सन्त कबीर नगर ( खलीलाबाद ) – कर्मफल तब तक साथ नही देता है जब तक भाग्य का साथ न मिल जाय ।
” औषधि मंत्र मंत्राणाम ग्रह नक्षत्र तारिका । भाग्यकाले भवेत सिद्धि अभाग्यम निष्फलम भवेत ” उक्त नीति वचन कितना सत्य है कि कर्म फल तब तक साथ नही देता है जब तक भाग्य का उसे साथ न मिल जाय । जिसका जीवंत उदाहरण विधानसभा चुनाव है जिसकी तैयारी मे जी तोड़ से लगे वे प्रबल दावेदार नेता है जो रात दिन एक करते हुए बतौर जनाधार अपनी एक पहचान बनाई ।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव की तैयारी मे लगे लोगो की आस निराशा मे बदल गई है जो नेता जी तोड़ मेहनत करते हुए जन सहयोग का रास्ता बनाते रहे , उन्हे शीर्ष नेतृत्व ने भाग्य का आईना दिखाते हुए अवसर से ओझल कर दिया है । चाहे वो समाजवादी पार्टी के कर्मठी व प्रबल दावेदार दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी हो , चाहे भारतीय जनता पार्टी के प्रबल दावेदार युवाओ की फौज खड़ा करने वाले युवा नेता वैभव चतुर्वेदी हो या फिर समाजसेवी पवन छापड़िया हो अथवा वरिष्ठ नेता राकेश मिश्रा व पूर्व सांसद इंद्रजीत मिश्र हो , शीर्ष नेतृत्व ने इन्हे बगल करते हुए ऐसे नेताओ को उम्मीदवार बनाया है जिनका विधानसभा क्षेत्र की जनता मे वह जमीनी रिश्ता व क्षेत्रीय पहचान वह प्रसिद्धि नही है जो होना चाहिए । मसलन समाजवादी पार्टी के 313 विधानसभा खलीलाबाद के उम्मीदवार अब्दुल कलाम है जो विधानसभा क्षेत्र मेहदावल से दो बार विधायक तो रहे है पर वैसे प्रतिनिधित्व की पहचान नही है जैसा कि लोगो ने उम्मीद कर चुना था वही वर्तमान समय मे इस विधानसभा से कोई सरोकार नही रहा है अगर कुछ रहा है तो विधानसभा मेहदावल से रहा है जहां यदा कदा क्षेत्र भ्रमण मे नजर आये है ऐसा ही कुछ हाल भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार अंकुर राज तिवारी का है जो माह पूर्व पार्टी से जुड़े है इनका भी वैसा जमीनी रिश्ता नही है । ऐसे मे जहां अंकुर राज तिवारी को जमीनी रिश्ता मजबूत करने की चुनौती नजर आ रही है वही अब्दुल कलाम के लिए एक ऐसी चुनौती नजर आ रही है जिसका सामना करना लोहे के चने चबाने जैसा होगा । इन्हे जहां एक तरफ मतदाताओ को रिझाने की कमतर समय की चुनौती है वही बीजेपी उम्मीदवार अंकुर राज तिवारी एवं बहुजन समाज पार्टी के आफताब आलम जैसे नेताओ से मुकाबला है जिनकी लड़ाई जनाधार के प्रबल दावेदार रहे दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे से मानी जा रही थी ।
– के के मिश्रा