प्रकाशोत्सव पर प्रकाशपर्व यह गुरूवाणी ही प्रकाश पर्व है।
 ग्रंथ के गुरू होने का अर्थ ही यह है कि गुरू की पवित्र वाणी के अनुसार हम अपने जीवन को पवित्र बनायेंगे जिससे लोक भी सुधरेगा और परलोक भी सुधरेगा। गुरू ग्रंथ की पूजा का अर्थ ही यही है कि गुरू ग्रंथ की वाणी के अनुसार अपने जीवन को ढालना और पवित्र करना इसलिये तो सिख सम्प्रदाय में गुरूग्रंथ को माथे से लगाते है तथा पंखा झेलते है अद्भुत समर्पण का भाव है अर्थात गुरूग्रंथ का आदर करें और उन आदर्शो पर चले। साथ ही उन्होंने नाम जपो, कीरत करो और वंड चखो अर्थात प्रभु का नाम बाहर, भीतर हमेशा चलता रहें, कथायें हो, कीर्तन हो, नाम स्मरण हो ये सब बातें मन को शुद्ध करने के लिये है ताकि मन का मैल मिटे तथा जीवन में सत्य, प्रेम और करूणा का विकास हो। कीरत करो अर्थात जीवन में पुरूषार्थ करो और वंड चखो अर्थात मिलबांट कर खाओ, यह सब मूल्यवान गुण है, यह जब जीवन में आते हैं तभी जीवन सार्थक है। हम सभी ने देखा कोरोना का समय हो, सुनामी हो, नोटबंदी हो या फिर कोई अन्य आपदा हो लंगर बंदी कभी नहीं हुई, लंगर हमेशा सभी के लिये खुले रहे। यह सिख धर्म के भाव की अद्भुत विशेषता है।

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