जिला प्रशासन का कारनामा: नियुक्त सरकारी चिकित्सक के नाम पर ही कर दिया अस्पताल का पंजीकरण

अम्बेडकरनगर,ब्यूरो- जनपद में संचालित हो रहे अवैध झोलाछाप डॉक्टरों और अस्पतालों पर अंकुश लगाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है जिले का प्रशासन। फिर तो द्वारा कई बार जिला प्रशासन को प्रार्थना पत्र देकर अवैध हो रहे संचालित अस्पतालों के बारे में सूचित किया गया लेकिन जिम्मेदार इतनी गहरी नींद में सोए हुए हैं कि उठने का नाम नहीं ले रहे हैं आए दिन जनपद में झोलाछाप डॉक्टरों के कारनामे सामने आते हैं फिर भी प्रशासन को यह नहीं लगता कि झोला छाप डाक्टरों पर बड़ी कार्यवाही तो छोड़िए जनाब जनाब तो बड़े साहब हैं जिनको इन पर नजर घुमाने तक की फुर्सत नहीं चाहे जितनी जाने इन झोलाछाप डॉक्टरों के कारण चली जाए लेकिन इनको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
हम कोई और नहीं जनपद के चर्चित झोलाछाप डॉक्टर बिलाल अहमद की बात कर रहे हैं आइए पूरी बात पर चलते हैं बिलाल अहमद द्वारा जनपद के इल्तिफातगंज बाजार में हाजी मेमोरियल सेवा संस्थान के नाम से अस्पताल संचालित किया जा रहा है । कुछ महीने पहले एक पीड़ित ने आरोप लगाया था कि डॉक्टर बिलाल के इलाज से उसकी आंखों की रोशनी चली गई इसकी शिकायत पीड़ित ने जिले के उच्च अधिकारियों से कर इंसाफ की गुहार लगाई उस वक्त आलाअधिकारी इंसाफ के तौर पर तथाकथित डॉक्टर पर छोटे से कार्यवाही करते हुए हाजी मेमोरियल सेवा संस्थान के नाम से संचालित हो रहे अस्पताल के नवीनीकरण पर तथाकथित चिकित्सकों को अयोग्य बताते हुए रोक लगा दिया। फिर उसके बाद उक्त छोला छाप डॉक्टर माननीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि आखिर किस सबूत के बिनाह पर हाजी मेमोरियल सेवा संस्थान का नवीनीकरण पर रोक लगाया गया है। माननीय न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी अंबेडकरनगर को आदेश दिया की तथाकथित झोलाछाप डॉक्टर को साक्ष्य प्रस्तुत करने का निर्धारित समय दिया जाए लेकिन साहब ऐसा क्या हुआ कि झोलाछाप डॉक्टर अभी तक अपना साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए और जिन डॉक्टरों को उन्होंने बताया था उनमें से एक डॉक्टर का नाम डॉक्टर पीसी तिवारी जोकि सर्जन थे और डॉक्टर बरकतुल्लाह अंसारी जिनकी उम्र 70 साल हो चुकी है जब इन लोगों की बारी आई बताने की तो यह लोग भी हाथ खींच लिए जिससे डॉक्टर लाल बेसहारा हो चुके थे फिर उसके बाद बड़ी चालाकी से इन्होंने उत्तराखंड में एक सरकारी चिकित्सक डॉ. शैलेंद्र जायसवाल जो कि उत्तराखंड के एक सरकारी अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मुंशियारी जनपद चितौरागढ में नियुक्त है। इसी सरकारी चिकित्सक की आड़ में हैरिटेज मेडिकल सेंटर का बोर्ड लगा कर गर्भवती महिलाओं का प्रसव उनकी पत्नी और झोलाछाप डॉक्टर संचालित कर रहा हैं। साहब जिस सरकारी चिकित्सक के नाम पर रजिस्ट्रेशन हुआ है वह अभी भी उत्तराखंड में नियुक्त हैं यह बात इसलिए पुख्ता हो जाती है कि जब मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने डॉक्टर शैलेंद्र जायसवाल को भी इस मामले में या यूं कहें कि इस रजिस्ट्रेशन के बारे में अपना त्यागपत्र और एनओसी देने के लिए कहा तो यह भी दबे पांव निकल लिए और उपस्थित ही नहीं हुए। लेकिन पैसे की ताकत के आगे झोलाछाप डॉक्टर के सामने जिला प्रशासन झुक गया या यूं कहें कि नतमस्तक हो गया और हेरिटेज क्लीनिक के नाम से रजिस्ट्रेशन कर दिया। बात समझ में नहीं आती कि जो बिल्डिंग या जमीन विवादित हो और जिसका मामला माननीय न्यायालय में विचाराधीन हो उस बिल्डिंग या जमीन पर रजिस्ट्रेशन कर देना क्या वाजिब था ऐसी परिस्थिति में साहब आपने हैरिटेज क्लीनिक के नाम से रजिस्ट्रेशन कर दिया आखिर जब संचालक अभी भी ना तो एनओसी दे पाया है और ना ही त्याग पत्र की कॉपी तो फिर कैसे रजिस्ट्रेशन कर दिया। क्या यह सच में पैसे की ताकत थी। और हेरिटेज मेडिकल सेंटर के नाम से तो बोर्ड लगा ही है और जिला प्रशासन को गुमराह करने के लिए झोलाछाप डॉक्टर ने अपने दूसरे हॉस्पिटल पर हाजी मेमोरियल सेवा संस्थान का भी बोर्ड लगाया है जिसको जिलाधिकारी महोदय ने जांच कर बंद कराने का भी आदेश दिया था लेकिन अभी तक संबंधित अधिकारी वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। और जब रजिस्ट्रेशन ओपीडी के लिए हुआ है तो आखिर कैसे झोलाछाप डॉक्टर गर्भवती महिलाओं का प्रसव करा रहा है। क्या यह भी ओपीडी की कैटेगरी में आता है अगर आता है तो ठीक है और नहीं आता है तो यह गलत है खैर जो भी हो पैसे की ताकत तो देखी जा रही है और जिला प्रशासन की निगाह में पैसे की ताकत ही सर्वोपरेय है।

अखण्ड प्रताप सिंह,ब्यूरो अम्बेडकरनगर।

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